नई दिल्ली [अनंत विजय]। हिंदी फिल्मों के इतिहास में सलीम-जावेद की ऐतिहासिक जोड़ी को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। डेढ़ दशक तक एक साथ फिल्में लिखने वाली जोड़ी जिसने ‘शोले’, ‘दीवार’, ‘जंजीर’ और ‘डॉन’ जैसी सुपर हिट फिल्में लिखीं। वर्ष 1981 में ये जोड़ी टूटी और दोनों अलग हो गए। बताया गया कि दोनों में मनभेद हो गया था जिसकी वजह से वे अलग हो गए।

सलीम-जावेद के बीच मतभेद तो स्क्रिप्ट को लेकर भी होते रहते थे और दोनों घंटों माथापच्ची करते थे। फिल्म ‘दीवार’ का वो प्रसिद्ध संवाद ‘मेरे पास गाड़ी है, बंगला है, तुम्हारे पास क्या है’ के जवाब में यह लिखना कि ‘मेरे पास मां है’ को लेकर भी दोनों के बीच घंटों चर्चा हुई थी। सलीम खान ने कहीं लिखा भी है कि इस वाक्य पर पहुंचने के लिए दोनों ने मिलकर करीब पचास ड्राफ्ट फाड़े थे, तब जाकर ये पंक्ति निकल कर आ पाई थी।

पिछले करीब 39 वर्षो से सलीम खान और जावेद अख्तर की राय किसी मुद्दे या व्यक्ति पर एक रही हो ऐसा सार्वजनिक रूप से एक बार ही सामने आ पाया है। वह व्यक्ति हैं फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह। कुछ दिनों पहले एक साहित्य उत्सव में जावेद अख्तर ने नसीर के बारे में कहा था, ‘नसीर साहब को कोई सक्सेसफुल आदमी नहीं पसंद है, अगर कोई पसंद हो तो उसका नाम बताएं कि यह आदमी मुझे बहुत अच्छा लगता है, हालांकि सक्सेसफुल है।

मैंने तो आज तक सुना नहीं। वह दिलीप कुमार की आलोचना करते हैं, अमिताभ बच्चन को क्रिटिसाइज करते हैं, हर आदमी जो सक्सेसफुल है वह उनको भला नहीं लगता।’ जावेद साहब ने यह तब कहा था जब नसीर ने राजेश खन्ना को औसत कलाकार कहकर मजाक उड़ाया था। उसी समय सलीम खान ने भी नसीरुद्दीन शाह को कुंठित और कड़वा व्यक्ति कहा था। इस पर सलीम-जावेद सहमत थे कि नसीरुद्दीन शाह कुंठित हैं। आप समझ सकते हैं कि यह मुद्दा कितना अहम होगा जिस पर सलीम खान और जावेद अख्तर एक बार फिर से सलीम-जावेद नजर आते हैं या यह बात सत्य के कितने करीब होगी जिस पर चार दशक तक एक दूसरे से दूरी रखनेवाले दो लेखक एक राय रख पाते हैं।

नसीरुद्दीन शाह ने अनुपम खेर के बारे में अनाप-शनाप बोलकर विवाद खड़ा करने की कोशिश की है। नसीर ने कहा कि अनुपम खेर जोकर हैं और उनको गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। खुशामद उनके स्वभाव में है। नसीरुद्दीन शाह ने अनुपम खेर के खून को भी सवालों के घेरे में लिया और बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की। अनुपम खेर ने चंद घंटों में ही नसीर को आईना दिखा दिया। लेकिन जिस तरह की शब्दावली का उपयोग नसीरुद्दीन शाह ने किया वह निहायत घटिया है और वह नसीर के संस्कारों पर भी सवाल खड़े करती है। मैंने जब नसीरुद्दीन शाह का अनुपम को लेकर दिया बयान सुना तो उनकी पुस्तक का एक प्रसंग ध्यान आया। पुस्तक का नाम है- एंड दैन वन डे।

यह पुस्तक 2014 में प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तक नसीरुद्दीन शाह की लगभग आत्मकथा है, हालांकि इसको संस्मरण के तौर पर पेश किया गया है। इसमें नसीर ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में रहने के दौरान के स्वयं से जुड़े प्रसंगों को विस्तार दिया है। इसके एक अध्याय ‘द वूमेन विद द सन इन हर हेयर’ में उन्होंने स्वीकार किया है कि वहां उनको अपने से करीब पंद्रह साल बड़ी पाकिस्तानी लड़की परवीन से इश्क हो गया। इश्क की इस पूरी दास्तां को पढ़ने के बाद कहीं प्रत्यक्ष और कहीं परोक्ष रूप से नसीर ने यह लिखा है कि उस वक्त परवीन उनकी जरूरत थी। उनके अंदर विश्वास पैदा करने में, उनको गढ़ने में परवीन ने अहम भूमिका निभाई।

नसीरुद्दीन और परवीन का इश्क परवान चढ़ने लगा था और नसीर हर दिन यह महसूस करने लगे थे कि परवीन उनके लिए और उनके करियर के लिए कितनी अहम है। परवीन उस वक्त अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में डॉक्टरी पढ़ रही थी और नसीर रंगकर्म की दुनिया में आगे बढ़ना चाहते थे। उन्हें किसी सहारे की जरूरत थी जो परवीन ने उन्हें दिया। इस सहारे को दोनों ने सहमति से रिश्ते में बदलने की बात सोची और दोनों ने शादी कर ली।

दोनों का दांपत्य जीवन ठीक-ठाक चल रहा था। दोनों की शादी के दस महीने के अंदर ही परवीन ने एक बेटी को जन्म दिया। इस बीच नसीर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली पहुंच गए थे। परवीन अलीगढ़ में रह रही थी और नसीर दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में अपने करियर को परवान चढ़ाने में लगे थे। नसीर ने अपनी इस किताब में माना है कि दिल्ली में रहने के उस दौर में वह बेहद असुरक्षित महसूस करते थे जिस कारण उनका यह रिश्ता लंबा नहीं चल पाया। दिल्ली में रहनेवाले नसीर की प्राथमिकताएं बदल गई थीं, दोस्त भी। नए रिश्ते भी पनपने लगे थे। नसीर को लगने लगा था कि उनके करियर में शादी और बच्चे दोनों बाधा हो सकते हैं।

अपने करियर को तमाम रिश्तों पर प्राथमिकता देनेवाले नसीर को नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा पहुंचने के बाद शादी और बच्चा दोनों बोझ लगने लगे थे, लिहाजा उन्होंने परवीन से दूरी बनानी शुरू कर दी। नसीर का यह रुख उसके व्यवहार में भी दिखने लगा था। उन्होंने अलीगढ़ जाना कम कर दिया था, परवीन के पत्रों के उत्तर देने कम कर दिए थे। जब परवीन उनसे मिलने दिल्ली आई तब भी नसीर ने बहुत बेरुखी से उनसे बातचीत की। परवीन ने नसीर से प्रार्थना की कि एक बार फिर से पति-पत्नी के रिश्ते को हरा करने की कोशिश करते हैं, लेकिन नसीर का रुख नकारात्मक ही रहा। वह इस शादी से मुक्ति चाहने लगे थे।

उनके सामने करियर का जो नया द्वार खुल रहा था उसमें शादीशुदा जिंदगी उनको बोझ और बाधा दोनों लगने लगी थी। इस तरह की सोच जब किसी व्यक्ति के मानस में अंकुरित होती है तो फिर वह रिश्ते की परवाह कहां करता है। दोनों अलग हो गए। थोड़े समय के बाद पाकिस्तानी महिला परवीन अपनी बच्ची को लेकर लंदन चली गई और फिर नसीर बारह वर्षो तक उससे नहीं मिल सके। नसीर को बारह वर्षो तक अपनी बेटी की भी याद नहीं आई। जब पुस्तक लिखी या जब करियर के शीर्ष पर पहुंच गए तो याद सताने लगी। नसीरुद्दीन शाह ने अभिनेत्री रत्ना पाठक से दूसरी शादी की। उसका जिक्र करते हुए भी वह यह कह जाते हैं कि रत्ना एक मजबूत स्त्री है जिसने नसीर को कई बार संभाला।

कमाल है इस कलाकार का, इनको प्रेम उसी स्त्री से होता है जिसमें उनको संभालने की संभावना नजर आती है। हो सकता है कि कुछ लोगों को यह नसीर के व्यक्तिगत संदर्भ लगें और इन सबका उल्लेख अनुचित। लेकिन जब व्यक्ति अपना जीवन सार्वजनिक तौर पर खोलता है या किसी संदर्भ या पुस्तक में उसकी जिंदगी खुलती है तभी उसकी मुकम्मल तस्वीर बनती है। नसीर की इस किताब में कई ईमानदार प्रसंग भी हैं, लेकिन इसी पुस्तक के कई प्रसंग उनकी सोच, उनकी मानसिकता, अपनी करियर की सीढ़ी के तौर पर रिश्तों का इस्तेमाल करने की उनकी प्रवृत्ति भी खुलकर सामने आ जाती है।

ऐसा इंसान जब दूसरों को जोकर, खुशामदी या चापलूस कहता है या दूसरों के खून के बारे में बात करता है तो सही में लगता है कि वह कुंठित हो चुका है। सही तो जावेद अख्तर भी प्रतीत होते हैं कि नसीर किसी सफल आदमी की तारीफ नहीं कर सकते। आज अनुपम खेर बेहद सफल हैं, अमेरिका में मिले काम की वजह से उनको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अभिनेता के तौर पर मान्यता मिल रही है, वहीं नसीर मुंबई में बैठकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। कभी उनको अपने बच्चों की फिक्र होती है, कभी वह राजेश खन्ना को कोसने लगते हैं। कुंठा का सार्वजनिक प्रदर्शन किसी गंभीर कलाकार को किस कदर हास्यास्पद बना देती है, नसीर इसकी जीती जागती मिसाल बनकर रह गए हैं।