[ हृदयनारायण दीक्षित ]: तुलना वक्तव्य को प्रभावी बनाती है, लेकिन समान प्रतीकों की तुलना ही अच्छी लगती है। लेबनानी चिंतक खलील जिब्रान ने लिखा है ‘मेंढ़क बैलों की अपेक्षा अधिक शोर कर लें, किंतु वे न तो खेतों में हल खींच सकते हैं और न ही कोल्हू के चक्र को हिला सकते हैं।’ गाय और शेर दोनों पशु हैं। गाय अहिंसक प्यार देती है और शेर हिंसक। इसलिए दोनों की तुलना नहीं हो सकती, लेकिन राहुल गांधी ने ऐसी ही तुलना कर दी। उन्होंने लंदन में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेटेजिक स्टडीज’ कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना आतंकी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से की। इसी दिन भारत के प्रतिष्ठित औद्योगिक समूह के प्रमुख रतन टाटा संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ थे।

लगभग दो माह पूर्व प्रख्यात कांग्रेसी नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नागपुर स्थित संघ मुख्यालय के एक प्रमुख कार्यक्रम में गए थे। क्या राहुल की बौद्धिक क्षमता दयनीय नहीं है? उन्होंने जर्मनी में इस्लामिक स्टेट यानी आइएस के प्रति युवकों के आकर्षण को रोजगार और अवसरों का अभाव बताया। आइएस ने रोजगार के लिए अर्जियां नहीं मांगीं। नौजवान मजहबी भावुकता में फंसे। वे रोजगार के लिए आइएस से नहीं जुड़े। मुस्लिम ब्रदरहुड और आइएस वैश्विक आतंकी संगठन हैं। तमाम देशों में इन पर प्रतिबंध है।

राहुल जी स्वतंत्र हैं, लेकिन भूल जाते हैं कि वह एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं। कांग्रेसजनों द्वारा उनके अगंभीर बयान भी गंभीरता से लिए जाते हैं। क्या उन्हें पता है कि ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ के लक्ष्य क्या हैं? 1928 में मिस्न में एक इस्लामी कट्टरपंथी हसन अलबाना ने इसकी स्थापना की थी। सैयद कुतुब के हिंसक सिद्धांत ने इसे परवान चढ़ाया। मकसद कुरान आधारित व्यक्तिगत जीवन, समुदाय और राज्य व्यवस्था बनाना था। घोर कट्टरपंथी विचार का यह संगठन बड़ी शीघ्रता में मिस्न के साथ अरब क्षेत्र में फैल गया। इसने राज और समाज में इस्लामी शरीय का एकमात्र विकल्प रखा।

यह मजहबी कट्टरवाद के आधार पर मुस्लिम देशों को संगठित करने के काम में जुटा। नवंबर, 1948 में मिस्न सरकार ने बमबारी और अनेक हत्याओं के आरोप में ब्रदरहुड के सदस्यों की गिरफ्तारियां कीं और संगठन को प्रतिबंधित कर दिया। तब इसकी 2,000 शाखाएं थीं और लगभग 50,000 सदस्य। मिस्न के तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या का आरोप भी इसी पर लगा था। 1952 में सार्वजनिक संपत्ति को फूंकने का आरोप भी मुस्लिम ब्रदरहुड पर लगा था।

दुनिया में अनेक विश्वास व विचार हैं। सहमति/असहमति स्वाभाविक है, लेकिन मुस्लिम ब्रदरहुड रक्तपात के माध्यम से दुनिया पर एक ही मजहबी विश्वास थोपने वाला संगठन है। अक्टूबर, 2007 में ब्रदरहुड ने सरकारी कामकाज के लिए मौलवियों के बोर्ड की आवश्यकता बताई थी। प्रमुख सरकारी पदों के लिए मुस्लिम होने की अनिवार्यता भी बताई गई। महिलाओं को अयोग्य कहा गया। ब्रदरहुड फैलता गया। इसके नेता मोरेसी चुनाव लड़कर सत्ता में आए, लेकिन 2013 में मिस्नी सेना ने हटा दिया। ब्रदरहुड के खाते में हिंसा, रक्तपात और हत्याओं की लंबी इबारत है।

रूस ने 2003 में इसे आतंकवादी संगठन घोषित किया और सीरिया ने 2013 में। मिस्न, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन व कनाडा सहित अनेक देशों ने इसे आतंकी संगठन घोषित कर रखा है। राहुल जी ही बता सकते हैं कि मुस्लिम ब्रदरहुड की तुलना राष्ट्र को ही सर्वस्व मानने वाले संघ से कैसे हो सकती है? उनके वक्तव्य दयनीय होते हैं। उन्होंने लंदन में ही नया इतिहास बताया कि कांग्रेस 1984 के सिख विरोधी दंगों में सम्मिलित नहीं थी। इन्हीं राहुल ने 2014 में कहा था कि कुछ कांग्रेसी दंगों में शामिल थे। 2005 में मनमोहन सिंह ने इसके लिए संसद में माफी भी मांगी थी। इंदिरा जी की हत्या के बाद हजारों सिख मारे गए थे। नानावती आयोग ने जांच में बड़े कांग्रेसी नेताओं के नाम भी लिए थे। राजीव गांधी ने हिंसा को स्वाभाविक बताया था कि ‘बड़ा पेड़ गिरते समय भूकंप आता ही है।’

सम्यक ज्ञान के लिए पक्षपात रहित चित्त जरूरी है। राजनीतिक कार्यकर्ता का अपने दल के प्रति पक्षपात स्वाभाविक है, लेकिन इस पक्षपात में प्रत्यक्ष सत्य को झुठलाना और सौम्यता व हिंसा को एक ही तराजू पर तौलना उचित नहीं होता। राहुल ने आइएस का नाम भी लिया है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे आतंकी संगठन बताया था और यूरोपीय संघ,अमेरिका, रूस, भारत, तुर्की आदि देशों ने भी। लगभग 50 देशों से इसका टकराव रहा है। सिर काटते हुए वीडियो क्लिप दिखाना मानवता पर कलंक हैं। क्या ऐसे आतंकी संगठनों में युवक बेरोजगारी के कारण ही काम कर रहे हैं? ऐसी समझ का आधार क्या है? राजनीति में वैचारिक स्तर पर निपटने के अनेक मोर्चे व मुद्दे हैं। मुद्दे न भी हों तो भी स्वयंसेवी संगठन की आतंकी संगठनों से तुलना का कोई औचित्य नहीं है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। वह भारतीय समाज के संस्कारक्षम पुनर्गठन में संलग्न है। वह आदिवासी वनवासी क्षेत्रों में भी सैकड़ों स्कूल व अस्पताल चला रहा है। नेपाल में भूकंप की त्रासदी को बहुत दिन नहीं हुए। संघ ने इस आपदा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। केरल की बाढ़ आपदा में संघ के कार्यकर्ता सक्रिय हैं। सभी आपदाओं में संघ ने अग्रणी भूमिका निभाई है। संघ के स्वयंसेवक राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों में हैं। भारत भक्ति का संवर्धन और विभेद रहित राष्ट्र निर्माण उनका ध्येय है। इसमें घर परिवार छोड़कर राष्ट्र संवर्धन में जुटे हजारों कार्यकर्ता हैं।

मुस्लिम ब्रदरहुड या आइएस का मार्ग हिंसा है। संघ का मार्ग नमस्कार पूर्ण संस्कार है और ध्येय समतापूर्ण परम वैभवशाली राष्ट्र बनाना है। सबको आत्मीयता से राष्ट्रभक्त बनाना संघ पद्धति है। मूल प्रश्न है कि क्या संस्कार प्रिय संघ और हिंसक मुस्लिम ब्रदरहुड की कोई तुलना संभव है? लेकिन राहुल जी के ज्ञान का कमाल है कि उन्होंने दोनों को एक जैसा ही बताया है।

राहुल जी की ताजा बयानबाजी उपेक्षा योग्य है, लेकिन कभी-कभी वह मन प्रसन्न भी करते हैं। वह संघ से चिढ़े हुए हैं। कुछ माह पहले उन्होंने कहा था कि संघ से संघर्ष के लिए वह गीता व उपनिषद पढ़ रहे हैं। दर्शन और संस्कृति प्रेमियों को यह खबर अच्छी लगी थी। संघ से लड़ने में कोई बुराई नहीं है। विचारधाराओं की टक्कर से जनतंत्र मजबूत होता है।

गीता गांधी को प्रिय थी, तिलक को प्रिय थी। उपनिषद पंडित नेहरू को भी प्रिय थे। ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में उपनिषद प्रीति का उल्लेख है, लेकिन संघ पंडित नेहरू की दृष्टि में भी आतंकी नहीं था। मुस्लिम ब्रदरहुड उनके समय भी था। वह चाहते तो स्वयं भी संघ की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से कर देते। तब गणतंत्र दिवस की परेड में संघ न होता। बेशक वह संघ की विचारधारा से असहमत थे। राजीव जी ने भी ऐसी तुलना नहीं की।

संघ से लड़ने के पहले संघ की विचारधारा का ज्ञान जरूरी है। राहुल जी योगी अरविंद, तिलक, गोखले, गांधी या विपिन चंद्र पाल के राष्ट्रवाद और संघ के राष्ट्रवाद की तुलना करें। वह एक राष्ट्रीय दल के अध्यक्ष हैं। वैकल्पिक विचार देना उनका राष्ट्रीय दायित्व है। कृपया आतंकवाद और भारत भक्ति के संस्कार का घालमेल न करें। थोड़ा सत्य बोलकर भी देखें।

[ लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं ]