[अशोक श्रीवास्त]। नए सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवाणे ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर दोटूक बयान देकर भारतीय सैन्य क्षमता और अदम्य इच्छाशक्ति का परिचय दिया है। जनरल नरवाणे से जब पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर के संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा कि संसद के प्रस्ताव के अनुसार पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और संसद जब कभी आदेश देगी, भारतीय सेना पीओके को भारत में शामिल करने के लिए उचित कार्रवाई करेगी।

सेना अध्यक्ष के इस बयान के बाद पीओके को लेकर एक बार फिर चर्चा गरम हो गई है। इससे पहले नरेंद्र मोदी सरकार कई बार यह संकेत दे चुकी है कि वह पीओके को भारत में मिलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद भी यह कहा था कि पीओके को लेकर आज भी उनके दिल में कसक है। तो क्या पीओके को लेकर मोदी सरकार गुपचुप किसी योजना पर काम कर रही है? यह सवाल पहले भी कई बार उठ चुका है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह होगा कैसे? क्या सरकार के पास इस योजना के लिए कोई रोडमैप है? सरकार की क्या योजना है, यह हम नहीं जानते।

हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने बीते दिनों एक टीवी चैनल पर चर्चा के दौरान यह पूछे जाने पर कि पीओके को भारत में कैसे मिलाएंगे, उन्होंने कहा था, ‘केंद्र सरकार का जो भी ‘प्लान ऑफ एक्शन’ या उसका समय है, उसे टीवी डिबेट के दौरान घोषित नहीं किया जा सकता।’ अमित शाह ने कहा कि ये सब देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दे हैं, जिन्हें ठीक उसी तरह से निबटा देना चाहिए, जैसे अनुच्छेद 370 के साथ किया गया। लेकिन इस संबंध में भारत क्या रूस से कुछ सीख ले सकता है?

क्या रूस की तरह रुख अपनाएगा भारत?

पिछले दिनों रूस की यात्रा के दौरान, काला सागर स्थित प्रायद्वीप क्रीमिया जाने का भी अवसर मिला। यह वही क्रीमिया है जो वर्ष 2014 से पहले यूक्रेन का हिस्सा था, लेकिन आज यह रूस प्रशासित प्रदेश है। लगभग छह वर्ष पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दृढ इच्छाशक्ति दिखाते हुए ‘इतिहास की गलतियों’ को ‘सुधारा’ और अपनी सैन्य शक्ति का इस्तेमाल करते हुए क्रीमिया को रूस का हिस्सा बना लिया। हालांकि दुनिया के बहुत से देशों, विशेषकर पश्चिमी देशों ने इस मुद्दे पर रूस का विरोध किया, रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए जो आज तक जारी हैं, लेकिन रूस अपने ‘राष्ट्रीय हितों’ से समझौता करने को तैयार नहीं और इस विरोध के सामने डट कर खड़ा है। हालांकि क्रीमिया से पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर करीब साढ़े पांच हजार किलोमीटर दूर है, लेकिन क्रीमिया पहुंचने पर बरबस ही पीओके का ध्यान आ जाता है। इसलिए नहीं कि क्रीमिया भी कश्मीर की तरह बेहद खूबसूरत है, बल्कि इसलिए कि क्रीमिया पहुंचने पर मन में बरबस ही यह सवाल उठा कि क्या कभी भारत भी पीओके को उसी तरह अपना हिस्सा बना पाएगा जैसे रूस ने क्रीमिया को बना लिया!

वर्ष 1954 तक रूस का हिस्सा था क्रीमिया

सरकार की रणनीति जो भी हो, पर भारत रूस के क्रीमिया प्रकरण से बहुत कुछ सीख सकता है, क्योंकि क्रीमिया और रूस की तुलना अगर आप पीओके और भारत से करेंगे तो दोनों में बहुत अंतर होने के बाद भी बहुत सी समानताएं हैं। क्रीमिया वर्ष 2014 से ही सुर्खियों में आया जब रूस ने यूक्रेन से छीन कर अपना हिस्सा बना लिया, लेकिन यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि वर्ष 1954 तक क्रीमिया रूस का ही हिस्सा था। 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता निकिता खु्रश्चेव ने क्रीमिया को यूक्रेनी-रूसी मैत्री और सहयोग के एक तोहफे के तौर पर इसे यूक्रेन को सौंप दिया था। अधिकांश रूसी मानते हैं कि खु्रश्चेव ने यह बहुत बड़ी गलती की थी और 2014 में रूस ने 60 साल पुरानी यह भूल सुधार ली।

नेहरू की एक भूल के कारण पाक के कब्जे में आया यह भूभाग

पीओके भी तो भारत की भूल के कारण ही पाकिस्तान के कब्जे में है। वर्ष 1948 में जब भारत-पाकिस्तान का पहला युद्ध हुआ था, तब भारतीय सेना लगातार पाकिस्तानी सेना को खदेड़ रही थी। उस वक्त संयुक्त राष्ट्र ने भारत और पाकिस्तान को कश्मीर से अपनी सेना वापस बुला कर सीजफायर यानी युद्धविराम लागू करने का प्रस्ताव पास किया। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक जनवरी 1949 को सीजफायर लागू कर दिया। लेकिन पाकिस्तान ने अपनी सेना वापस नहीं बुलाई। इसके फलस्वरूप आज तक करीब एक-तिहाई कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में है। उस वक्त पंडित नेहरू ने एकतरफा युद्धविराम की भूल न की होती तो आज पीओके नहीं होता, और पूरा कश्मीर भारत का हिस्सा होता।

भारत कर सकता है भूल सुधार? 

क्याआज भारत रूस का अनुसरण करते हुए इस भूल को सुधार सकता है? क्यों नहीं। वर्ष 2014 में रूस ने जब क्रीमिया के विलय के समय अपनी सेना भेजी तो इसके पीछे तर्क दिया गया कि वहां रूसी मूल के लोग बहुतायत में हैं और उस वक्त यूक्रेन में जिस तरह की राजनीतिक उठा-पटक चल रही थी उसके बीच रूसी लोगों के हितों की रक्षा करना रूस की जिम्मेदारी है। गौरतलब है कि क्रीमिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या रूसियों की है। इसके अलावा वहां यूक्रेनी, तातार, आर्मेनियाई, पॉलिश और मोल्दावियाई भी हैं। आज पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर अस्थिरता और उथल- पुथल के दौर से गुजर रहा है। पीओके के लोग विकास ना होने, लगातार बढ़ती महंगाई, शासकों द्वारा नजरअंदाज किए जाने से दुखी और परेशान हैं। भारत पीओके के लोगों को अपना नागरिक मानता है। अब तक जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में पीओके के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली 24 सीटें खाली रहती थीं। तो जिस तरह रूस ने अपने नागरिकों की सुरक्षा और उनके बेहतर जीवन के लिए क्रीमिया का विलय किया, उसी तरह क्या भारत की जिम्मेदारी नहीं बनती कि पीओके में रहने वाले ‘अपने नागरिकों’ को नारकीय जीवन से निकालने के लिए वह पाकिस्तान के कब्जे वाले इस हिस्से को भारत में शामिल कर ले?

विश्व जनमत को साथ लाने की बड़ी चुनौती 

हालांकि पीओके को भारत में शामिल करने के संदर्भ में हमें समझना होगा कि यूक्रेन पाकिस्तान नहीं, और भारत को भी पीओके में उस तरह की ‘एडवांटेज’ हासिल नहीं है जैसी रूस को क्रीमिया में हासिल थी। इसलिए रणनीतिक तौर पर भारत क्या करेगा यह एक अलग चुनौती है, लेकिन इस चुनौती को पार करने के बाद भारत को वैसे ही कदम उठाने के लिए तैयार रहना होगा, जैसे कदम वर्ष 2014 के बाद से रूस उठा रहा है और उन मुश्किलों के लिए सतर्क रहना होगा जो मुश्किलें रूस के सामने आईं।

इस मामले में सबसे बड़ी चुनौती

अंतरराष्ट्रीय दबावों का सामना करते हुए विश्व जनमत को अपने साथ लाने की होगी। अभी तो भारत ने अपने प्रशासन वाले जम्मू-कश्मीर में ही धारा 370 को हटाया था, तभी पाकिस्तान ने दुनिया भर में जिस तरह से हंगामा किया, दुष्प्रचार किया, उससे हमें यह आभास मिल गया है कि पीओके को लेकर जब भी भारत कोई पहल करेगा तो पाकिस्तान किस तरह प्रतिक्रिया जताएगा।

हालांकि इस मसले पर भारत की सफल कूटनीति के कारण अब तक पाकिस्तान को सफलता नहीं मिली है, लेकिन कई मंचों पर भारत को कई तरह के दबावों का सामना अवश्य करना पड़ा है। रूस में क्रीमिया के विलय के बाद रूस को भी कई मंचों पर विरोध का सामना करना पड़ा, उसे जी-8 के समूह से बाहर कर दिया गया। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस पर कई तरह की पाबंदियां लगा दीं। रूस के बैंकों की अंतरराष्ट्रीय कैपिटल मार्केट तक पहुंच पर भी रोक इन प्रतिबंधों में शामिल है। भारत सहित रूस से हथियार खरीदने वाले देशों पर भी अमेरिका ने दबाव बनाया। लेकिन रूस इन दबावों के आगे डट कर खड़ा रहा।

क्रीमिया रिपब्लिक के अध्यक्ष सरगेई अक्स्योनोव मानते हैं कि क्रीमिया को इन प्रतिबंधों के कारण बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन वह यह भी कहते हैं कि हम अगले 50 वर्षों तक इन प्रतिबंधों का सामना करने के लिए तैयार हैं। अडिगता से खड़े रहने और इन संघर्षों के लिए रूस की तैयारियों का फायदा उसे धीरे-धीरे मिलता दिख रहा है। जी-7 देशों के समूह में शामिल कई देश अब कहने लगे हैं कि रूस के साथ सहयोग पर फिर से विचार होना चाहिए। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से जब आगामी जी-7 शिखर सम्मेलन में रूस को आमंत्रित किए जाने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘मैं नहीं जानता। लेकिन यह निश्चित तौर पर संभव है।’

क्रीमिया का विलय करने के बाद रूस ने क्रीमिया में जनमत संग्रह कराया जिसमें 97 प्रतिशत लोगों ने रूस के साथ रहने के पक्ष में मतदान किया, लेकिन रूस इससे संतुष्ट होकर बैठा नहीं रहा, बल्कि उसने क्रीमिया के लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए वहां तेजी से विकास के काम शुरू कर दिए। क्रीमिया के सबसे प्रमुख शहर सिम्फरोपोल में वर्ष 2014 के बाद शानदार एयरपोर्ट बनाया गया और आज भी शहर में जगह-जगह सड़कों को बेहतर बनाने और ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण व नया निर्माण होते हुए देखा जा सकता है।

वर्ष 2014 में जिस क्रीमिया का सालाना बजट 18 बिलियन रूबल था उसे बढ़ा कर आज 54 बिलियन रूबल कर दिया गया है। क्रीमिया के लोगों की औसत आय आज 29 हजार रूबल तक हो गई है, पर अभी भी वहां 17 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं। रूस की सरकार ने लक्ष्य तय किया है कि वर्ष 2024 तक गरीबी की दर को आठ प्रतिशत तक लाया जाए। रूस जिस तेजी से क्रीमिया में आर्थिक और सामाजिक बदलावों के लिए काम कर रहा है, उसी का परिमाण है कि आज क्रीमिया के लोगों में यूक्रेन से अलग होने का कोई पछतावा नहीं दिखता, बल्कि उन्हें रूस के साथ अपना भविष्य ज्यादा सुरक्षित लग रहा है। भारत को भी पीओके का विलय करना है तो सिर्फ विलय तक नहीं, बल्कि रूस की तरह उसके बाद के बड़े बदलावों के लिए भी तैयारी करनी होगी। क्या भारत इसके लिए तैयार है? 

 

(वरिष्ठ टीवी पत्रकार)