नीलम त्रिवेदी

इस वर्ष संस्कृत सप्ताह का समापन हो गया और कुछ औपचारिक आयोजनों के अतिरिक्त कुछ विशेष नहीं हुआ। राष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत को लेकर कोई उल्लेखनीय संवाद या फिर वाद-विवाद भी नहीं देखने को मिला। यह तब हुआ जब संस्कृत जनमानस में सदियों से विद्यमान है। अपने गंभीर दार्शनिक चिंतन के कारण संस्कृत भाषा एवं साहित्य मात्र अतीत की धरोहर नहीं है, वरन आज भी उसमें विचार एवं व्यवहार की ऐसी उत्कृष्ट प्रणाली है जो अधिक सशक्त ढंग से समाज में परिवर्तन की भूमिका निभा सकती है। यह भाषा विभिन्न सामाजिक विकृतियों से ग्रस्त भारतीय समाज के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकती है। यदि यही हाल रहा तो मूल भाषा संस्कृत मृत हो सकती है। भाषा किसी पार्टी का प्रश्न नहीं। यह देश का प्रश्न और उसकी प्रगति का प्रश्न है।

जिन देशों की भाषाएं नष्ट हुई हैं उनकी शिक्षा-संस्कृति भी नष्ट हो गई है। संस्कृत भाषा देश की एकता का भी आधार है। वह भारतीय मूल की सभी भाषाओं का संयोजक सूत्र है। प्राचीन भारतीय ज्ञान के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान आवश्यक है। कपिल का सृष्टि संबंधी तत्व ज्ञान, कणाद ऋषि का परमाणु विज्ञान, उत्खनन से प्राप्त पुरातत्व सामग्री, शिलालेख, सिक्के, ताम्रपत्र, मुद्रा, चित्र आदि प्राचीन अभिलेख अधिकतर संस्कृत में हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि बहुत समय तक भारत के राज्यों में संस्कृत का प्रयोग राजभाषा के रूप में होता रहा है। प्राचीन इतिहास के लिए पुराण, मौर्यकालीन राज्य व्यवस्था के लिए कौटिल्य का अर्थशास्त्र, भारत की वर्णव्यवस्था, दंड व्यवस्था, स्त्रीधन के लिए स्मृतियां आदि संस्कृत में हैं, जिनका विश्व में उद्धरण दिया जाता है।

इतने समृद्ध इतिहास के बाद भी 2011 की गणना के अनुसार संस्कृत भाषा 22वें पायदान पर है। आज हम विषयगत छात्र नहीं बटोर पा रहे हैं। दरअसल छात्र वही विषय चयनित करते हैं जिनके प्रति उनका रुझान होता है। इस नैनो टेक युग में संस्कृत भाषा उन्हें पुरातन विषय लगता है। इस भटकाव के पीछे संस्कृत के प्रति जानकारी का अभाव है। संस्कृत केवल रूप और अनुवाद नहीं है, इसके आगे भी बहुत कुछ है। संस्कृत ज्ञान के साथ कंप्यूटर और विज्ञान में नई खोज कर भारत को विश्व पटल पर एक नई पहचान दिला सकती है। लगभग 120 विश्वविद्यालय, 15 संस्कृत विश्वविद्यालय, 1000 पारंपरिक संस्कृत विद्यालय, 10 संस्कृत अकादमी, 16 ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, लगभग पांच लाख संस्कृत शिक्षक, 60 पत्रिकाएं और 100 गैर सरकारी संस्थाएं संस्कृत के प्रचार के लिए कार्य कर रही हैं। फिर भी हम संस्कृत के अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं।

संस्कृत की प्रतिष्ठा है, पर वह जनमानस की भाषा नहीं है। भाषा तभी लोकप्रिय होती है जब वह जनमन की भाषा होती है। जब तक संस्कृत भाषा में नए शोध नए ग्रंथ नहीं लिखे जाएंगे भाषा समृद्ध नहीं होगी। संस्कृत ऋषियों ने आज से हजारों वर्ष पूर्व जो लिखा लोग आज भी उन ग्रंथों को देख रहे हैं। आज संस्कृत भाषा में कौन-सा महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा जा रहा है? जहां तक रोजगार का प्रश्न है पुरातत्व विभाग, इतिहास विशेषज्ञ, अनुवादक, आयुर्वेद, चिकित्सा, योग, वेदांतिक सलाहकार, पर्यावरण अध्ययन, टीवी धारावाहिक, नाटक आदि क्षेत्रों में अपार संभावनाएं हैं। संस्कृत में गहन शोध की अति आवश्यकता है। नवीन शोध रोजगार के माध्यम हो सकते हैं। सरकारी विभाग और निजी क्षेत्र संस्कृत स्नातकों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराएं। यह समय की मांग भी है।

भाषा का अस्तित्व उसके प्रयोग करने पर ही निर्भर करता है। यदि हमें संस्कृत को जीवित रखना है तो इसको भाषा की तरह नहीं, बल्कि उपकरण की तरह प्रयोग करना होगा। संस्कृत को अतिरिक्त हुनर के रूप में विकसित करना होगा। यदि संस्कृत को केवल भाषा की तरह पढ़ाया गया तो भाषा समाप्त हो जाएगी। सृष्टि का भी नियम है कि जो समय के साथ परिवर्तित नहीं होता वह समाप्त हो जाता है। संस्कृत भाषा के व्यावहारिक स्वरूप को बनाए रखने के लिए बहुत अधिक प्रयास करने होंगे। जब तक कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं होगी तब तक संस्कृत भाषा का भविष्य नहीं संवरेगा। संस्कृत को आधुनिक विषयों के साथ जोड़कर पढ़ाया जाना चाहिए। बहु विषयी अध्ययन शोध कार्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

संस्कृत को सभी वर्गो, विज्ञान, कला, वाणिज्य में अनिवार्य किया जाना चाहिए। बचपन से संस्कृत को संस्कृत माध्यम में ही पढ़ाया जाना चाहिए। इस कठिन वक्त में शिक्षकों का भी दायित्व और अधिक बढ़ जाता है। उन्हें विषय पर गहराई से अध्ययन कर तर्कसंगत विचार प्रक्रिया छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। नवीन शिक्षण विधि का प्रयोग कर विषय को रुचिकर बनाना चाहिए। छात्रों को उच्च अध्ययन करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। संस्कृत को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए हमें नई तकनीक की स्वीकार्यता और कंप्यूटर शिक्षा जैसी योजनाओं को लागू करना चाहिए।

[लेखिका दयानंद बालिका महाविद्यालय में संस्कृत की विभागाध्यक्ष हैं]