नरपतदान चारण। कोविड वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रोन के आसन्न संकट को देखते एक बार फिर से अनेक प्रकार की आशंकाएं गहराने लगी हैं। इसके कारण सबसे पहले बच्चों के दुष्प्रभावित होने की आशंका को देखते हुए आफलाइन स्कूली शिक्षा को एक बार फिर रोकने का खतरा मंडराने लगा है। पिछले दो वर्षो से जारी महामारी के कारण देश में अभी कुछ माह से ही आफलाइन कक्षाओं का आरंभ हुआ था। अब फिर से स्कूलों के बंद होने और आनलाइन कक्षाओं के आरंभ होने की खबरें आ रही हैं।

चंडीगढ़ शिक्षा विभाग ने पिछले माह ही सभी स्कूलों को बंद करने की घोषणा की। वहीं दिल्ली सरकार ने भी कोरोना संक्रमण के तेजी से बढ़ते मामलों को देखते हुए स्कूलों को बंद कर दिया है और बच्चों को फिर से आनलाइन शिक्षण की ओर धकेल दिया है। यहां धकेलना इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि आनलाइन शिक्षण को लेकर हमारे यहां कोई शोध अध्ययन, तय मानक और पर्याप्त तकनीकी तंत्र विकसित नहीं था, केवल मजबूरीवश इसे अपनाया गया। पूर्व में न केवल हमारे देश में, बल्कि पूरी दुनिया में कभी भी आनलाइन शिक्षण के दूरगामी प्रभावों को लेकर विचार-विमर्श नहीं किया गया।

बहरहाल, दिल्ली में स्कूलों के बंद होने के बाद दूसरे राज्यों के अभिभावकों की चिंता बढ़ने लगी है। कोविड संक्रमण के कारण जब आनलाइन शिक्षण शुरू हुआ, तो एक समय बाद इसके कई नकारात्मक प्रभाव देखने में आ रहे हैं। हालांकि अल्पावधि के लिए आनलाइन शिक्षण का उपयोग इतना खतरनाक नहीं रहा, जितना इसके लंबे समय तक उपयोग के कारण खतरे सामने आ रहे हैं। इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दिखाई देने लगा है।

स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटाप, कंप्यूटर आदि के स्क्रीन पर लंबी अवधि तक समय बिताने से बच्चों में मानसिक तनाव, हताशा, व्यग्रता आदि नकारात्मक प्रभाव परिलक्षित हो रहे हैं। इस संबंध में हाल ही में कनाडा में हुआ शोध देखा जाना चाहिए जिसका निष्कर्ष बेहद डराने वाला है। टोरंटो स्थित -हास्पिटल फार सिक चिल्ड्रेन- के विशेषज्ञों ने अपने अध्ययन में विभिन्न प्रकार के स्क्रीन टाइम उपयोग और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध होने का अध्ययन किया है। इसमें बताया गया है कि आनलाइन शिक्षण के कारण बड़े बच्चों में अवसाद और अति व्यग्रता बढ़ने का खतरा बहुत बढ़ गया है।

कनाडा में महामारी के दौरान दो हजार स्कूली छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट के विश्लेषण से यह बात सामने आई है। इस रिपोर्ट की खास बात यह है कि यह इन छात्रों के अभिभावकों ने ही उपलब्ध कराई थी। रिपोर्ट के डाटा विश्लेषण में उन्होंने पाया कि बड़ी उम्र के छात्रों में अभिभावकों द्वारा दी गई रिपोर्ट और अवसाद एवं व्यग्रता बढ़ने के बीच स्पष्ट संबंध है। अध्ययन में शामिल विशेषज्ञों ने यह भी पाया कि महामारी के दौरान छोटे बच्चों में अधिक देर तक स्क्रीन पर समय बिताने से, जिसमें पढ़ाई के साथ ही अन्य गैर शैक्षणिक गतिविधियों जैसे, गेम खेलने से भी भारी मात्रा में अवसाद, व्यग्रता और व्यवहार संबंधी अनेक समस्याएं देखी गई।

स्मार्टफोन, टीवी या डिजिटल मीडिया में अधिक समय देने वाले बड़े बच्चों में गहरे अवसाद, व्यग्रता और असावधानी की समस्याएं देखी गई। उन्होंने कहा कि इस तरह समस्याएं लंबे समय तक स्क्रीन पर बैठने और सामाजिक संपर्क के लिए बहुत कम समय देने के कारण हो सकती हैं। इस तरह इस रिपोर्ट से शोधकर्ताओं ने यह स्पष्ट संकेत दिया कि कोविड महामारी के कारण किए गए शैक्षिक बदलावों से बच्चों की दिनचर्या और मानसिकता में बड़ा बदलाव आया है। लिहाजा हमारे देश में भी आनलाइन शिक्षा के बच्चों पर प्रभाव को लेकर एक व्यापक शोध कार्य किया जाना चाहिए, ताकि हम समय रहते उसके व्यावहारिक असर अवगत हो सके।

अभिभावकों की राय : सरकार को स्कूलों को बंद करने से पहले अभिभावकों की राय जाननी चाहिए। अभिभावकों के निर्णय को जानने के लिए लिखित में फार्म भरवा कर सर्वे किया जाना चाहिए। उसके बाद ही स्कूलों को बंद करने या नहीं करने जैसा कोई बड़ा निर्णय लिया जाना चाहिए। इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि अधिकांश अभिभावकों का कहना है कि सावधानी के साथ स्कूली कक्षाएं चालू रखनी चाहिए। ध्यान यह रखना है कि स्कूल संचालकों को समयानुकूल व्यवहार का सख्ती से पालन करना चाहिए। साथ ही शासन प्रशासन द्वारा बराबर निगरानी की जाए तो संभावित खतरे से बचा जा सकता है।

कई अन्य विकल्पों के बारे में भी सोचा जाना चाहिए। सम-विषम के आधार पर बच्चों की स्कूल में उपस्थिति को सुनिश्चित किया जा सकता है। इससे छात्र नियमित कक्षा से जुड़े रह सकते हैं। वहीं जो अभिभावक चाहते हैं कि उनका बच्चा घर पर ही आनलाइन माध्यम से पढ़ाई करे तो उसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था को जारी रखा जाना चाहिए। बच्चा अपनी सुविधा के अनुसार आनलाइन शिक्षा ग्रहण करे इसका पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए, ताकि बच्चों की बड़ी संख्या को आनलाइन स्टडी के मानसिक दुष्प्रभाव से बचाया जा सके।

बच्चों की स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी : यह जरूरी नहीं कि जो बच्चे हमेशा घर के भीतर ही रहते हैं वे कोरोना से संक्रमित नहीं हो सकते। यहां स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक महत्वपूर्ण बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिसमें उन्होंने यह आशंका व्यक्त की है कि बच्चों को घर पर ही रखना भी इस बात की गारंटी नहीं है कि वे कोविड संक्रमित नहीं होंगे। घर में अक्सर स्वजन और दूसरे पारिवारिक सदस्य भीड़भाड़ वाली जगहों जैसे बाजार, कार्यस्थल, कार्यक्रम आदि में जाने के अलावा रिश्तेदारों और मित्रों से मिलते रहते हैं। फिर वे जब घर पर आते हैं तो बच्चों से उनकी मुलाकात संक्रमण की आशंका को बढ़ा देती है।

वैसे भी घरों में कोविड प्रोटोकाल का पालन सख्ती से नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यहां उनका मामला काफी हद तक निजी हो जाता है। इसलिए सर्वोत्तम उपाय यही है कि बच्चों का टीकाकरण जल्द से जल्द शुरू करके शिक्षण संस्थानों को आफलाइन पढ़ाई के लिए चालू रखा जाना चाहिए। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा को लेकर निर्णय किया जाना चाहिए।

(लेखक शैक्षिक मामलों के जानकार हैं)