नलिन चौहान। सरदार वल्लभभाई पटेल की अगस्त 1947 में स्वतंत्र हुए भारतीय संघ के एकीकरण में निभाई भूमिका तो सर्वज्ञात है। परंतु यह बात शायद कम ही लोग जानते हैं कि सरदार पटेल ही अंग्रेजी राज की स्टील फ्रेम कही जाने वाली इंडियन सिविल सर्विस की निरंतरता को कायम रखने वाले निर्णायक व्यक्ति थे। उल्लेखनीय है कि आधुनिक भारत ने अंग्रेजों की औपनिवेशिक विरासत के रूप में नगर उन्मुख विकास, केंद्रीकृत योजना और राज के स्टील फ्रेम यानी सिविल सेवा के स्वरूप को बनाए रखा।

अनुभव के आधार पर पटेल ने दो स्तरों पर काम करने का निर्णय लिया। पहला, इंडियन सिविल सर्विस (आइसीएस) के भारतीय सदस्यों का विश्वास जीतना और दूसरा, आइसीएस के उत्तराधिकारी के रूप में नई सेवा के निर्माण का आदेश देना- भारतीय प्रशासनिक सेवा। इन दोनों के दो भिन्न उपयोग थे, आइसीएस का काम था- उत्तराधिकारियों (कांग्रेस) की ओर सत्ता का हस्तांतरण लागू करना और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) का काम था- स्वतंत्रता के बाद, प्रशासनिक एकता के जरिये इतने विशाल देश को जोड़ कर रखना।

सरदार पटेल ने अंतरिम सरकार के अपने पूर्ववर्ती अनुभवों को स्मरण रखते हुए 10 अक्तूबर 1949 को भारतीय संविधान सभा की बहस में कहा था, मैं इस सभा के रिकार्ड के लिए यह कहना चाहता हूं कि यदि गत दो या तीन वर्षो में सिविल सेवाओं के अधिकारियों ने देशभक्ति की भावना से और निष्ठा से काम नहीं किया होता तो यह संघ समाप्त हो गया होता। आप सभी प्रांतों के प्रीमियरों से पूछिए। क्या कोई भी प्रीमियर सिविल सेवा अधिकारियों के बिना काम करने को तैयार है? वह तत्काल त्यागपत्र दे देगा। उसका गुजारा नहीं है। हमारे पास सिविल सेवा के बचे हुए कुछ ही अधिकारी थे। हमने उन थोड़े से व्यक्तियों के साथ बहुत कठिनाई से कार्य किया है।

उल्लेखनीय है कि सरदार पटेल ने प्रशासन की स्थिरता, उसे पुन: सबल बनाने का कार्य तथा सिविल सेवाओं के मनोबल को ऊंचा रखने की दृष्टि से महत्वपूर्ण कदम उठाए। सरदार पटेल बिना देरी किए शीघ्रता से देश के केंद्रीय प्रशासनिक ढांचे को मजबूत बनाने के काम में जुट गए। 21 अप्रैल 1947 को दिल्ली के मेटकाफ हाउस में, जब देश में सत्ता का हस्तांतरण तकरीबन चार महीने दूर था और अभी इस विषय पर कोई निर्णय नहीं हुआ था, उस सरदार पटेल ने अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षण स्कूल के पहले परिवीक्षाíथयों के समूह को संबोधित किया। सरदार पटेल ने अपने संबोधन में कहा, आप भारतीय सेवा के अग्रणी हैं और इस सेवा का भविष्य आपके कार्यो, आपके चरित्र और क्षमताओं सहित आपकी सेवा भावना के आधार से रखी नींव और स्थापित परंपराओं पर निर्भर करेगा।

दिल्ली की यमुना नदी के किनारे बने इस स्कूल में प्रशिक्षण लेने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के 24 और भारतीय विदेश सेवा के नौ परिवीक्षकों को पटेल ने स्पष्ट शब्दों में कहा, शायद आप पिछली सिविल सेवा, जिसे इंडियन सिविल सíवस के नाम से जाना जाता है, उसे लेकर भारत में प्रचलित एक कहावत से परिचित हैं जो न तो भारतीय है, न ही सिविल है और उसमें सेवा की भावना का भी अभाव है। सही मायने में, यह भारतीय नहीं है, क्योंकि भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी अधिकतर अंग्रेजीदां हैं, उनका प्रशिक्षण विदेशी जमीन पर हुआ था और उन्हें विदेशी आकाओं की चाकरी करनी थी। इस कारण प्रभावी रूप से यह पूरी सेवा, भारतीय न होने, न ही नागरिकों के प्रति शिष्ट होने और न ही सेवा भावना से ओतप्रोत होने के लिए जानी जाती थी। फिर भी इसकी पहचान भारतीय सिविल सेवा के रूप में होती थी। अब यह बात बदलने जा रही है।

भारतीय प्रशासनिक सेवा में भर्ती के लिए पहली प्रतियोगी परीक्षा जुलाई 1947 में आयोजित हुई। इससे पूर्व इंडियन सिविल सर्विस के लिए चयनित, लेकिन वास्तव में उस सेवा में नियुक्त नहीं किए गए व्यक्तियों को भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल कर दिया गया। यह सरदार पटेल की पहल का ही परिणाम था कि केंद्रीय गृह मंत्रलय ने एक अक्तूबर, 1947 को प्रशासनिक तंत्र का भारतीय नामकरण करते हुए अंग्रेजों की इंडियन सिविल सíवस और इंडियन पुलिस को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) के रूप में नामित करने की सार्वजनिक घोषणा की।

दूरदर्शी पटेल को स्पष्ट था कि एक नव-स्वतंत्र राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधे रखने और किसी भी प्रकार के विखंडन को थामने के लिए एक शक्तिशाली अखिल भारतीय सिविल सेवा का होना महत्वपूर्ण है। उन्होंने इसी बात को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को 27 अप्रैल 1948 को भेजे पत्र में रेखांकित करते हुए लिखा, मेरे लिए इस बात पर जोर देना शायद ही जरूरी हो कि कार्यक्षम, अनुशासनबद्ध तथा संतुष्ट अधिकारी, जिन्हें अपने परिश्रमपूर्ण और प्रामाणिक कार्य के फलस्वरूप उन्नति का आश्वासन प्राप्त है, लोकतांत्रिक शासन पद्धति में स्थिर शासन के लिए निरंकुश शासन की अपेक्षा अधिक अनिवार्य है।

जब तक वर्तमान भारत और उसकी प्रशासनिक व्यवस्था जीवित है, सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम वर्तमान भारत के ऐसे राष्ट्र निर्माता के रूप में सदा स्मरण किया जाता रहेगा, जिन्होंने सभी देशी रियासतों का एक भारतीय संघ और उसके राजकाज को कायम रखने के लिए भारतीय सिविल सेवा की व्यवस्था को बनाया। उनके ये कार्य हमारे देश के एकीकरण और उसके तंत्र को अक्षुण्ण रखने की दिशा में स्थायी योगदान थे। इस विषय में उनके कार्यो को हम कभी विस्मरण नहीं कर सकते। जब तक भारत जीवित है, वर्तमान भारत के निर्माता के रूप में सरदार पटेल का नाम सदा स्मरणीय रहेगा।

[इतिहास के जानकार]