राजीव सचान : भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा का समर्थन करने या फिर उनका साथ देने का संदेश फेसबुक, ट्विटर आदि पर शेयर करने वालों को धमकियां देने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे कितने लोगों का धमकाया गया है, इसकी गिनती करना इसलिए कठिन है, क्योंकि हर दिन ऐसे समाचार आ रहे हैं कि अमुक-अमुक को यह धमकी दी गई कि उनका भी वही हाल होगा, जो उदयपुर के कन्हैयालाल और अमरावती के उमेश कोल्हे का हुआ।

इसका सीधा अर्थ है कि 'सिर तन से जुदा' करने के जुनून से ग्रस्त जिहादी तत्वों का दुस्साहस बेलगाम है। जिहादियों की ओर से लोगों को धमकाने के सिलसिले के बीच विश्व हिंदू परिषद ने देश के विभिन्न हिस्सों के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं। विहिप नेताओं के अनुसार यदि पुलिस जिहादी तत्वों की ओर से मिल रही धमकियों से परेशान किसी व्यक्ति की शिकायत नहीं सुनती तो वे हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क करें। बजरंग दल के कार्यकर्ता यह सुनिश्चित करेंगे कि पुलिस न केवल संबंधित व्यक्ति की शिकायत सुने, बल्कि उसकी सुरक्षा का प्रबंध करने के साथ उसे धमकाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करे।

कई विपक्षी दलों को विश्व हिंदू परिषद की ओर से हेल्पलाइन नंबर जारी करने की पहल रास नहीं आई। पता नहीं उनकी आपत्ति का आधार क्या है और वह कितनी वैध है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि यह कानून के शासन के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात है कि किसी संगठन को वह काम करना पड़े, जो पुलिस का आधिकारिक और प्राथमिक दायित्व है। पुलिस अपना यह प्राथमिक दायित्व किस तरह निभा रही है, इसे उन परिस्थितियों से समझा जा सकता है जिनमें कन्हैयालाल को गला काट कर मारा गया।

उन्होंने जब नुपुर शर्मा के समर्थन में पोस्ट लिखी या फिर उसे 'लाइक' किया तो कुछ मुसलमानों की भावनाएं आहत हो गईं। उन्होंने उनके विरुद्ध एफआइआर दर्ज करा दी। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। कन्हैयालाल को अगले दिन जमानत तो मिल गई, लेकिन उन्हें धमकियां मिलने का सिलसिला नहीं थमा।

कन्हैयालाल ने पुलिस में शिकायत की तो उसने उन्हें धमकाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के बजाय बीच-बचाव करना उचित समझा। परिणाम यह हुआ कि जिहादी तत्वों ने इस्लामिक स्टेट के आतंकियों की तरह से उनका सिर कलम कर दिया और उसका वीडियो भी बनाया। बाद में राजस्थान सरकार ने उन पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की, जिन्होंने कन्हैयालाल और उन्हें धमकाने वालों के बीच समझौता कराया था। ध्यान रहे कि यही समझौता कन्हैयालाल के लिए काल सिद्ध हुआ।

कन्हैयालाल के कत्ल के करीब एक सप्ताह पहले अमरावती में उमेश कोल्हे की हत्या हुई थी, लेकिन उसकी खबर कई दिन बाद सामने आई, क्योंकि पुलिस उनकी हत्या को लूटपाट के इरादे से की गई घटना मानती और बताती रही। यदि महाविकास आघाड़ी की 'सेक्युलर' सरकार अभी तक सत्ता में होती तो शायद देश को कभी पता ही नहीं चलता कि उमेश कोल्हे को जिहादी तत्वों ने नुपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण मारा। इन तत्वों ने महाराष्ट्र के कई लोगों को नुपुर शर्मा का समर्थन करने के 'अपराध' में जान से मारने की धमकी दी है। ऐसे कई लोगों ने पुलिस के पास जाने की जरूरत नहीं समझी। इसलिए नहीं कि वह धमकियों से डरे नहीं थे, बल्कि इसलिए कि उन्हें यह भरोसा नहीं रहा होगा कि पुलिस कुछ करेगी। ऐसे कुछ लोगों ने माफी मांग कर या फिर शहर छोड़कर अपनी जान बचाई।

नुपुर शर्मा का समर्थन करने या फिर उनके पक्ष में बोलने वालों को जिहादी तत्वों से मिल रही धमकियां क्या कहती हैं? केवल यही कि इन तत्वों के मन में पुलिस या फिर कानून का कहीं कोई भय नहीं है। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि लोगों का कत्ल करने की धमकी देने वाले तो निडर हैं, लेकिन जिन्हें ऐसी धमकियां मिल रही हैं कि उनका हाल कमलेश तिवारी, कन्हैयालाल या उमेश कोल्हे जैसा होगा, वे डरे हुए हैं? यह स्थिति कानून के शासन को लज्जित करने वाली है।

इस भयावह परिस्थिति के निर्माण के लिए केवल पुलिस और सरकारों को दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इसमें सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना योगदान दे दिया है। उसने नुपुर शर्मा को फटकार लगाने और यहां तक कि उन्हें कन्हैयालाल की हत्या का जिम्मेदार बताकर सिर तन से जुदा नारे के साथ सड़कों पर उतरे लोगों को जाने-अनजाने यही संदेश दिया कि उन्होंने जो किया, ठीक किया।

जो लोग इससे संतुष्ट है कि कन्हैयालाल और उमेश कोल्हे की पैशाचिक तरीके से की गई हत्या की निंदा अनेक मुस्लिम संगठनों ने की है, उन्हें इस पर गौर करना चाहिए कि ऐसे किसी संगठन ने यह नहीं कहा कि सिर तन से जुदा का नारा हराम अथवा गैर इस्लामी है, जैसा कि मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलाधिपति जफर सरेशवाला ने मांग की है। उन्होंने मुस्लिम विद्वानों से इस नारे को हराम घोषित करने की अपील की है, लेकिन अभी तक ऐसा कोई फतवा नहीं दिखा कि इस नारे का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं।

कन्हैयालाल की हत्या की निंदा करने वाले संगठनों में जमीयत उलमा ए हिंद भी है, लेकिन यह वही संगठन है, जिसने कमलेश तिवारी के हत्यारों को कानूनी सहायता देने का वचन दिया था। यह जानना भी आवश्यक है कि जिन लोगों ने 'गोली मारो.. देश के गद्दारों..' पर आसमान सिर पर उठा लिया था, वे सिर तन से जुदा नारे पर मौन धारण किए हुए हैं।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)