[ संजय गुप्त ]: करीब दो साल पहले पठानकोट एयरबेस और फिर उड़ी में भारतीय सेना के शिविर पर पाकिस्तान पोषित आतंकियों के हमलों के बाद मोदी सरकार के लिए यह आवश्यक हो गया था कि वह इस पड़ोसी देश को सबक सिखाए। आखिरकार 28-29 सितंबर, 2016 की रात भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की। सेना की इस साहसिक कार्रवाई ने जहां भारत को गर्व का अहसास कराया वहीं पाकिस्तान को मुंह छिपाने के लिए मजबूर किया। इस कामयाब सैन्य अॉपरेशन में कई पाकिस्तानी सैनिकों समेत करीब तीन दर्जन आतंकी मारे गए, जबकि भारत को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ।

सीमा पार इस तरह की कार्रवाई काफी कठिन और जोखिम भरी मानी जाती है, लेकिन भारतीय सेना के एक दस्ते ने इसे सफलता से कर दिखाया। इस कार्रवाई से पाकिस्तान को यह संदेश गया कि अगर जरूरत पड़ी तो भारतीय सेना लक्ष्मण रेखा पार करने से भी नहीं हिचकेगी। ध्यान रहे पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर में आतंकियों के कई अड्डे बना रखे हैं। इन आतंकी अड्डों का एकमात्र मकसद जम्मू-कश्मीर में अस्थिरता फैलाना है। भारत इन आतंकी अड्डों को लेकर पाकिस्तान को लगातार चेतावनी देता रहा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसे बेनकाब भी करता रहा, लेकिन न तो उसने भारत की चिंताओं पर ध्यान दिया और न ही विश्व बिरादरी ने।

एक शांति प्रिय लोकतांत्रिक देश होने के कारण भारत ने किसी पड़ोसी देश के प्रति कभी आक्रामकता नहीं दिखाई। सीमा पार कर सर्जिकल स्ट्राइक उस अति का नतीजा थी जो पाकिस्तान आतंक का सहारा लेकर कर रहा था। पहले की तमाम सरकारों ने इसी नीति का अनुसरण किया कि नियंत्रण रेखा पार कर सैन्य कार्रवाई नहीं करनी। इसकी एक वजह यह रही कि वे ऐसी किसी कार्रवाई से युद्ध भड़कने का जोखिम नहीं लेना चाहती थीं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान से यह कहने में कभी परहेज नहीं किया कि अगर उसने दुस्साहस नहीं छोड़ा तो उसे मुंह की खानी पड़ेगी। इसी नीति के तहत सर्जिकल स्ट्राइक हुई और संघर्ष विराम उल्लंघन की हर घटना का कड़ा जवाब दिया जा रहा है।

सभी इससे अवगत हैैं कि सर्जिकल स्ट्राइक के समय कांग्रेस समेत कुछ दलों ने किस तरह हायतौबा मचाई थी। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ यह बयान तक दे दिया था कि वह सैनिकों के खून की दलाली कर रहे हैैं। कुछ विपक्षी नेता तो सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत ही मांगने लग गए थे। इस पर हैरानी है कि पिछले हफ्ते जब विभिन्न टीवी चैनलों ने सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो दिखाए तो कांग्रेस फिर से आपत्ति जताने आगे आ गई।

कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो सामने आने पर कहा कि मोदी सरकार सेना के शौर्य और पराक्रम का इस्तेमाल राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए कर रही है। उन्होंने इसे राजनीतिक फायदे की बेशर्म कोशिश भी करार दिया, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि कुछ दल ही तो इसके प्रमाण मांग रहे थे तो वह कोई सीधा जवाब नहीं दे सके।

कुछ और दलों के नेताओं ने भी सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो सामने आने पर शर्मनाक तरीके से आपत्ति जताई और सरकार पर सवाल दागे। सरकार की ओर से इन सवालों का जवाब केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दिया। उन्होंने खून की दलाली वाले बयान का उल्लेख करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से न केवल यह पूछा कि क्या सर्जिकल स्ट्राइक नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह सवाल भी दागा कि क्या सेना का मनोबल तोड़ना ही कांग्रेस का एकमात्र उद्देश्य बचा है?

सेना के पराक्रम पर हर देशवासी गर्व करता है तो इसीलिए कि उसी की वजह से सभी चैन की नींद सोते हैैं। हमारी सेना किसी भी तरह के संकट के समय लोगों की सेवा के लिए कोई कोर कसर नहीं उठा रखती। सेना की गौरव गाथाएं आम लोगों को न केवल गर्व की अनुभूति कराती हैैं, बल्कि देशप्रेम का जज्बा भी पैदा करती हैैं। न जाने कितने परिवार हैैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी सेना में शामिल होकर देश की सेवा करने के लिए तैयार रहते हैैं। अगर सेना के पराक्रम की गाथाओं से आम जनता परिचित नहीं होगी तो फिर युवा सैनिक बनकर देश की सेवा करने के लिए कैसे प्रेरित होंगे?

राजनीतिक दलों को यह पता होना चाहिए कि सेना में तमाम पद इसलिए रिक्त हैैं, क्योंकि अपेक्षित संख्या में योग्य एवं सक्षम युवा सैन्य अफसर बनने के लिए आगे नहीं आ रहे हैैं। यह स्थिति यही संकेत करती है कि युवा सेना में जाने के लिए उतने प्रेरित नहीं हो पा रहे हैैं जितना उन्हें होना चाहिए। आखिर किसी को भी सर्जिकल स्ट्राइक अथवा सेना के अन्य किसी पराक्रम का विवरण सामने आने पर आपत्ति क्यों होनी चाहिए और वह भी तब जब सेना सर्जिकल स्ट्राइक की अपनी कार्रवाई को सार्वजनिक करने के पक्ष में हो?

आज इसकी आवश्यकता बढ़ गई है कि सेना के साहसिक अभियानों का यथासंभव प्रचार-प्रसार हो। इन अभियानों के वीडियो भी बनने चाहिए और साथ ही डाक्यूमेंट्री और फीचर फिल्में भी- ठीक वैसे ही जैसे कारगिल संघर्ष पर फिल्म बनी। अपने देश में करीब-करीब हर युद्ध पर फिल्में बनाई गई हैैं और इनमें से कुछ तो कालजयी श्रेणी में आती हैैं। यदि मोदी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो सामने आने की इजाजत दी तो इसमें अनुचित क्या है?

कांग्रेस के यह कहने का कोई मतलब नहीं कि सितंबर, 2016 सरीखी सर्जिकल स्ट्राइक मनमोहन सरकार और उसके पहले वाजपेयी सरकार के समय भी की गई थी। नि:संदेह की गई होगी, लेकिन उन्हें सार्वजनिक करने का भी अपना मूल्य-महत्व होता है। यह सरकार ही तय करती है कि कब किस सैन्य कार्रवाई को गोपनीय रखना है कब किसे सार्वजनिक करना है? यदि मोदी सरकार ने दो साल पहले पाकिस्तान के खिलाफ की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में दुनिया को अवगत कराना जरूरी समझा तो इसके कुछ खास कारण थे और सबसे बड़ा कारण तो पाकिस्तान को यह सख्त संदेश देना था कि अगर वह भारत विरोधी हरकतों से बाज नहीं आता तो भारतीय सेना हाथ पर हाथ रखकर बैठने वाली नहीं है। आखिर इस फैसले पर आपत्ति जताने का क्या मतलब? सरकारों का तो हर फैसला राजनीतिक ही होता है।

राष्ट्रीयता सदैव भाजपा के एजेंडे में शीर्ष पर रही है और इसी कारण राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के प्रति उसका विशेष आग्रह रहता है। इसी तरह वह भारत के प्राचीन दर्शन और मूल्यों को प्राथमिकता प्रदान करती है। उसके नेता पौराणिक प्रसंगों का उल्लेख करते ही रहते हैैं। खुद प्रधानमंत्री आम तौर पर अपने संबोधन का समापन भारत माता की जय से करते हैैं। कांग्रेस एवं वाम दल इन सबको हिंदूवादी बताते हैैं तो भाजपा इसे भारतीयता कहती है। भले ही कांग्रेस और वाम दल वंदेमातरम और भारत माता की जय का उद्घोष करने में संकोच करें, लेकिन भाजपा तो राष्ट्रीयता के इन प्रतीकों का महिमामंडन करने के लिए ही जानी जाती है। यदि कांग्रेस और वामदल यह चाह रहे हैैं कि भाजपा का राजनीतिक नजरिया उनके जैसा हो जाए तो यह उनकी बेजा सोच है।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]