[ए. सूर्यप्रकाश]। देश में लोकतंत्र एवं विधि के शासन पर भरोसा करने वालों को शिवसेना के उन कुत्सित तौर-तरीकों की कड़ी निंदा करनी चाहिए, जिनके तहत पार्टी नेताओं ने न केवल कंगना रनोट पर अनापशनाप टिप्पणियां कीं, बल्कि उनकी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया। यह पूरे देश ने देखा कि कथित अनियमितताओं का नोटिस भेजकर किस तरह महज 24 घंटों में ही पाली हिल स्थित कंगना के दफ्तर को गिरवा दिया। इसके लिए हिमाचल से उनके मुंबई आगमन का इंतजार तक नहीं किया गया।

राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अभिनेत्री को धमकाने वालों में राज्य के गृहमंत्री भी शामिल रहे। यह एक किस्म के गुंडाराज की ही निशानी है। हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कंगना का बचाव कर उचित ही किया। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के रवैये की निंदा करते हुए कंगना को बदले की राजनीति का शिकार बताया। ठाकुर ने केंद्र से कंगना के लिए वाई श्रेणी सुरक्षा देने का अनुरोध किया, ताकि मुंबई में उनकी हिफाजत हो सके, जिसे केंद्र ने स्वीकार भी कर लिया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को दीवार पर लिखी इबारत पढ़ लेनी चाहिए कि दूसरे राज्यों के लोगों के साथ शिवसैनिकों का ऐसा व्यवहार देश की जनता को बर्दाश्त नहीं होगा।

बीएमसी को एकदम सही लताड़ लगाई बंबई हाईकोर्ट ने

बंबई हाईकोर्ट ने बीएमसी को कंगना का दफ्तर गिराने की कार्रवाई पर एकदम सही लताड़ लगाई। अदालत ने कहा कि इसमें बदले की बू आती है। बीएमसी जिसे अवैध निर्माण बता रही, वह रातोंरात नहीं हुआ। हालांकि निगम की नींद अचानक ही टूटी। उसने कंगना को तब नोटिस जारी किया जब वह शहर से बाहर थीं और नोटिस के महज 24 घंटों के भीतर तोड़फोड़ की कार्रवाई भी कर दी गई। यह बीएमसी के दुर्भावनापूर्ण रवैये की ओर संकेत करता है। अदालत ने इसका भी संज्ञान लिया कि बीएमसी के वकील समय पर नहीं पहुंचे और जब बीएमसी आयुक्त से संपर्क का प्रयास किया गया तो उनका फोन बंद मिला। इस बीच तोड़-फोड़ जारी रही।अदालत ने इस पर हैरानी जताई कि क्या बीएमसी अन्य अवैध निर्माणों पर भी ऐसी तत्परता के साथ कार्रवाई करेगी?

मुंबई उसकी मिल्कियत नहीं

अपने आदेश में अदालत ने इसका संज्ञान लिया कि बीएमसी ने तोड़फोड़ को अंजाम देने से पहले याचिका पर सुनवाई में अड़ंगा लगाने के तमाम प्रयास किए। यह कार्यपालिका की उद्दंडता और न्यायपालिका के प्रति उसके अनादर को ही दर्शाता है। शिवसेना को यह बताना होगा कि मुंबई उसकी मिल्कियत नहीं, क्योंकि लंबे अर्से से वह यही मुगालता पाले हुए है। जब मराठी भाषा के आधार पर एक अलग राज्य के निर्माण की मुहिम चल रही थी तो तमाम मराठियों ने ही बंबई को केंद्रशासित प्रदेश बनाने का सुझाव दिया था, क्योंकि यहां गुजराती और अन्य तबकों का भी ऊंचा दांव लगा हुआ था।

मुंबई के कॉस्मोपॉलिटन स्वरूप और अहम भौगोलिक स्थिति

तबसे शहर का जनसांख्यिकी स्वरूप कॉस्मोपॉलिटन बना हुआ है और शिवसेना द्वारा स्थानीय स्तर पर खूब जहर घोलने के बावजूद शहर ने अपना अंतरराष्ट्रीय स्वभाव नहीं गंवाया। मुंबई के कॉस्मोपॉलिटन स्वरूप और अहम भौगोलिक स्थिति के चलते ही इसे केंद्र शासित इकाई बनाने की पुरजोर कोशिशें हुई थीं। गुजरात रिसर्च सोसायटी के प्रेसिडेंट ने भाषाई आधार पर पर राज्यों के गठन की संभावना तलाशने वाले आयोग के समक्ष प्रतिवेदन में कहा था कि मराठी भाषी राज्य हकीकत का रूप अवश्य ले, परंतु बंबई का प्रशासन केंद्र के हाथ में होना चाहिए।

इस प्रतिवेदन में यह भी कहा गया था, ‘बंबई शहर, उसका बंदरगाह और उपनगरीय इलाकों को मिलाकर एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए। बंबई अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण वाला शहर है, जहां पूरे भारत के अलावा दूसरे देशों से भी लोग आकर अपना योगदान देते हैं। लिहाजा बंबई जैसे अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह की कमान उस राज्य को देना उचित नहीं होगा, जो संकीर्ण भाषाई आधार पर बना हो।’ ये बातें आज भी उतनी ही खरी हैं। मुंबई क्षुद्र एवं संकीर्ण राजनीति करने वाले शिवसेना नेताओं की बपौती नहीं।

कंगना ने शिवसेना के गुंडागर्दी के तौर-तरीकों पर किया हमला

शिवसेना कंगना को इसके लिए कठघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रही है कि उन्होंने मुंबई, महाराष्ट्र और मराठी लोगों का अपमान किया है। यह निराधार है। कंगना ने इनमें से किसी पर भी हमला नहीं किया। उन्होंने शिवसेना के गुंडागर्दी भरे तौर-तरीकों पर हमला किया है। शिवसेना गुंडाराज को प्रश्रय देकर देश के सबसे उदार शहर को नफरत के सैलाब में बहाने पर आमादा है। शिवसेना का यह मुगालता भी दूर किया जाना चाहिए कि वह छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत की इकलौती उत्तराधिकारी है। दुनिया भर में फैले भारतीय शिवाजी को सर्वकालिक महानतम राजाओं में गिनते हैं। उन्हें भारतीय राष्ट्रवाद का प्रतीक पुरुष भी माना जाता है। भारतीय सभ्यता के मूल्यों की रक्षा में अपने पराक्रम से अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें भारतीयों द्वारा सराहा जाता है। ऐसे में शिवसेना द्वारा उन्हें केवल मराठी अस्मिता तक सीमित रखने के प्रयासों का अवश्य ही प्रतिकार किया जाना चाहिए।

अपने सपनों का पीछा करते हुए लोग मुंबई पहुंचे

अब शिवसेना नेता यह कह रहे हैं कि मुंबई ने फिल्म और टीवी से जुड़े कलाकारों को आखिर क्या नहीं दिया? यह बताते हुए वे यह क्यों भूल जाते हैं कि इन शख्सियतों ने मुंबई को क्या दिया? मुंबई आज जिस मुकाम पर है, उसमें कारोबार से लेकर मनोरंजन जगत की बेहतरीन प्रतिभाओं का अहम योगदान है, जिन्होंने अपने उद्यम और निवेश से यहां बड़ा साम्राज्य खड़ा किया और करोड़ों लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध कराया। गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और केरल से लेकर देश के तमाम हिस्सों के लोग अपने सपनों का पीछा करते हुए मुंबई आए और अपनी मेहनत के दम पर इसे एक मुकाम पर पहुंचाया। अगर गुजरातियों को बाहर निकाल दिया जाए तो मुंबई के कारोबारी जगत में क्या शेष रह जाएगा? इसी तरह पंजाबियों के बिना बॉलीवुड की क्या स्थिति होगी?

ऐसे में शिवसैनिकों को वापस अपने खोल में लौटना होगा। यदि वे अपनी क्षुद्र राजनीति पर अड़े रहते हैं तो पूरे देश की दुश्मनी मोल ले लेंगे। यह एक बड़ी त्रासदी है कि बालासाहब ठाकरे के जीवनकाल में भारतीय राष्ट्रवाद पर अडिग रहने वाली शिवसेना अब अपनी छाया मात्र रहकर सोनिया सेना बन गई है। अगर उसके तेवर नरम नहीं पड़ते तो उसे और राज्यों एवं उनके मुख्यमंत्रियों का कोप झेलना होगा। भारत माता को यह कभी बर्दाश्त नहीं होगा कि उनके मुकुट पर सजा मुंबई जैसा माणिक कुपात्रों के हाथ में चला जाए।

(लेखक लोकतांत्रिक विषयों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)