प्रो. लल्लन प्रसाद। Aatm Nirbhar Bharat प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा है कि कोरोना संकट से देश को सबसे बड़ा सबक यह मिला है कि हमें आत्मनिर्भर बनना है। कोरोना काल में इंसानों और सामानों की आवाजाही बाधित हुई है। प्रधानमंत्री का कहना है कि हमें लोकल के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए उसके लिए मुखर होना पड़ेगा। यानी हमें स्थानीय उत्पाद को प्रोत्साहन के लिए प्रयास करना चाहिए। गांव को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करना होगा।

भारत विविधताओं का देश रहा है। हमारे देश का हर जिला, हर प्रांत और यहां तक कि प्रत्येक गांव भी अपनी एक विशिष्टता रखता रहा है। प्रोत्साहन के अभाव में इन जिलों की विशेषताएं विलुप्त हो रही हैं। स्थानीय स्तर पर विशिष्ट कृषि उत्पादों के प्रोत्साहन, भंडारण और बाजार की उचित व्यवस्था न होने के कारण उनका सही लाभ किसान को नहीं मिल पाता और दूसरी ओर उनके निर्यात की संभावनाएं भी समाप्त हो जाती हैं और कई बार देश को उनका भारी आयात भी करना पड़ता है। जहां तक मैन्युफैक्चरिंग का सवाल है, देश के विभिन्न जिले आधुनिक और परंपरागत उद्योगों के लिए जाने जाते हैं। लुधियाना होजियरी और साइकिल उद्योग के लिए, भदोही गलीचों के लिए, बनारस साड़ियों के लिए तथा कई अन्य ऐसे नाम हैं जो विश्व प्रसिद्ध हैं। चीनी डंपिंग और सरकारी अनदेखी, लालफीताशाही, इंस्पेक्टर राज, वित्त की कमी, नई प्रौद्योगिकी तक पहुंच का अभाव आदि कई ऐसे कारण हैं, जो इन क्लस्टरों के क्षरण का कारण बने हैं।

पूर्व में भूमंडलीकरण के प्रति जुनून और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबदबे के चलते देश के उद्योगों का संरक्षण और संवर्धन तो जैसे जुर्म माना जाने लगा था। आज जब हम आत्मनिर्भरता की बात कर रहे हैं तो हमारे स्थानीय उत्पादों की विशेषताओं के अनुसार उनके संरक्षण और संवर्धन हेतु प्रयासों की बात भी हो रही है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उन्हें संरक्षण एवं संवर्धन के प्रयासों के साथ उन क्षेत्रों के स्थानीय जनप्रतिनिधि यदि इन उत्पादों के लिए प्रयास करेंगे तो स्वाभाविक रूप से इन उद्यमों को एक नया जीवन प्राप्त होगा। यानी महामारी से सबक लेकर, अपने बीमार मैन्युफैक्चरिंग को पुनर्जीवित और संवíधत करने का कार्य यदि देश करता है तो इससे देश में रोजगार और आय की वृद्धि होगी और लोगों का जीवन स्तर सुधरेगा।

रातोंरात नहीं आएगी आत्मनिर्भरता: हमें समझना होगा कि चीन से आने वाले सभी आयातों को एकदम से रोकना संभव नहीं होगा। चीन से संभावित प्रतिबंधों का ध्यान रखते हुए हमें उनके विकल्पों के लिए तैयार रहना होगा। चीन से आने वाले अधिकांश आयात ऐसे हैं जिनका देश में उत्पादन संभव है। कई आयात तो ऐसे भी हैं जिनका देश में भरपूर उत्पादन भी होता है, जैसे स्टील, कैमिकल्स, मशीनरी, वाहन, उर्वरक, कीटनाशक आदि। कई ऐसे आयात हैं जिनमें विशिष्ट प्रौद्योगिकी की भी जरूरत नहीं। ऐसे में चीन से काफी आयात रोके जा सकते हैं। एपीआइ (एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट्स) यानी दवा उद्योगों का कच्चे माल का उत्पादन भारत में पहले से होता रहा है, इस उद्योग को भारत में जीवित किया जा सकता है। उनके उत्थान के लिए सरकार 11,000 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना लागू कर चुकी है। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलीकॉम, मोबाइल फोन आदि का हम भारत में उत्पादन बढ़ाने का प्रयास कर ही सकते हैं।

भारत को आत्मनिर्भर बनाने के इस संकल्प और प्रयासों को कई लोग शंका की निगाह से देख रहे हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि भूमंडलीकरण के इस दौर में हम शेष दुनिया के साथ इस हद तक जुड़े हुए हैं, हमारा आत्मनिर्भर बनने का प्रयास प्रतिगामी और आत्मघाती सिद्ध हो सकता है। यह जरूर है कि नए उद्योगों को पनपने के लिए विदेशों से आने वाले माल पर आयात शुल्क बढ़ाना होगा, जरूरी होने पर एंटी डंपिंग और सेफगार्ड ड्यूटी भी लगानी होगी, विदेशी घटिया माल को रोकने हेतु मानक भी बनाने होंगे। लेकिन देश की जनता और सरकार का वर्तमान संकल्प संरक्षणवाद नहीं कहा जा सकता।

समझना होगा कि 1991 की नई आर्थिक नीति से पूर्व का संरक्षणवाद, अकुशल औद्योगीकरण का कारण बना। उस कालखंड में भारत में भारी आयात शुल्क (100 से 600 प्रतिशत तक) लगाया जाता था, जो वास्तव में कुशलता निर्माण के लिए बाधक कहा जा सकता है। डब्ल्यूटीओ के अस्तित्व में आने के बाद ऊंचे आयात शुल्कों का युग पहले ही समाप्त हो चुका है। भारत डब्ल्यूटीओ के नियमों से बंधा हुआ है। उसमें भी प्रावधान हैं जिससे हम अपने उद्योगों को आगे बढ़ा सकते हैं। हालांकि मुक्त व्यापार के प्रति जुनून के चलते हमारे नीति निर्माताओं ने आयात शुल्कों को अत्यधिक कम कर दिया।

पिछले दो वर्षो में भारत का चीन से व्यापार घाटा 63.2 अरब डॉलर से घटकर 48.6 अरब डॉलर रह गया है। लगभग सभी देश अपने उद्योगों के संरक्षण और संवर्धन के लिए टैरिफ और गैर टैरिफ बाधाएं लगाते हैं, तो भारत क्यों नहीं लगा सकता। जब अन्य देश व्यापार युद्ध के नाम पर आयात शुल्क बढ़ा रहे हों तो भारत का एकतरफा मुक्त व्यापार आत्मघाती सिद्ध होगा। इसलिए आलोचकों को समझना होगा कि सस्ते चीनी आयातों के कारण उद्योगों का निरंतर क्षरण देशहित में नहीं है। आज जरूरत इस बात की है कि प्रारंभिक तौर पर अपने उद्योगों को प्रोत्साहन के साथ आयातों को रोकने हेतु प्रयास हों। और उसके बाद हम वैश्विक स्तर के उत्पाद बनाकर देश की आवश्यकताओं की पूíत तो करें ही, साथ ही विदेशों को निर्यात भी करें। समझना होगा कि अपने उद्योगों का संरक्षण हर देश कर रहा है, इसलिए डब्ल्यूटीओ प्रावधानों के अंतर्गत अपनाए गए सभी उपायों को हम संरक्षणवाद नहीं कह सकते। वास्तव में देश का आत्मनिर्भरता का यह प्रयास देश में रोजगार और आय संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है।

[पूर्व विभागाध्यक्ष, बिजनेस इकोनॉमिक्स विभाग, दिल्ली विवि]