[ ब्रिगेडियर आरपी सिंह ]: पाकिस्तान हमेशा से भारत को परेशान करता आया है जबकि उसके प्रति भारत का रवैया अक्सर ही नरम रहा। भारत ने उसके प्रति नरम रवैया अपनाते हुए यही सोचा कि पड़ोस में अमन-चैन कायम होना उसके हित में रहेगा, मगर यह धारणा गलत साबित हुई। वास्तव में एकजुट के बजाय विभाजित पाकिस्तान ही भारत के हित में है। इस्लामाबाद को अलग-थलग करने के लिए अपने पहले कार्यकाल में मोदी ने कई मोर्चों पर दबाव बनाए रखा। आज पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था बदहाल है। वह एक और राहत पैकेज के लिए गुहार लगा रहा है।

पाक के पास केवल 7 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार

पाकिस्तानी केंद्रीय बैंक के पास केवल सात अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार शेष है। इसकी तुलना में वर्ष 1971 में पाकिस्तान से टूटकर बना बांग्लादेश 33 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार के साथ सहज स्थिति में है। पाकिस्तान के जीडीपी की विकास दर चार प्रतिशत रहने का अनुमान है और कुछ अनुमानों के अनुसार यह तीन प्रतिशत ही रह सकती है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने पाकिस्तान की रेटिंग घटाकर बी निगेटिव कर दी है।

आतंकी गतिविधियों को वित्तीय मदद रोकने में नाकाम

इस्लामाबाद को हाल में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और चीन से आर्थिक मदद मिली है, लेकिन यह काफी नहीं। बीते दिनों एफएटीएफ ने एक बार फिर पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालने का फैसला किया, क्योंकि वह आतंकी गतिविधियों को वित्तीय मदद रोकने में नाकाम रहा। इस वैश्विक निगरानी संस्था ने इस्लामाबाद को अक्टूबर तक मोहलत दी है कि वह आतंकी गतिविधियों को वित्तीय मदद पर रोक लगाए, अन्यथा उसे काली सूची में डाल दिया जाएगा। इस्लामाबाद के लिए ऐसे हालात बनाने में भारत के कूटनीतिक करिश्मे ने भी अहम भूमिका निभाई है। फिलहाल पाक नस्लीय, क्षेत्रीय और सांप्रदायिक आधार पर बुरी तरह विभाजित है।

अमेरिका अब पाकिस्तान का मित्र नहीं रहा

इस्लामाबाद आतंक के खिलाफ लड़ाई को लेकर अमेरिका को बरगलाता आया है। एक तरफ उसने यह छलावा पेश किया कि वह आतंक के खिलाफ लड़ाई में जुटा है तो वहीं तालिबान से लेकर कश्मीर में आतंकियों की मदद भी करता रहा। अमेरिका अब पाकिस्तान का मित्र नहीं रहा और उसने पाकिस्तान को दी जाने वाली सभी सैन्य-असैन्य मदद रोक दी है। पाकिस्तान अब चीन के रहमोकरम पर है और चीन उसे अजगर के माफिक शिकंजे में कस रहा है। वहां उप-राष्ट्रवाद भी उफान पर है।

आसमान छूती महंगाई

आसमान छूती महंगाई, आवश्यक वस्तुओं की किल्लत, रोजगार की कमी, बेतहाशा गरीबी, बढ़ती विषमता, नेताओं, सैन्य अधिकारियों और नौकरशाहों द्वारा जमा की गई अकूत संपत्ति, बिगड़ती कानून एवं व्यवस्था और जिहादियों की हिंसा से आम जनता बुरी तरह त्रस्त है। पाकिस्तानी राजनीतिक-सैन्य-मजहबी नेतृत्व की तिकड़ी से पैदा हुआ आतंकवाद का जिन्न अब भस्मासुर बनकर अपने ही आका को बर्बाद करने पर तुला है। भारत के साथ बढ़ता तनाव पाकिस्तान के लिए आत्मघाती है। जब अर्थव्यवस्था उतार पर है, राजनीतिक व्यवस्था पंगु है और तमाम रणनीतिक चुनौतियां हैं तब पाकिस्तान भारत के साथ सीमा पर तल्खी बढ़ाने का जोखिम नहीं ले सकता।

भारत के लिए लाभ उठाने का बेहतर समय

भारत के लिए यह सबसे बेहतर समय है कि वह इस स्थिति का लाभ उठाए। मोदी सरकार की बढ़िया सख्त नीति रही है। मिसाइलों के परीक्षण से पाकिस्तानी खजाने पर बोझ बढ़ा है, जबकि सैन्य खर्च में कटौती की तत्काल आवश्यकता है। इसके बावजूद उसने पिछले वर्ष की तुलना में रक्षा बजट में 18 प्रतिशत बढ़ोतरी कर 9.6 अरब डॉलर किया। पाकिस्तान का कुल जीडीपी 305 अरब डॉलर का है। इस लिहाज से यह अनुपात बहुत असंतुलित है। रक्षा पर खर्च होने वाला प्रत्येक रुपया समझिए विकास गतिविधियों की अनदेखी करके हो रहा है। चूंकि पाकिस्तान की अधिकांश आबादी दो वक्त के खाने के लिए संघर्ष करने के साथ ही बिजली की कटौती और रोजगार की किल्लत से जूझ रही है इसलिए रक्षा पर बढ़ा खर्च मुश्किल बढ़ाने का ही काम करेगा।

बलूच, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा में पाक से अलग होने की मुहिम

बहुसंख्यक बलूच और सिंधियों का एक बड़ा वर्ग पाकिस्तान से अलग होने की मुहिम चला रहा है। इसी तरह खैबर पख्तूनख्वा के पठान भी अफगानिस्तान के साथ विलय करना चाहते हैं। 1971 के युद्ध और बांग्लादेश के उदय के बाद सिंधी नेता जीएम सईद ने सिंधियों के लिए सिंधुदेश बनाने के मकसद से जिये सिंध आंदोलन का सूत्रपात किया। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों को प्रशिक्षित किया। रॉ ने पाकिस्तानी सेना, वायुसेना और विदेश सेवा में कार्यरत बंगालियों को अपना एजेंट बनाया। एक साथ दिए इन झटकों से ही पाकिस्तानी सेना को परास्त किया गया, मगर अब रॉ को एक साथ चार मोर्चों पर सक्रिय होकर बलूच, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और गुलाम कश्मीर एवं गिलगित-बाल्टिस्तान के विद्रोहियों का साथ देना चाहिए, जो पंजाबी प्रभुत्व के साये में पिस रहे हैं। इन इलाकों में धीरे-धीरे पंजाबियों की बसावट से जनसांख्यिकी अनुपात बिगड़ रहा है और स्थानीय पहचान गुम हो रही है।

चार प्रांतों में छद्म युद्ध पाक को प्रभावित कर सकता है

स्थानीय लोग भारत के समर्थन के लिए बेचैन हैं। पाकिस्तानी तालिबान के रूप में केवल एक आतंकी धड़े से निपटने में ही पाकिस्तानी सेना के 70,000 से अधिक जवान शहीद हो चुके हैैं। ऐसे में अगर भारत चार मोर्चों पर चल रहे विद्रोह को शह दे तो पाकिस्तानी सैन्य बलों को बड़ी चोट पहुंचेगी। जो लोग यह दलील देते हैं कि इससे पाकिस्तान भी भारत में आतंकी गतिविधियां बढ़ाएगा तो वे यह भूल जाते हैं कि चूंकि वह छोटा देश है इसलिए उसे इसका ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ेगा। वैसे भी इस्लामाबाद पहले से ही इस खेल में लगा है। चार प्रांतों में छद्म युद्ध पाकिस्तान के 60 प्रतिशत हिस्से को प्रभावित कर सकता है। जल्द ही पाकिस्तानी जनरलों को अहसास हो जाएगा कि भारत उसके समक्ष गंभीर संकट पैदा कर सकता है। पाकिस्तानी जनरल आलीशान जिंदगी और सेवानिवृत्ति के बाद तमाम सुविधाओं के आदी हैं, ऐसे में वे भारत के साथ तल्ख संघर्ष नहीं पचा सकते।

पाकिस्तान के टुकड़े

अमेरिका में सामरिक रणनीतिकारों का एक वर्ग पाकिस्तान के टुकड़े करने की हिमायत करता है। इसमें बलूचिस्तान को स्वतंत्र देश बनाने के अलावा खैबर पख्तूनख्वा और फाटा के इलाकों का अफगानिस्तान में विलय की बात होती है जिससे पाकिस्तान केवल सिंध और पंजाब तक सीमित रह जाए। इससे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच एक बफर बनेगा, ईरान की दक्षिण-पूर्व सीमा पर पकड़ बढ़ेगी और ग्वादर बंदरगाह के जरिये कराकोरम को अरब सागर से जोड़ने के चीनी मंसूबे ध्वस्त होंगे। इस विचार को ब्रिटेन के फॉरेन पॉलिसी सेंटर ने आगे बढ़ाया है। इसे अमली जामा पहनाने के लिए भारत को अमेरिका और इजरायल के साथ मिलकर कोई पुख्ता योजना तैयार करनी चाहिए ताकि पाकिस्तान की परमाणु ताकत भी निष्प्रभावी हो जाए।

सिंधु जल समझौता नए सिरे से तय हो

भारत पानी को भी अपना हथियार बनाए। सिंधु जल समझौते को नए सिरे से तय करना चाहिए, क्योंकि मौजूदा स्वरूप में भारत को नुकसान है। पाकिस्तान जैसे दुश्मन को सभी रियायतें बंद की जानी चाहिए। भारत को विश्व शक्ति बनने की राह में सबसे बड़े रोड़े को निश्चित रूप से दूर करना चाहिए। हालात भी दुहाई दे रहे हैं कि उनका फायदा उठाया जाए।

( लेखक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी हैं )