नई दिल्ली, स्वदेश सिंह। ‘वर्ष 1922 में गांधीजी के जेल जाने के बाद यह तय हुआ कि उनके विचारों को आगे ले जाने के लिए हर महीने एक व्याख्यान का आयोजन किया जाएगा। पहला व्याख्यान डॉ. हेडगेवार ने दिया और कहा कि सभी को गांधीजी के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए। उनका जीवन ही उनका संदेश है।’ ये बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने नई दिल्ली में गांधी स्मृति में कहीं, जहां वह आज के दौर में गांधी पर एक पुस्तक का विमोचन करने आए थे। क्या यह महज संयोग है कि संघ प्रमुख ठीक उसी जगह गांधी की प्रासंगिकता पर बोल रहे थे, जहां गांधी की हत्या हुई थी या ऐसा भी बहुत कुछ है जिसे हम आज तक समझ नहीं पाएया हमें समझने नहीं दिया गया।

आदर्श राज्य की कल्पना : गांधी ने रामराज्य के रूप में एक आदर्श राज्य की कल्पना की थी। उनका स्वदेशी में विश्वास था, स्थानीय उद्योग और स्वावलंबन को बढ़ावा देने पर बल था। उन्होंने अंत्योदय का विचार दिया जिसमें समाज में अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के कल्याण की चिंता की गई थी। गांधी समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समरसता के प्रबल समर्थक थे और इसके लिए उन्होंने तमाम प्रयास भी किए थे जिसमें सहभोज से लेकर अंतरजातीय विवाह तक शामिल था। वे सेवाभाव पर बहुत बल देते थे और उन्होंने आंतरिक और बाह्य स्वच्छता के लिए तमाम प्रयास किए। उन्होंने अपने अभियान से जुड़ने वाले बड़े से बड़े व्यक्ति में शुचिता, पवित्रता और निष्ठा लाने के लिए छोटे-छोटे तमाम काम जैसे शौचालय साफ करना, चरखा चलाना आदि पर विशेष बल दिया।

गांधी ने सामाजिक सुधार और राजनीतिक आंदोलन के लिए कई नए तरीके के प्रयास किए जिसमें भारतीय सांस्कृतिक प्रतीकों का भरपूर इस्तेमाल किया गया। गांधी एक कर्मयोगी थे और अपने अंतरतम से बहुत आध्यात्मिक थे जिन्होंने भौतिक जगत का त्याग किया था और बड़े लक्ष्य के लिए काम कर रहे थे। उन्होंने अनेक जनांदोलन खड़े किए और लोगों से उनसे जुड़ने का आग्रह किया। उन्होंने अपने समय की एक पूरी पीढ़ी को राष्ट्र-निर्माण के काम से जोड़ा। गांधीजी एक सच्चे हिंदू थे जो अपनी प्रार्थना में रामधुन गाया करते थे। उन्होंने अपने आंदोलनों में हिदू दर्शन और प्रतीकों का उपयोग भरपूर किया। अपना स्वयं का जीवन त्यागपूर्ण तरीके से एक साधु की तरह व्यतीत किया। उनका कहना था कि ईमानदारी कोई नीति नहीं होती, बल्कि उसे जीवन का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। उनका मानना था कि सार्वजनिक जीवन में अव्वल दर्जे की शुचिता का पालन करना चाहिए। वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने भारतीय जीवन पद्धति को बढ़ावा दिया।

राजनीतिक विचार : देश आजाद होने के बाद उन्होंने कांग्रेस को खत्म कर लोक सेवक संघ बनाने की बात कही जो लोक जागरण और सेवा का काम करे। अब इस पृष्ठभूमि में देखें तो वर्तमान में गांधी की वैचारिक और सांगठनिक विरासत को कौन सा संगठन सही ढंग से प्रतिनिधित्व करता है। राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाली सोशलिस्ट पार्टी का सर्वोदय की विचारधारा में विश्वास था और वे गांधी के सच्चे अनुयायी होने का दावा भी करते थे, लेकिन उस पीढ़ी के बाद भारतीय समाजवादी आंदोलन अपने पथ से विमुख हो गया और देश की समाजवादी राजनीति एक दूसरी दिशा में चल पड़ी। साम्यवादियों ने कभी भी गांधी के विचारों पर विश्वास नहीं किया। वैसे हाल ही में एक माक्र्सवादी अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने 21वीं सदी में गांधी के विचारों पर ध्यान देने की बात कही है। आज की कांग्रेस और उसके कार्यकर्ता अपनी नेहरू-गांधी परिवार को बचाने में ज्यादा उत्सुक दिखाई देते हैं। महात्मा गांधी उनके कार्यालयों में तस्वीरों में तो दिखाई देते हैं, लेकिन विचारधारा, संगठन और राजनीतिक क्रियाकलापों में कहीं भी गांधी के विचार परिलक्षित होते नहीं दिखते।

संघ और गांधी : गांधी के सामाजिक राजनीतिक कार्यक्रमों, नीतियों और प्रतीकों पर दृष्टिपात करने पर ध्यान में आता है कि करीब 95 वर्ष पहले बना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसा संगठन है जो गांधी के कार्यक्रमों और विचारों के साथ आगे बढ़ रहा है। संघ जिन उद्देश्यों और उनको पाने के तरीकों के साथ आगे बढ़ रहा है उनमें गांधी की विरासत साफ दिखती है। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही ऐसा संगठन है जो रामराज्य, स्वदेशी, अंत्योदय, समरसता, सेवा जैसे विषयों पर काम कर रहा है और साथ ही आंदोलनों में सांस्कृतिक प्रतीकों का उपयोग, सात्विकता और शुचिता के साथ काम, कार्यकर्ताओं को संन्यासी की तरह का जीवन जीने का आग्रह करना जैसे कार्यों से जुड़ा है।

आजादी के बाद हुए दोनों बड़े आंदोलनों (आपातकाल के विरोध में और राममंदिर आंदोलन) में संघ की बड़ी भूमिका रही। संघ अपने बौद्धिक, रचनात्मक और आंदोलनात्मक तरीके से जैसे प्रयोग कर रहा है उनमें से कई में गांधी के विचार मिलते दिखते हैं। संघ सेवा के हजारों प्रकल्प चला रहा है। अंत्योदय के विचार को फलीभूत करने के लिए धरातल पर कई प्रयोग कर रहा है।

संघ की प्रेरणा से भी आज ऐसे ही हजारों प्रकल्प चल रहे हैं। आजादी के बाद संघ ने ही प्रस्ताव पारित कर अस्पृश्यता को पाप के समान करार दिया। राम को प्रतीक को केंद्र में रखकर राष्ट्र की चेतना को जागृत करने की कोशिश की। आर्थिक क्षेत्र में स्वावलंबन और देशज उद्योग को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी के विचार को आगे बढ़ाने का काम लगातार संघ करता रहता है। अगर हम संपूर्णता में देखें तो पाएंगे कि संघ (जो गांधी की तरह यह मानता आया है कि भारत की एक मौलिक एकता है) एक ऐसा संगठन है जो महात्मा गांधी के जन्म के 150वें वर्ष में उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहा है। जब देश गांधी का 150वां जयंती वर्ष मना रहा है तो यह समझने की जरूरत है कि कौन से ऐसे संगठन व लोग हैं जो उनकी विरासत का सच्चा प्रतिनिधित्व करते हैं। 

[प्राध्यापक, दिल्ली विश्वविद्यालय]