[ए. सूर्यप्रकाश]। आखिरकार कांग्रेस में कुछ समझदारी भरे स्वर सुनाई पड़ रहे हैं। वर्ष 2014 में लोकसभा में अपने निम्नतम आंकड़े पर सिमटने के बाद से ही कांग्रेस हकीकत से मुंह मोड़कर सिर्फ अपशब्दों की राजनीति में जुटी थी। मगर अब कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ सदस्य अपने साथियों को वास्तविकता का सामना करने की सलाह दे रहे हैं।

जयराम रमेश कांग्रेस के समझदार नेताओं में से एक माने जाते हैं। अक्सर अपनी राजनीतिक निष्ठा को सुनिश्चित रखने वाले रमेश ने कहा कि हर समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खलनायक की तरह पेश करने से कांग्रेस का कोई भला नहीं होने वाला, क्योंकि उनका शासन पूरी तरह नकारात्मक नहीं है।

अभिषेक सिंघवी ने भी जयराम रमेश का दिया साथ
वह प्रधानमंत्री के सुशासन के एजेंडे और उज्ज्वला जैसी योजनाओं से खासे प्रभावित दिखे जिससे गरीब महिलाओं को रसोई गैस मिली और प्रधानमंत्री राजनीतिक रूप से ताकतवर हुए। कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता अभिषेक सिंघवी ने भी रमेश के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि मोदी को खलनायक की तरह पेश करना गलत था। मोदी सरकार के फैसलों की समीक्षा व्यक्ति नहीं, बल्कि मुद्दों पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उज्ज्वला उनके अच्छे कार्यों में से एक है।

इन दोनों नेताओं के ये बयान सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे पार्टी के शीर्ष नेताओं के रुख-रवैये से उलट हैं जो हर मुद्दे पर लगातार प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना में जुटे हैं। वास्तव में मोदी सरकार ने कई ऐसे अहम फैसले लिए हैं जिनकी देश भर में चहुंओर वाहवाही हुई, लेकिन नेहरू-गांधी परिवार की ओर से मोदी की तारीफ में एक बोल नहीं फूटा।

मोदी-शाह की जोड़ी द्वारा कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त करने के फैसले के बाद पार्टी नेताओं में अफरातफरी का माहौल है। पार्टी दिग्गजों में भारी दुविधा की जड़ें कांग्रेस की उस प्रतिबद्धता में हैं कि वह किसी भी कीमत पर अनुच्छेद 370 को कायम रखेगी।

पुराने रुख पर टिकी कांग्रेस 
इस साल अप्रैल में ही लोकसभा चुनावों के लिए अपने घोषणापत्र में उसने एलान किया था कि किसी भी सूरत में ‘संवैधानिक स्थिति' में बदलाव नहीं किया जाएगा। इस मसले पर स्वयं को ऐसे उलझाकर कांग्रेस अपने उसी पुराने रुख पर टिकी है जो मुद्दा भारत की एकता एवं अखंडता के लिए हमेशा से एक अवरोध रहा है। इसीलिए राहुल गांधी ने एलान किया कि एकतरफा जबरिया कदमों से राष्ट्रीय एकीकरण नहीं किया जा सकता। वहीं प्रियंका गांधी ने ट्वीट करके पूछा कि ‘क्या मोदी-शाह की सरकार मानती है कि भारत अभी भी एक लोकतंत्र है?’

राष्ट्रवादी विचारधारा से दूर होती कांग्रेस
अफसोस की बात है कि ऐसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर कांग्रेस अपना दिमाग लगाती नहीं दिख रही। उन्नीस सौ साठ के दशक के उत्तरार्ध में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी सरकार चलाने के लिए वामपंथियों की बैसाखी का मोहताज होना पड़ा तबसे पार्टी पर वामपंथी नेताओं और बुद्धिजीवियों की सोच हावी होती गई। इसका नतीजा यही निकला कि कांग्रेस ने अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा का चोला पूरी तरह उतार फेंका। मौजूदा दौर में भाजपा राष्ट्रवाद के खांचे में पूरी तरह फिट हो गई है और कांग्रेस को सूझ नहीं रहा कि वह आगे कौन सा कदम उठाए। 

परिणामस्वरूप, आप देखेंगे कि तमाम अहम मुद्दों पर कांग्रेस और कम्युनिस्टों के सुर एक जैसे सुनाई पड़ेंगे। राहुल गांधी के बाद पी चिदंबरम ने सरकार पर राज्य के साथ पक्षपात का आरोप लगाया। यह रुख सीताराम येचुरी जैसे तमाम वामपंथी नेताओं के जैसा ही था जो मांग कर रहे थे कि जम्मू-कश्मीर का पुराना दर्जा बहाल किया जाए। 

सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई पर भी संदेह
हालांकि अनुच्छेद 370 को लेकर पार्टी की प्रतिक्रिया को अलग करके नहीं देखा जाए। यह उसी शंकालु और अविश्वास भरे रवैये के अनुरूप है जिसमें पार्टी ने सुरक्षा बलों द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई को भी संदेह की दृष्टि से देखा। जहां पूरा देश सीमा पार आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने वाले हमारे सैनिकों के शौर्य और प्रतिबद्धता की प्रशंसा में जुटा था वहीं कांग्रेस यह दावा कर रही थी कि उसके शासनकाल में भी ऐसी कई सर्जिकल स्ट्राइक की गई थीं। हालांकि उसके इस दावे को ज्यादा भाव नहीं दिया गया।

जब महाराष्ट्र के एक कांग्रेसी नेता ने सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जी बताया तो चिदंबरम ने उसके सुबूत मांग लिए। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए कि वह सर्जिकल स्ट्राइक से सियासी फायदा बना रहे हैं। मानों इतना ही काफी नहीं था।

पी चिदंबरम ने भारतीय वायुसेना पर उठाए सवाल 
इस साल 26 फरवरी को बालाकोट में आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के ठिकानों पर भारतीय वायुसेना की साहसिक स्ट्राइक के बाद भी उनके इस रवैये में बदलाव नहीं आया। चिदंबरम ने इस पर सवाल उठाया कि वायुसेना के इस हमले में कितने आतंकी मारे गए। एक अन्य कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू तो एयर स्ट्राइक की मंशा पर ही सवाल खड़े करने लगे। इसे चुनावी तिकड़म तक बताया गया। अब सामाजिक कल्याण की दिशा में मोदी सरकार की कुछ अहम योजनाओं की अभूतपूर्व सफलता पर भी गौर किया जाए।

उज्जवला योजना की शानदार सफलता
इनमें उज्ज्वला योजना बाजी पलटने वाली साबित हुई है जिसके तहत छह करोड़ परिवारों को रसोई गैस मुहैया कराई गई है। अगले एकाध साल में दो करोड़ परिवारों को भी इसका लाभ उपलब्ध कराने की तैयारी हो रही है। गरीब परिवारों को सालाना पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा आवरण भी दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है। ऐसे ही गरीबों के लिए जन-धन खाते की योजना को शानदार सफलता मिली जिसके तहत 36 करोड़ नए बैंक खाते खुले। यह भी एक विश्व कीर्तिमान है।

ऐसी तमाम योजनाएं हैं जिनकी मोदी सरकार ने संकल्पना पेश कर उन्हें अमली जामा पहनाया, लेकिन नेहरू गांधी परिवार ने कभी इनमें से किसी योजना के प्रभाव को स्वीकार करना गवारा नहीं समझा। उनसे संकेत लेते हुए कांग्रेस के तमाम नेताओं ने इन योजनाओं में मीनमेख निकालने में ही अपना ज्यादा वक्त जाया किया। यह उन तमाम लोगों को जरा भी रास नहीं आया जिन्हें इन योजनाओं से फायदा पहुंचा था।

नेहरू-गांधी परिवार की असहिष्णुता
सरदार पटेल और डॉ. बीआर आंबेडकर के दिनों से ही अन्य राष्ट्रीय नायकों की उपलब्धियों के प्रति नेहरू-गांधी परिवार की असहिष्णुता अब एक स्थापित सत्य बन चुकी है और हाल के वर्षों में इसकी पर्याप्त रूप से पुष्टि हुई है। कई दशकों तक परिवार इस खेल को खेलकर बच निकलता रहा, लेकिन अब लोग उनकी इस संकीर्णता और ईर्ष्या भाव को समझने लगे हैं।

जयराम रमेश ने कांग्रेस को दिखाया रास्ता
इससे भी बढ़कर यह बात रही कि जनजागरूकता ने इस परिवार के लिए चुनावी सफलता का रास्ता सिकोड़ दिया है। अगर कांग्रेस अपना सियासी नुकसान कम करना चाहती है तो सरकारी घोषणाओं एवं योजनाओं पर उसे अपनी प्रतिक्रिया और विश्वसनीय बनानी होगी। जयराम रमेश ने इसका रास्ता दिखाया है। उम्मीद है कि अन्य नेता भी उनका अनुसरण करेंगे।


(लेखक प्रसार भारती के चेयरमैन एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)