[ अंशुमान राव ]: आज किसी भी देश की आर्थिक ताकत उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा की सबसे बड़ी गारंटी बन गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा की इस अपरिहार्य अनिवार्यता को गति देने की गंभीरता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों में साफ दिखाई देती है। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सेना की शरारत वैश्विक कूटनीति में वर्चस्व बनाने के चीनी एजेंडे का हिस्सा भर नहीं है।

चीन अपनी आर्थिक ताकत के कारण विस्तारवादी सोच के घोड़े पर सवार है

वास्तव में चीन अपनी आर्थिक ताकत के कारण विस्तारवादी सोच के घोड़े पर सवार है। इस घोड़े को रोकने की क्षमता रखने वाले हर प्रतिद्वंद्वी को अस्थिर करने के लिए वह अपने आर्थिक और सैन्य संसाधनों का बेजा इस्तेमाल कर रहा है। वह भारत को अपनी विस्तारवादी नीति में सबसे बड़ा रोड़ा मानता है। चीन की कारस्तानियों पर ब्रेक लगाने के लिए सबसे जरूरी यह है कि हम आर्थिक रूप से उसे टक्कर देने की हालात में आएं। इसके लिए संरक्षणवाद के दौर से बाहर निकलकर भारत को दुनिया में विश्वसनीय प्रतिस्पर्धी निर्माण, व्यापार और लॉजिस्टिक का हब बनाना होगा, ताकि हम अगले 10-20 वर्षों तक अपनी विकास दर आठ से दस प्रतिशत बनाए रख सकें।

चीनी एप भारत में प्रतिबंधित होने से बीजिंग की छटपटाहट बढ़ी

बीते कुछ हफ्तों के दौरान मोदी सरकार ने चीनी एप को प्रतिबंधित करने से लेकर चीनी कंपनियों के भारत में कारोबार की राह मुश्किल करने के जो कदम उठाए हैं उससे बीजिंग की छटपटाहट बढ़ रही है। भारत के कदमों ने अमेरिका, ब्रिटेन समेत दुनिया के कई अहम देशों को भी चीन की आर्थिक साम्राज्यवादी मंशा को रोकने के लिए सजग किया है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने तो सार्वजनिक रूप से चीन के खिलाफ उठाए भारत के आर्थिक कदमों का अनुसरण करने की बात कही। एलएसी पर जारी तनाव को बातचीत से हल करने की पहल में भारत के कड़े आर्थिक कदमों की अहम भूमिका मानी जा रही है।

चीन पर चोट करने के लिहाज से आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य हासिल करना जरूरी 

चीन पर चोट करने के लिहाज से आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य हासिल करना बेहद जरूरी है। मोदी सरकार ने बीते छह साल में इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, मगर कई मोर्चों पर अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। इसमें सबसे अहम आयात और निर्यात के बीच करीब दोगुने के अंतर को पाटना है। भारत का सालाना आयात 620 अरब डॉलर तो निर्यात महज 330 अरब डॉलर ही है। चीन से व्यापार घाटे का अंतर ज्यादा चिंताजनक है। पिछले वर्ष चीन से 75 अरब डॉलर का आयात और 18 अरब डॉलर के निर्यात का आंकड़ा सुखद नहीं।

क्षमता के मामले में चीन हमसे बहुत आगे नहीं है

क्षमता के मामले में चीन हमसे बहुत आगे नहीं है, पर हमें इस पर गौर करना चाहिए कि खुद को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य तय करने के चार दशक में ही चीन ने उल्लेखनीय प्रगति की। जब हमारे पास दुनिया का सबसे युवा ही नहीं, बल्कि प्रतिभावान कार्यबल है तब भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता? दुनिया के अनुभवों को देखते हुए आत्मनिर्भर बनने के लिए हमें चीन के अलावा दूसरे देशों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बड़े पैमाने पर आकर्षित करने से गुरेज नहीं करना चाहिए।

श्रम कानूनों में बदलाव कर मोदी सरकर ने अच्छी शुरुआत की

श्रम कानूनों में बदलाव कर मोदी सरकर ने इस दिशा में अच्छी शुरुआत की है। इसी का नतीजा है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में भारत की स्थिति 2014 में 142वें के मुकाबले सुधरकर पिछले साल 63वें स्थान पर आ गई। इसमें सुधार की गुंजाइश अभी कितनी है, इसका खुलासा 2020 के र्आिथक सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चलता है। इसमें कहा गया है कि कोई भी अनुबंध लागू करने में भारत में जहां 1445 दिन लगते हैं, वहीं चीन में 496 तो न्यूजीलैंड में महज 216 दिन। टैक्स भुगतान के मामले में चीन के 138 घंटे की तुलना में भारत में 250 घंटे लगते हैं। ऐसी स्थितियों को सुधारने के लिए ही पीएम मोदी कड़े आर्थिक सुधार के कदमों से परहेज नहीं कर रहे। यह महज संयोग नहीं है कि आत्मनिर्भर भारत पैकेज का करीब 20 फीसद हिस्सा एमएसएमई सेक्टर को दिया गया है ताकि सबसे पहले लघु और मध्यम उद्योगों को चीन पर निर्भरता के शिकंजे से निकाला जा सके।

आर्थिक मोर्चे पर भारत-चीन शिखर के मुख्य प्रतिद्वंद्वी होंगे

नीतिगत आर्थिक सुधारों को पटरी पर लाने का ही असर है कि कोरोना से बुरी तरह प्रभावित होने के बावजूद दुनिया भर की रेटिंग एजेंसियां 2021 के वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की जोरदार वापसी की भविष्यवाणी कर रही हैं। प्राइस वाटरहाउस कूपर्स का आकलन है कि अगले कुछ दशकों में आर्थिक मोर्चे पर भारत-चीन ही शिखर के मुख्य प्रतिद्वंद्वी होंगे। तब निवेशक लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत को तानाशाही शासन वाले चीन से ज्यादा तरजीह देंगे।

विकास दर में चीन की स्थिति बेहतर, कर्ज के मामले में भारत की स्थिति बेहतर

यह सही है कि उद्योग, आधारभूत संरचना, विकास दर के मामले में चीन की स्थिति भारत से बेहतर है, मगर कर्ज की दृष्टि से चीन की स्थिति भारत से बेहतर नहीं है। चीन पर वर्तमान में दो ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है तो भारत पर 564 अरब डॉलर का।

चीन में श्रमशक्ति का बंटवारा कृषि, उद्योग में बराबर, भारत में कृषि पर 49 फीसद, उद्योग पर 20 फीसद

चीन में श्रमशक्ति का बंटवारा कृषि और उद्योग में करीब-करीब बराबर (33 फीसद) है, जबकि भारत में यह अंतर बहुत ज्यादा है। यहां कृषि पर 49 फीसद तो उद्योग पर 20 फीसद लोग निर्भर हैं। उद्योग में चीन हमसे आगे है तो सेवा क्षेत्र में हम चीन से बेहतर स्थिति में हैं। भारत की जरूरत कृषि पर निर्भरता कम करने और उद्योगों पर बढ़ाने की है।

लघु और मध्यम उद्योग से जुड़ा कच्चा माल चीन से आता है

खासकर कच्चे माल के आयात के क्षेत्र में हमें नए और बड़े प्रयास की जरूरत है। चाहे सिल्क हो या कांच निर्माण क्षेत्र, देश के ज्यादातर लघु और मध्यम उद्योग से जुड़ा कच्चा माल चीन से आता है।

आत्मनिर्भर भारत पैकेज को सही तरह जमीन पर उतारा गया तो चीनी आयात घटेगा

ऐसे में अगर आत्मनिर्भर भारत पैकेज को सही अर्थों में जमीन पर उतारा गया तो भविष्य में चीनी आयात तेजी से घटेगा। चीन के विस्तारवादी एजेंडे को रोकने के लिए आर्थिक समृद्धि की यही मिसाइल भारत के लिए सबसे कारगर हथियार है।

( लेखक आंध्र प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के अध्यक्ष रहे हैं )