[जी किशन रेड्डी]। 1856 में भारत से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को मिलने वाला राजस्व तीन करोड़ ब्रिटिश पाउंड से कुछ कम था। इस राजस्व का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा अकेले केवल नमक पर लगाए गए टैक्स से आया करता था। अर्थशास्त्रियों की मानें तो आज के हिसाब से यह कर और वित्तीय प्रभार लगभग 3,000 करोड़ रुपये सालाना होगा। ब्रितानी हुकूमत द्वारा भारतीयों पर थोपे गए इस जन-विरोधी नमक कानून ने गरीबों को सबसे अधिक प्रभावित किया। बाद में इसने ही महात्मा गांधी को अपनी चर्चित दांडी पदयात्रा का नेतृत्व करने और नमक कानून की अवहेलना करने के लिए प्रेरित किया। यद्यपि यह अवहेलना प्रतीकात्मक थी, लेकिन इसका उद्देश्य आम भारतीय जन-मानस में पूर्ण स्वराज एवं पूर्ण स्वतंत्रता जैसे भावात्मक विचारों को गढ़ना था।

राजनीतिक स्वतंत्रता जैसे भावात्मक विचार को आर्थिक स्वतंत्रता से जोड़ना और इस तथ्य को चिन्हांकित करने का सबसे उपयुक्त तरीका नमक कानून की अवहेलना ही हो सकता था। 1915 में साबरमती आश्रम में जब खादी का प्रयोग शुरू हुआ, तब गांधी जी ने र्आिथक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। ग्राम स्वराज की पूर्ति के लिए खादी के उपयोग की योजना एवं नमक-कर कानून की अवहेलना दरअसल स्वशासन, आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वतंत्रता के विचार पर आधारित थी।

पीएम मोदी ने स्वयं के अनुभवों को गांधी जी की शिक्षा के साथ एकीकृत करने में पाई सफलता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं के अनुभवों को गांधी जी की शिक्षा के साथ एकीकृत करने में सफलता पाई है। वह एक ऐसे प्रभावशाली घोषणापत्र का निर्माण करने में सक्षम हुए हैं जो गरीबों को सशक्त बनाने एवं उनमें गरिमा की भावना पैदा करने पर केंद्रित है। प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल में शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान का दर्शन महात्मा के जीवन सिद्धांतों पर ही आधारित था। स्वच्छ भारत अभियान के सफल कार्यान्वयन के लिए भारत के सभी नागरिकों से इससे जुड़ने की प्रधानमंत्री की अपील ने इसे एक जन-आंदोलन में परिर्वितत कर दिया। इस अभियान के तहत प्रधानमंत्री स्वच्छता के आकांक्षी विचारों को आत्मसम्मान और गरिमा के साथ जोड़ने में सफल हुए और इसके फलस्वरूप ही खुले में शौच मुक्त देश की ओर हमारी यात्रा संभव हो पाई, जो अपने आप में किसी क्रांति से कम नहीं है।

गरीबों का किया जा सकता है उत्थान

आज का भारत राजनीतिक रूप से स्वतंत्र तो है, पर आर्थिक स्वतंत्रता अभी भी गरीबों के लिए एक आकांक्षा ही है। आर्थिक स्वतंत्रता एवं आत्मनिर्भरता ही वे स्तंभ हैं, जिन पर गरीबों का उत्थान किया जा सकता है। 1970 के दशक के गरीबी हटाओ नारे ने गरीबी को बनाए रखा, किंतु आत्मनिर्भर भारत अभियान इसके बिल्कुल विपरीत-गरीबों को अपना भाग्य विधाता बनाने को लक्षित है। मोदी सरकार द्वारा किसानों के कल्याण और आवश्यक वस्तुओं से संबंधित कानून को लेकर बनाए गए हालिया कानून किसानों को आर्थिक स्वतंत्रता और विकल्प प्रदान करने की दिशा में एक तार्किक कदम हैं, जो आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होंगे। 

किसानों को अंतरराज्यीय व्यापार में किया जा सकता है शामिल 

कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 का उद्देश्य एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है, जहां किसानों के पास किसी भी ट्रेडिंग चैनल के माध्यम से अपनी उपज लाभकारी मूल्य पर बेचने का विकल्प हो। नए विधेयक के तहत किसानों को अंतरराज्यीय व्यापार में शामिल किया जा सकता है। कानून यह भी सुनिश्चित करता है कि सरकार द्वारा अधिसूचित बाजार परिसर के बाहर व्यापार करने पर किसी भी किसान या व्यापारी पर कोई बाजार शुल्क या उपकर नहीं लगाया जा सके।

वैकल्पिक व्यवस्था का बनाया जाना कृषक उत्थान का महत्वपूर्ण पहलू

हालांकि किसानों के लिए कृषि उत्पाद बेचने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था का बनाया जाना कृषक उत्थान का एक महत्वपूर्ण पहलू है, लेकिन हमें बुआई के समय कीमतों को अधिक अनुमानित बनाकर और उनकी उपज की खरीद को सुरक्षित कर किसानों के दीर्घकालिक भविष्य को सुरक्षित करने की भी आवश्यकता है। किसान (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन समझौता एवं कृषि सेवा अधिनियम, 2020 किसानों को अपने भावी कृषि उत्पाद की बिक्री के लिए कृषि-व्यवसाय फर्मों, प्रोसेसर, थोक व्यापारी, निर्यातक या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ पारस्परिक रूप से सहमत पारिश्रमिक मूल्य पर बेचने की सुरक्षा और अधिकार प्रदान करता है। 

किसानों को उनकी उपज के लिए पहले से अधिक मिले पारिश्रमिक मूल्य

कांट्रैक्ट फार्मिंग किसानों को मांग के अनुसार अपनी फसल विकसित करने की अनुमति देता है, जिससे वे पारदर्शी तरीके से पैदा होने वाली फसलों की बेहतर कीमत का आकलन कर सकें। आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020 यह सुनिश्चित करता है कि किसानों को उनकी उपज के लिए पहले से अधिक पारिश्रमिक मूल्य मिले। यह राज्य मशीनरी के निरीक्षक राज को कम करता है, जो किसानों और व्यापारियों को जमाखोरी और कालाबाजारी के बहाने परेशान करता रहा है।

पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर भारत को धरातल पर लाने का व्वस्थित तरीके से किया प्रयास 

दो अक्टूबर को देश महात्मा गांधी के साथ-साथ पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती के रूप में भी मनाता है। मोदी सरकार की पिछले छह साल की नीतियों और हालिया कानूनों ने शास्त्री जी के जय जवान-जय किसान के नारे को और अधिक तार्कसंगत बनाया है। प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत की अपनी परिकल्पना को धरातल पर उतारने के लिए एक व्यवस्थित तरीके से प्रयास किया है। उन्होंने पहले आत्मनिर्भरता के सिद्धांतों की वकालत की और फिर उसे अमलीजामा पहनाने के लिए 20,000 करोड़ रुपये के पैकेज का एलान किया। संसद सत्र के दौरान उन्होंने एक ऐसा कानूनी ढांचा बनाया, जिसका एक मात्र लक्ष्य किसान समृद्धि है। मोदी सरकार से पहले भी कई सरकारों ने गांधी जी के संदेश से प्रेरणा तो ली है, लेकिन किसी भी प्रधानमंत्री ने गांधी जी के संदेश को आज के संदर्भ में अखिल भारतीय पैमाने पर धरातल पर उतारने का प्रयत्न नही किया है।

(लेखक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हैं)

[लेखक के निजी विचार हैं]