लखनऊ, सद्गुरु शरण। Ayodhya Ram Mandir News अयोध्या और सरयू युगों का फर्क भूलकर भाव विह्वल हैं। उन्हें लगता है कि उनके पुत्र राम वनवास पूरा करके पांच अगस्त को वापस आ रहे हैं। राम अपने संसारी अस्तित्व से भी प्राचीन अयोध्या और सरयू को मां ही मानते थे। दोनों उनकी लौकिक अलौकिक लीला के हर पल की साक्षी हैं। उन्होंने त्रेता में राम को वन जाते देखा तो फूट-फूटकर रोईं। राम चौदह वर्ष वनवास के बाद लौटे तो दोनों खुशी में रो पड़ीं। आज राम की दोनों माताओं की आंखें फिर खुशी से झर रही हैं। करीब 500 वर्ष के निर्वासन के बाद अयोध्या में वनवास से लौटे राम के राजतिलक जैसा उल्लास है।

अयोध्या और सरयू ही क्यों, रामनगरी का कण-कण आनंदमग्न है। अयोध्या त्रेता की ही तरह रंगों-चित्रों से सजाई जा रही है। दीवारों पर राम और उनकी लीला के  चित्र उकेरे जा रहे हैं। राम संपूर्ण ब्रह्मांड के नियंता हैं। अखिल सृष्टि से स्वामी हैं। हर सनातनधर्मी के आराध्य हैं, पर अयोध्या और सरयू का गर्व सबसे अलग है। राम उनके पुत्र हैं। अयोध्या उनके रामलला स्वरूप की साक्षी हैं तो सरयू अपने घाट पर उनकी जलसमाधि की। राम अपने भव्य प्रासाद में करीब 500 वर्ष बाद फिर विराजेंगे। पूरी दुनिया के सनातनर्धिमयों की कई पीढ़ियों के संघर्ष का सुफल साकार होने की घड़ी आ गई तो इंतजार का हर पल सबको उतावला कर रहा है।

कैसा सुखद संयोग है कि रामलला के भव्य मंदिर का सदियों पुराना सपना साकार होने की घड़ी में उत्तर प्रदेश की सियासी कमान भगवाधारी संत योगी आदित्यनाथ के हाथ में है जो खुद राम मंदिर अनुष्ठान के साधक रहे हैं। वह जिस गोरक्ष पीठ के महंत हैं, वह शुरू से राम जन्मभूमि आंदोलन की ध्वजवाहक रही। तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ राम जन्मभूमि न्यास के संस्थापक अध्यक्ष थे। ऐसे में राम जन्मभूमि से गोरक्षपीठ और योगी आदित्यनाथ का भावनात्मक रिश्ता समझा जा सकता है। मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद से ही योगी को अयोध्या और सरयू की फिक्र रही, पर राम मंदिर निर्माण का मार्ग निष्कंटक होने के बाद अयोध्या में विश्व का भव्यतम मंदिर बनाने का उनका सपना बार-बार व्यक्त हो रहा है। वह मौका मिलते ही अयोध्या पहुंचते हैं और तैयारी को परखते हैं। राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करने खुद प्रभानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या आ रहे हैं। यह सोने में सुहागा जैसा संयोग है।

राम मंदिर के लिए भूमि पूजन का उत्सव रामनगरी के मठ-मंदिरों में शुरू हो चुका है। संतों-धर्माचार्यों के मुखमंडल पर प्रिय उपहार पाने जैसी बालसुलभ प्रसन्नता बिखर रही है। रामनगरी ठीक उसी तरह तैयारी कर रही है, जैसे त्रेता में अपने राम के वनवास से लौटने पर की होगी। गृहस्थ अपने घर-दुकानें और साधु-संत अपने मठ-मंदिर चमका रहे हैं। सभी गलियां, चौक स्वच्छ किए जा रहे हैं। धर्मस्थलों की रंगाई-पोताई चल रही है। अयोध्या की दीवारों का रंग-रोगन करके राम की लीला के चित्र उकेरे जा रहे हैं। भूमि पूजन पांच अगस्त को होगा, पर इसका उत्सव कई दिन पहले से। हर कोई अपनी सामथ्र्य और सुविधा के हिसाब से इस अनुष्ठान में योगदान करने को आतुर है। कोरोना संक्रमण को लेकर बरते जा रहे एहतियात के कारण लोगों को अयोध्या जाने से रोका गया है, पर केंद्र और राज्य सरकार ऐसे इंतजाम करवा रही है ताकि सजीव प्रसारण के जरिये लोग घर बैठे इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बन सकें।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो दशकों से राम जन्मभूमि आंदोलन का रणनीतिकार रहा, र्आिथक सहयोग के बहाने दस करोड़ परिवारों को भावनात्मक रूप से राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया से जोड़ने का अभियान चलाएगा। राम मंदिर निर्माण के लिए धन और सोना-चांदी दान करने के संकल्प देश-विदेश में व्यक्त होने लगे हैं। कोई मंदिर के लिए स्वर्ण-शिखर तो कोई इसके हिस्सों को सोने-चांदी से मंडित कराने का इच्छुक है। राम मंदिर निर्माण शुरू होने की घटना सनातन धर्म के वैभवशाली इतिहास का पूज्य-पावन पल है।

याद आ रहे तस्वी बलिदानी : राम मंदिर निर्माण शुरू होने की घड़ी में विहिप नेता अशोक सिंहल और रामचंद्रदास परमहंस की कमी सबको खल रही है जिन्होंने दशकों तक राम जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व किया, पर भव्य राम मंदिर का सपना आंखों में बसा, गोलोकधाम चले गए। ये दोनों महारथी राम मंदिर के लिए अपनी निष्ठा, नेतृत्व और तपस्या की वजह से इस आंदोलन का चेहरा बन चुके थे, पर उनके जीवनकाल में यह विवाद तमाम प्रयास के बावजूद नहीं निपट सका।

[स्थानीय संपादक]