ब्राह्मा चेलानी। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रमुख लोकतंत्रों का रणनीतिक गठबंधन क्वाड अब संकल्पना से अधिक यथार्थ का रूप ले रहा है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने एक वक्त इसका उपहास उड़ाते हुए इसे सुर्खियां बटोरने की कवायद बताया था, जो प्रशांत या हिंदू महासागर में किसी बुलबुले के मानिंद कहीं गुम हो जाएगी। हालांकि, चीन की विस्तारवादी नीतियों के चलते ही आस्ट्रेलिया-भारत-जापान और अमेरिका का क्वाड गठबंधन जोर पकड़ रहा है। चूंकि अमेरिकी प्रभुत्व कमजोर पड़ रहा है तो अमेरिका को अपने साथियों संग मिलकर अपनी पकड़ मजबूत बनाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। एक खुले एवं स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए क्वाड अमेरिकी रणनीति के केंद्र में है। आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ ‘आकस’ जैसी पहल के बावजूद अमेरिका के लिए क्वाड की अहमियत जरा भी कम नहीं।

स्पष्ट है कि भारत, जापान और आस्ट्रेलिया को साथ लिए बिना अमेरिका एशिया में स्थायित्वपूर्ण शक्ति संतुलन नहीं बना सकता। अमेरिका भी इसे भलीभांति समझता है। यही कारण है जहां लंबे समय तक क्वाड की कोई बैठक नहीं हुई, वहीं जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद 14 महीनों के भीतर क्वाड नेताओं की चार बैठकें आयोजित हो चुकी हैं, फिर भी इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता कि क्वाड की राह में अभी भी तमाम चुनौतियां कायम हैं। सदस्य देशों को उनका समाधान तलाश इस संगठन को तार्किक बनाने के लिए सक्रिय रहना होगा।

आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका और भारत इस समय चीन के भीमकाय व्यापार अधिशेष में सबसे बड़ा योगदान कर रहे हैं। इसी आर्थिक ताकत के दम पर चीन का सामरिक खतरा बढ़ रहा है। क्वाड का एक उद्देश्य चीन की सामरिक शक्ति से उपजे खतरे की काट करना है। दूसरी ओर आस्ट्रेलिया एवं जापान, दोनों ने बीजिंग प्रवर्तित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी यानी ‘आरसेप’ को मूर्त रूप देने में अहम भूमिका निभाई है। उन्हें ‘आरसेप’ से भारी आर्थिक लाभ होने की उम्मीद है, भले ही इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार के गणित को तय करने में चीन की ताकत ही क्यों न बढ़ जाए। चीन लंबे समय से विदेशी व्यापार को राजनीतिक संबंधों से अलग रखने की मुहिम चला रहा है और यह रणनीति क्वाड सदस्य देशों के साथ बढ़िया साबित होती दिख रही है। गत वर्ष चीन का व्यापार अधिशेष 676.4 अरब डालर के रिकार्ड स्तर पर रहा। महामारी के बावजूद विदेशी व्यापार में इतनी ऊंची बढ़त ही चीनी अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करती रही, अन्यथा वह पटरी से उतर जाती।

चीनी व्यापार अधिशेष में अमेरिका ही सबसे अहम किरदार है। 2021 में चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 25.1 प्रतिशत बढ़कर 396.6 अरब डालर की नई ऊंचाई पर पहुंच गया। दूसरे शब्दों में कहें तो चीन के व्यापार अधिशेष में 60 प्रतिशत का योगदान अकेले अमेरिका का है। वहीं भारत की बात करें तो इस साल चीन के साथ उसका व्यापार घाटा 88 अरब डालर तक पहुंचने का अनुमान है। यह पहले ही भारत के रक्षा बजट को पार कर चुका है। वह भी ऐसे समय में जब चीन के साथ पिछले दो वर्षो से सीमा पर तनातनी चल रही है। इसके बावजूद सरकार चीन से जुड़े इस जोखिम को कम करके आंकती दिख रही है। आस्ट्रेलिया और जापान की भी चीन से कारोबारी निकटता है। ऐसे में इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान यही दिखता है कि क्वाड देश चीन पर निर्भरता बढ़ाने के बजाय परस्पर व्यापार को वरीयता दें।

बीते दिनों टोक्यो में हुई क्वाड सदस्य देशों की बैठक से पहले अमेरिका ने इस दिशा में एक पहल की है। इसे हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा यानी आइपीईएफ नाम दिया गया है। यह कोई व्यापारिक व्यवस्था न होकर एक आर्थिक मंच है। इसका उद्देश्य भारत सहित 13 सदस्य देशों के बीच आपूर्ति श्रृंखला, स्वच्छ ऊर्जा और डिजिटल नियमों के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना है। यह पहल व्यापार बाधाओं या टैरिफ घटाए बिना ही की गई है। दूसरी ओर बाइडन प्रशासन चीन पर लगे व्यापार टैरिफ घटाने की दिशा में विचार कर रहा है, जबकि पहले उसने यही एलान किया था कि जब तक चीन अपना व्यवहार नहीं सुधारेगा, तब तक ये टैरिफ जारी रहेंगे। इस तरह देखा जाए तो बाइडन के नेतृत्व में क्वाड का ध्यान वैश्विक चुनौतियों के मामले में भी बदलता जा रहा है। ये चुनौतियां जलवायु परिवर्तन और साइबर सुरक्षा से लेकर वैश्विक स्वास्थ्य और लचीली आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी हैं। अपने छोटे दायरे को देखते हुए क्वाड व्यापक अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं दिखता। फिर भी मार्च 2021 के अपने पहले सम्मेलन में क्वाड देशों ने जलवायु परिवर्तन, वैक्सीन और अहम एवं उभरती तकनीकों को लेकर कार्यकारी समूह गठित किए। उसी साल सितंबर में जब क्वाड नेता व्हाइट हाउस में मिले तो साइबर सुरक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं अंतरिक्ष जैसे विषयों पर तीन और समूह बना दिए। बहरहाल वादे, इरादे और उन्हें पूरा करने के बीच अंतर तो वैक्सीन के मामले में ही दिख गया, जब अमेरिका ने भारत के वैक्सीन निर्माण से लेकर अन्य देशों को उसकी उपलब्धता की राह में अवरोध पैदा कर दिए।

क्वाड का टोक्यो सम्मेलन यही दोहराता है कि अत्यंत महत्वाकांक्षी एजेंडा न केवल क्वाड के हिंदू-प्रशांत फोकस को कमजोर करेगा, बल्कि इससे समूह को परिणामोन्मुखी बनाना भी मुश्किल होगा। वैसे भी एक ऐसे दौर में जब अमेरिका यूक्रेन को हथियार आपूर्ति से लेकर तमाम अन्य किस्म की मदद के माध्यम से रूस के साथ छद्म युद्ध में उलझा हुआ है, तब क्वाड के समक्ष नई अनिश्चितताएं उत्पन्न हो गई हैं। ऐसी स्थिति में बाइडन को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि चीन में रूसी अर्थव्यवस्था को सहारा देने की क्षमता है। नि:संदेह सदस्य देशों की निरंतर बैठक और व्यापक सक्रियता से क्वाड मजबूत हो रहा है, लेकिन खतरा यह है कि इससे वह अपनी रणनीतिक दृष्टि और उद्देश्य से भटक सकता है। क्वाड इस समय चौराहे पर खड़ा है। अगर वह कोई ऐसा शोपीस नहीं बनना चाहता है, जो केवल चीनी विस्तारवाद को बढ़ावा देता हो तो उसके सदस्य देशों को एक स्पष्ट रणनीतिक दिशा एवं मायने तलाशने होंगे। इसका पहला चरण तो यही होगा कि क्वाड वैश्विक चुनौतियों के बजाय हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े मुद्दों से निपटने पर ध्यान केंद्रित करे।

(लेखक सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं)