प्रकाश सिंह। केंद्र और राज्यों में विभिन्न विषयों पर लगातार बढ़ता टकराव अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। बीते दिनों सीमा सुरक्षा बल के कार्य क्षेत्र विस्तार को लेकर कुछ राज्यों ने आपत्ति की थी। अब अखिल भारतीय सेवाएं, जिनमें आइएएस, आइपीएस और आइएफएस (भारतीय वन सेवा) जैसी सेवाएं आती हैं, के अधिकारियों की केंद्र में प्रतिनियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। संविधान के अनुच्छेद 312 में अखिल भारतीय सेवाओं के गठन की व्यवस्था है। उस समय केवल आइएएस और आइपीएस ही दो अखिल भारतीय सेवाएं थीं, फिर 1966 में आइएफएस का गठन किया गया। इन सेवाओं के गठन का मुख्य उद्देश्य संपूर्ण भारत में प्रशासनिक एकरूपता और केंद्र एवं राज्यों के अधिकारियों में तालमेल बनाए रखना था।

अखिल भारतीय सेवाओं के समीकरण

आइएएस, आइपीएस और आइएफएस जैसी अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों का चयन, प्रशिक्षण और कैडर आवंटन केंद्र सरकार करती है। राज्य कैडर मिलते ही अधिकारी प्रशासनिक मामलों में राज्य सरकार के अधीन हो जाते हैं। केंद्र सरकार अपनी आवश्यकतानुसार इन अधिकारियों को राज्यों से लेती है। इसके लिए प्रत्येक राज्य में एक केंद्रीय डेपुटेशन रिजर्व होता है, जो सीनियर ड्यूटी पोस्टों का 40 प्रतिशत होता है। इसी कोटे से केंद्र को अपनी व्यवस्था के लिए अधिकारी मिलते हैं।

वर्तमान में केंद्र राज्यों से हर वर्ष ऐसे अधिकारियों की सूची मांगता है जो केंद्र में आने के इच्छुक होते हैं। इसी सूची से केंद्र अधिकारियों का चयन करता है। दुर्भाग्य से विगत कई वर्षों से यह सूची छोटी होती जा रही है। कई बार ऐसा भी होता है कि अधिकारी तो केंद्र में जाना चाहते हैं और केंद्र भी उन्हें लेना चाहता है, परंतु राज्य सरकार कतिपय कारणों से उन्हें कार्यमुक्त नहीं करती। इसका ही नतीजा है कि धीरे-धीरे केंद्र में अधिकारियों की रिक्तियां भारी संख्या में बढ़ गई हैं। इससे केंद्र को अपना तंत्र चलाने में परेशानी हो रही रही है।

कामकाज पर पड़ता गतिरोध का असर

कुछ उदाहरणों से स्थिति की गंभीरता स्पष्ट हो जाएगी। वर्ष 2011 में आइएएस संवर्ग के कुल 309 अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर थे। फिलहाल यह संख्या घटकर 223 रह गई है, यानी एक दशक के दौरान प्रतिनियुक्ति पर गए अधिकारियों का आंकड़ा 25 प्रतिशत से घटकर 18 प्रतिशत रह गया है। वर्ष 2014 में उप-सचिव और निदेशक स्तर पर 621 अधिकारी थे। उनकी संख्या अब बढ़कर 1130 हो गई है। इसके बावजूद प्रतिनियुक्ति पर गए अधिकारियों की संख्या 117 से घटकर 114 रह गई है। भारतीय पुलिस सेवा यानी आइपीएस में तो शायद स्थिति और भी खराब है। देश में आइपीएस के कुल 4984 पद स्वीकृत हैं, उनमें भी 4074 अधिकारी ही उपलब्ध है। मानक के अनुसार इनमें से 1075 अधिकारी सेंट्रल डेपुटेशन रिजर्व में होने चाहिए, परंतु केवल 442 अधिकारी ही प्रतिनियुक्ति पर हैं। यानी 633 अधिकारियों की कमी है। इसमें सबसे अधिक कटौती बंगाल ने की है जिसने केवल 16 प्रतिशत अधिकारी भेजे हैं, वहीं हरियाणा ने 16.13 प्रतिशत, तेलंगाना ने 20 प्रतिशत और कर्नाटक ने 21.74 प्रतिशत। फलस्वरूप केंद्रीय पुलिस संगठनों में भारी संख्या में रिक्तियां हो गई हैं। सीमा सुरक्षा बल में डीआइजी रैंक पर आइपीएस के 26 स्वीकृत पदों में 24 रिक्त हैं। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में भी डीआईजी के 38 स्वीकृत पदों में से 36 रिक्त हैं। सीबीआइ, आइबी ïïïव अन्य केंद्रीय पुलिस संगठनों में भी कमोबेश यही कहानी है।

संतुलन साधने की सार्थक पहल

भारत सरकार के प्रशिक्षण एवं कार्मिक विभाग ने 20 दिसंबर, 2021 को कैडर प्रबंधन में आ रही दिक्कतों को केंद्र में रखकर राज्य सरकारों को एक पत्र में लिखा कि आइएएस कैडर रूल्स में कुछ परिवर्तन प्रस्तावित हैं। राज्य सरकारें केंद्र सरकार को प्रतिनियुक्ति के लिए सेंट्रल डेपुटेशन रिजर्व के अनुसार निर्धारित संख्या में, स्वीकृति के अंतर्गत वास्तविक संख्या को देखते हुए, एक समय सीमा में अधिकारी उपलब्ध कराएंगी। कितने अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में जाना है, इस बारे में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों की राय लेने के बाद निर्णय करेगी। बंगाल, केरल, तमिलनाडु और झारखंड समेत कुल 11 राज्यों ने केंद्र के इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि इससे संघीय ढांचे पर प्रहार होगा।

इस विषय में भारत सरकार ने 12 जनवरी को एक और पत्र लिखा। उसमें कहा गया कि कुछ परिस्थितियों में केंद्र को राज्य से किसी विशेष अधिकारी की आवश्यकता होगी तो राज्य सरकारों को उक्त अधिकारी को उपलब्ध कराना होगा। इससे अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों में बेचैनी हुई है। यह इसलिए, क्योंकि केंद्र और राज्य के बीच टकराव में यदि केंद्र किसी अधिकारी से कुपित होता है और वह उसे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए मांग ले, तो संभव है कि ऐसे अधिकारी को प्रताडि़त किया जाए। इससे पहले 20 दिसंबर को केंद्र ने जो संशोधन प्रस्तावित किए थे, वे उचित थे और उनका विरोध राजनीतिक कारणों से ही हो रहा है। परंतु दूसरे चरण के संशोधन केंद्र को वापस लेने चाहिए ताकि अधिकारियों के मन में उत्पीडऩ की आशंका न रहे।

इसी क्रम में भारत सरकार ने 17 जनवरी को एक और पत्र जारी कर स्पष्ट किया है कि जो संशोधन आइएएस कैडर रूल्स में प्रस्तावित किए गए थे, तदनुसार वही संशोधन आइपीएस और आइएफएस कैडर रूल्स में भी किए जाएंगे। यह उचित है, क्योंकि अखिल भारतीय सेवाओं के कैडर रूल्स में एकरूपता होनी चाहिए। यह केंद्र का दायित्व है। सरकारिया आयोग ने भी स्पष्ट रूप से लिखा है कि अखिल भारतीय सेवाओं के कैडर मैनेजमेंट में केंद्र सरकार को ही अंतिम निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।

अखिल भारतीय सेवाओं की वर्तमान स्थिति अत्यंत शोचनीय है, जिनमें तमाम सुधार आवश्यक हैं। यह भी स्मरण रहे कि राज्य सरकारों के असहयोग से केंद्र सरकार की गाड़ी को लडख़ड़ाने नहीं दिया जा सकता। राज्य सरकारों को नियमों के दायरे में केंद्र को निर्धारित संख्या में अधिकारी उपलब्ध कराने चाहिए। राज्य में ही टिके रहने की सामंती मानसिकता के अधिकारियों को बाहर जाने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। अखिल भारतीय सेवा का सदस्य होने का अर्थ ही यही है कि आप देश में कहीं भी सेवा देने के लिए तत्पर रहें।

(लेखक उत्तर प्रदेश पुलिस एवं सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक रहे हैं )