सद्गुरु शरण। Sidhi Bus Tragedy स्वच्छता के प्रति अपने आग्रह एवं उपलब्धि को लेकर आत्ममुग्ध मध्य प्रदेश की एक और तस्वीर देखिए। यहां सीधी-शहडोल राजमार्ग पर एक ट्रक 13 फरवरी को दिन में खराब हो जाता है। इसके बाद स्वाभाविक रूप से राजमार्ग पर जाम लग जाता है। वाहन रेंग-रेंगकर जाम से निकलने का सफल-विफल संघर्ष करते हैं। धीरे-धीरे चार दिन गुजर जाते हैं। खराब ट्रक अब भी उसी जगह खड़ा है। जाम भी जारी है। 16 फरवरी की सुबह सीधी से 32 सीटर निजी बस 58 यात्री भरकर सतना के लिए रवाना हुई। आगे बढ़ने पर जाम की जानकारी मिलने पर ड्राइवर ने वैकल्पिक मार्ग चुनकर बस बाणसागर डैम की 22 फीट गहराई वाली मुख्य नहर की पटरी पर उतार दी। ड्राइवर सीधी से ही बस बहुत तेज गति से दौड़ा रहा था। बस में ठूंस-ठूंसकर भरे यात्रियों की सांसें थमी जा रही थीं।

जब बस नहर की संकरी पटरी पर पहुंची तो भयभीत यात्रियों ने ड्राइवर से रफ्तार कम करने की विनती की, पर ड्राइवर ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इस बीच एक ट्रक को पास करने के प्रयास में बस का पहिया नहर की ओर फिसला और देखते ही देखते बस नहर में गिरकर गहरे पानी में डूब गई। आसपास के ग्रामीणों ने किसी तरह सात यात्रियों को बचाया, जबकि बाकी 51 यात्रियों की मौत हो गई। पूरे प्रदेश को शोक में डुबा देने वाले हादसे के बाद राजमार्ग पर चार दिन से खराब खड़ा ट्रक हटाने की कवायद शुरू हुई और रात तक उसे हटाकर जाम खुलवा दिया गया। इस गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार मानते हुए ट्रक ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया गया। जाहिर है प्रशासन ने खुद को क्लीनचिट दे दी।

यह उसी मध्य प्रदेश की कहानी है जिसके कुछ कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी- कर्मचारी अपने शहर इंदौर को देश का स्वच्छतम शहर बनाने के लिए जुनून की हद पार कर जाते हैं। इंदौर और भोपाल की स्वच्छता के प्रति ललक का डंका देशभर में बज रहा है। ऐसी कई अन्य उपलब्धियां हैं जिनसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का आत्मविश्वास इस हद तक बढ़ जाता है कि वह मध्य प्रदेश को देश का नंबर एक प्रदेश बनाने का सपना देखने लगते हैं। इसी बीच सीधी बस हादसा यह मुनादी कर देता है कि स्वच्छता की उपलब्धि मध्य प्रदेश की प्रतिनिधि तस्वीर नहीं है। यही तंत्र सीधी-शहडोल राजमार्ग पर खराब खड़े ट्रक को हटवाने के लिए 51 मौतों का चार दिन इंतजार करता रहा।

विडंबना यह कि इसके लिए सिर्फ ट्रक ड्राइवर को दोषी माना गया। यदि कोई राजमार्ग चार दिन से जाम है तो क्या जाम हटवाने में प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं? प्रशासन संवेदनशील होता तो जाम उसी दिन खुल सकता था, जैसे हादसे के बाद खुला, पर आम आदमी की कठिनाइयों का समाधान प्रशासन के लिए कोई उपलब्धि नहीं होता। इससे प्रशासन को कोई लाभ नहीं होता। कुछ दिन पहले स्वच्छतम शहर इंदौर में भी तंत्र की गंदगी का नमूना दिखा था, जब अधिकारियों ने रास्तों के किनारे पड़े लावारिस भिक्षुकों को कूड़ा-कचरा की तरह वाहन में लादकर शहर के बाहर फिंकवा दिया था।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की समाज के विभिन्न वर्गो के लिए संवेदनशीलता जगजाहिर है। अपने सरोकारों की पूíत के लिए वह अथक परिश्रम करते हैं। इसीलिए नारी सशक्तीकरण, बालिका संरक्षण, कृषि उन्नयन और सामाजिक सद्भाव की दृष्टि से मध्य प्रदेश को अग्रणी प्रदेश माना जाता है, पर देश का नंबर एक प्रदेश बनना अलग बात है। इसके लिए हर अधिकारी-कर्मचारी में स्वच्छता मुहिम जैसा जुनून पैदा करना होगा। उन्हें दंड मिले या न मिले, पर सीधी बस हादसा उन अधिकारियों के मस्तक पर कलंक का टीका है, जो राजमार्ग पर खराब खड़े ट्रक को चार दिन नहीं हटवा पाए। ये अधिकारी तंत्र की सड़न और दरुगध हैं। इनकी वजह से प्रदेश का पूरा वातावरण खराब हो रहा है, इसलिए इन पर झाड़ू चलना बहुत जरूरी है।

प्रदेश के सामने शिक्षा, स्वास्थ्य, जनजातियों का सम्मान, किसानों की खुशहाली और अधिकारों के प्रति जागरूकता जैसी चुनौतियां हैं, जिनका मुकाबला संवेदनशील, कर्मठ, ईमानदार और जन-सरोकारी नौकरशाही ही कर सकती है। जो अधिकारी जन समस्याओं पर आंखें मूंद लें, वे प्रदेश को सिर्फ पीछे ले जा सकते हैं। यह तय किया जाना चाहिए कि राजमार्ग पर खराब खड़े ट्रक को तुरंत हटवाना किस अधिकारी की जिम्मेदारी थी? उसके लिए कठोर दंड का निर्धारण किया जाना चाहिए। ऐसा न किया गया तो किसी दिन फिर किसी रास्ते पर कोई ट्रक खराब होगा, रास्ता जाम होगा, फिर कोई हादसा होगा, फिर आंसू बहेंगे, मुआवजा बंटेगा और फिर अगले हादसे का इंतजार शुरू हो जाएगा। बेहतर है कि शासन नींद से जागे और 51 जिंदगियों के असली गुनहगार की गर्दन पर हाथ डाले अन्यथा हादसे रोके नहीं जा सकेंगे। जो व्यवस्था इतिहास से सबक नहीं लेती, वह इतिहास दोहराने को अभिशप्त होती है।

[संपादक, नईदुनिया, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़]