हृदयनारायण दीक्षित। भारत प्राचीन राष्ट्र है। यहां हजारों वर्षों से सांस्कृतिक निरंतरता है। सबको जोडऩे वाली प्राचीन संस्कृति है, लेकिन अंग्रेजीराज में सुनियोजित प्रचार हुआ कि भारत को अंग्रेजों ने ही राष्ट्र बनाया। गांधी जी इस मत के विरोधी थे। उन्होंने 'हिंद स्वराज' में लिखा है, 'आपको अंग्रेजों ने ही सिखाया है कि आप एक राष्ट्र नहीं थे। यह बात बिल्कुल बेबुनियाद है। जब अंग्रेज हिंदुस्तान में नहीं थे, तब भी हम एक राष्ट्र थे। तभी अंग्रेजों ने यहां एक राज्य कायम किया।' गांधी जी के अनुसार भारत एक राष्ट्र था और है, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भारत को राष्ट्र नहीं मानते। उन्होंने लंदन में आइडिया आफ इंडिया विषय पर कहा, 'भारत ब्रिटेन की तरह एक राष्ट्र नहीं है। यह यूरोपियन यूनियन जैसा संगठन है। उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-एक का उल्लेख करते हुए कहा, 'इंडिया दैट इज भारत इज ए यूनियन आफ स्टेट्स। यह राष्ट्र नहीं राज्यों के समझौतों का परिणाम है। हम भारत को लोगों के राजनीतिक समझौते का परिणाम मानते हैं।'

बेशक संविधान के अनुच्छेद-एक में भारत को राज्यों का संघ बताया गया है, लेकिन उद्देशिका में साफ कहा गया है, 'हम भारत के लोग भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य बनाने के लिए यह संविधान अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।'उद्देशिका में राष्ट्र की एकता, अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता का भी उल्लेख हैं। राष्ट्र की एकता शब्द ध्यान देने योग्य है। राहुल ने महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा, 'गांधी जी ने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान राज्यों और पंथों के परस्पर समझौते का विकास किया था।' यह कथन भी सही नहीं है। डा. आंबेडकर ने इस विषय पर स्पष्टीकरण (04-11-1948) दिया था, 'मसौदा समिति स्पष्ट करना चाहती है कि यद्यपि भारत एक संघ है, लेकिन यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते का परिणाम नहीं है।' भारत संप्रभु राष्ट्र राज्य है। वह किसी समझौते का परिणाम नहीं है। संप्रभु राष्ट्र ने देश की व्यवस्था सही ढंग से चलाने के लिए राज्यों का गठन किया। राष्ट्र ने ही राज्य बनाए।

भारतीय राष्ट्रभाव वैदिक काल में था। उत्तर वैदिककाल में था। चंद्रगुप्त मौर्य के समय था। माक्र्सवादी विद्वान डीडी कोसंबी ने 'प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता' में लिखा है, 'यहां अनेकता के साथ एकता है। पूरे देश की एक भाषा नहीं है। कई रंग वाले लोग हैं। अब तक जो कहा गया, उससे इस धारणा को बल मिल सकता है कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा। यह भी कि भारत की सभ्यता और संस्कृति मुस्लिम या ब्रिटिश विजय की ही उपज है। यदि ऐसा होता तो भारतीय इतिहास केवल विजेताओं का ही इतिहास होता।' कोसंबी की दृष्टि में विदेशी हमलों के पहले भी भारत एक राष्ट्र था। वह याद कराते हैं कि भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता अपने देश में इसकी निरंतरता है।

एक अन्य माक्र्सवादी विद्वान डा. रामविलास शर्मा ने हजारों वर्ष प्राचीन राष्ट्र का शब्द चित्र प्रस्तुत किया है। वह 'भारतीय नवजागरण और यूरोप' में लिखते हैं कि जस देश में ऋग्वेद के ऋषि रहते हैं, उस पर दृष्टिपात करें। सात नदियों वाला यह क्षेत्र विशेष है। उन्होंने मैक्डनल और कीथ को भी उद्धृत करते हुए लिखा है, 'यहां एक सुनिश्चित देश का नाम लिया गया है।' पुसालकर ने इसका समर्थन करते हुए नदी नामों के आधार पर राष्ट्र की रूपरेखा निर्धारित की है। इसमें अफगानिस्तान, पंजाब, अंशत: सिंध, राजस्थान पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश, कश्मीर और सरयू तक का पूर्वी भारत शामिल है। डा. शर्मा ने भारत को ऋग्वैदिककालीन राष्ट्र बताया है। उन्होंने अनेक विद्वानों का मत दिया है, 'जिस देश में सात नदियां बहती हैं, वह वही देश है, जहां जल प्रलय के बाद और भरतजन के विस्थापित होने के बाद हड़प्पा सभ्यता का विकास हुआ। यह देश ऋग्वेद और हड़प्पाकाल के बाद का बहुत दिनों तक संसार का सबसे बड़ा राष्ट्र था।' राष्ट्र केवल भूमि नहीं है। उस पर बसने वाले जन राष्ट्र हैं।

राष्ट्र समझौते का परिणाम नहीं होते। राष्ट्र गठन का आधार रिलिजन, पंथ और मजहब नहीं होता। अथर्ववेद के एक मंत्र में राष्ट्र के जन्म और विकास की कथा इस तरह है, 'ऋषियों ने सबके कल्याण के लिए आत्मज्ञान का विकास किया। कठोर तप किया। दीक्षा आदि नियमों का पालन किया। आत्मज्ञान, तप और दीक्षा से राष्ट्र के बल और ओज का जन्म हुआ।' 'ततो राष्ट्रं बलं अजायत।' राष्ट्र संस्कृत शब्द है। नेशन इसका अंग्रेजी रूपांतर है। राष्ट्र शब्द का उल्लेख ऋग्वेद में है। यजुर्वेद में है। अथर्ववेद में है। रामायण और महाभारत में है। राहुल गांधी का ज्ञान न केवल अनूठा, बल्कि दयनीय है। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की भी बात खारिज की। नेहरू ने डिस्कवरी आफ इंडिया में भारत राष्ट्र को अति प्राचीन बताया है। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों की भी अनदेखी की। भारत को समझौते का परिणाम बताने वाला उनका वक्तव्य राष्ट्र का अपमान है। उन्हें भारतीय इतिहास और संस्कृति का अध्ययन करना चाहिए।

यूरोपीय यूनियन का उदाहरण व्यर्थ है। यूरोपीय यूनियन समझौते से बनी है। इसके सदस्य देशों की संप्रभुता है, लेकिन यूरोपीय यूनियन की नहीं। भारत में राष्ट्र संप्रभु है। राज्य संप्रभु राष्ट्र के संविधान के अधीन छोटे किए जा सकते हैं और बड़े भी। राज्य व्यवस्था मूलक है। संविधान ने उन्हें अनेक अधिकार दिए हैं। राहुल जी संविधान में उल्लिखित राज्यों की सीमा बढ़ाने-घटाने के अधिकार से परिचित नहीं जान पड़ते। अमेरिका के राज्य स्थाई हैं। उनका संघ और भारत का संघ भिन्न है। अमेरिका अविनाशी राज्यों का संघ है। डा. आंबेडकर ने संविधान सभा (25.11.1949) में अमेरिकी कथा सुनाई, 'अमेरिकी प्रोटेस्टेंट चर्च ने देश के लिए प्रार्थना प्रस्तावित की कि हे ईश्वर हमारे राष्ट्र को आशीर्वाद दो।' इस पर आपत्तियां उठीं, क्योंकि अमेरिका राष्ट्र नहीं था। प्रार्थना संशोधित हुई, 'हे ईश्वर इन सयुंक्त राज्यों को आशीर्वाद दो।' स्पष्ट है राहुल जी को अध्ययन का क्षेत्र बढ़ाना चाहिए। भारतीय राज्य जीवमान सत्ता है। यहां राष्ट्र आराधन के लिए राष्ट्रगान है। राष्ट्रगीत है। राष्ट्र का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज है। राष्ट्रीय पक्षी है। इसलिए राष्ट्र के अस्तित्व पर प्रश्न उठाना आपत्तिजनक है।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)