[ दिव्य कुमार सोती ]: वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का हाल में ही निधन हुआ है। निधन से कुछ दिन पहले ही उनका अंतिम आलेख छपा था जो असम के हालात पर केंद्रित था। उसमें उन्होंने लिखा था कि एक समय कांग्रेस के बड़े नेता फखरुद्दीन अली अहमद, जो राष्ट्रपति भी रहे, ने यह माना था कि वोट के लिए बांग्लादेश से मुस्लिम असम लाए गए थे। उनके मुताबिक कांग्रेस ने यह काम जानबूझकर किया, क्योंकि वह असम को अपने साथ रखना चाहती थी, लेकिन सच्चाई केवल यही नहीं है। असम में बाहरी लोगों के आकर बसने की समस्या 1905 में बंगाल के विभाजन के समय से ही शुरू हो गई थी। तब ब्रिटिश प्रोत्साहन से पूर्वी बंगाल से बड़ी तादाद में बंगाली मुसलमानों ने बेहद उपजाऊ ब्रह्मपुत्र घाटी का रुख करना शुरू किया था।

दरअसल असम के इलाके बेहद उपजाऊ थे, परंतु वहां की जमीन के बड़े हिस्से का उपयोग नहीं हो पा रहा था। इसका कारण यह था कि इन इलाकों की आबादी काफी कम थी। दूसरी तरफ ब्रिटिश राज का एकमात्र लक्ष्य प्राकृतिक संसाधनों का अधिक से अधिक दोहन और खेती से ज्यादा से ज्यादा राजस्व पैदा करना था। ऐसे में खेती से बाहर पड़ी उपजाऊ योग्य भूमि पर घनी आबादी वाले पूर्वी बंगाल से मुसलमानों का असम में आना और परती पड़ी भूमि पर खेती करना शुरू हुआ। अंग्रेजों ने इसको लाइन सिस्टम कहा। यहां तक सब ठीक था, परंतु पूर्वी बंगाल के मुस्लिम नेताओं ने इन परिस्थितियों का इस्तेमाल इस्लामी विस्तारवाद के लिए करने की ठान ली। 1905 में बंगाल का विभाजन होते ही 1906 में ढाका में गठित मुस्लिम लीग ने पूर्वी बंगाल के मुसलमानों को असम में जाकर बसने को कहना शुरू कर दिया था। इसके साथ ही सांप्रदायीकरण होना शुरू हो गया।

1930 का दशक आते-आते स्थिति इतनी भयावह हो चुकी थी कि ब्रिटिश सरकार के जनसांख्यिकी अधिकारी अपनी रिपोर्ट में यह मानने लगे थे कि असम ऐसे जनसांख्यिकी आक्रमण का शिकार हो चुका है जो असमिया संस्कृति को खत्म कर देगा। 1930 के दशक में यह एक राजनीतिक मुद्दा भी बन चुका था। 1937 में गोपीनाथ बोरदोलोई के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार मुस्लिम आबादी की बसाहट को रोकने के वादे के साथ सत्ता में आई। एक राष्ट्रवादी नेता होने के नाते बोरदोलोई ने उस दिशा में ईमानदारी से प्रयास भी किए, लेकिन 1939 में कांग्रेस हाईकमान ने ब्रिटिश नीतियों के विरोध में अपनी प्रदेश सरकारों से इस्तीफे दिलवाने का फैसला किया।

असम में लगातार हो रही मुसलमानों की इस बसाहट और इस कारण उत्पन्न स्थिति को देखते हुए सुभाष चंद्र बोस और बोरदोलोई जैसे कई कांग्रेस नेताओं का मन था कि असम में कांग्रेस सरकार से इस्तीफा न दिलाया जाए और बोरदोलोई सरकार को पूर्वी बंगाल से हो रही लोगों की आमद को रोकने के काम में लगे रहने दिया जाए, परंतु दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान के लिए असम प्राथमिकता नहीं था। बोरदोलोई सरकार को भी अन्य प्रदेश सरकारों की तरह इस्तीफा दिलवा दिया गया।

इस निर्णय के कारण असम में मुस्लिम लीग को सरकार बनाने का मौका मिल गया जिसका उसने अपने इस्लामिक विस्तारवादी एजेंडे को लागू करने में इस्तेमाल किया। मुस्लिम लीग सरकार ने पूर्वी बंगाल से आने वाले मुसलमानों को एक लाख बीघा जमीन और आवंटित कर दी। इस सबका नतीजा यह हुआ कि निचले असम में जो मुस्लिम जनसंख्या 1901 में 14 फीसद थी वह 1941 आते-आते 32 फीसद हो गई। परिणामस्वरूप मुस्लिम लीग ने असम को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग करनी शुरू कर दी। अब तक गांधी जी समझ चुके थे कि असम में बड़ी चूक हो चुकी है। उन्होंने माना कि सुभाष चंद्र बोस 1939 में असम में कांग्रेस सरकार के इस्तीफे का जो विरोध कर रहे थे, वह सही था।

असम में 1944 तक स्थितियां कितनी अधिक विकट हो चुकी थीं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गांधी जी ने पूर्वी बंगाल के लोगों को असम में बसाने को राष्ट्रविरोधी गतिविधि करार देते हुए कहा था कि इससे लड़ने के लिए जरूरत पड़ने पर अहिंसात्मक और हिंसात्मक, दोनों तरीके अपनाने होंगे। इसके बाद भी कांग्रेस हाईकमान असम के हालात को लेकर गंभीर नहीं हुआ।

देश के बंटवारे से पहले 1946 में अंग्रेजों द्वारा भेजे गए कैबिनेट मिशन ने असम को मुस्लिम बहुल बंगाल के साथ ग्रुप सी में रख दिया, जिसका व्यावहरिक मतलब असम पर पूर्वी पाकिस्तान में शामिल किए जाने का खतरा था। आजादी हासिल करने की जल्दी में कांग्रेस यह जुआ खेलने के लिए भी तैयार थी। ऐसे में बोरदोलोई ने गांधी जी से मदद मांगी। गांधी जी ने बोरदोलोई को कहा कि असम को पाकिस्तान में शामिल किए जाने से रोकने और असम को ग्रुप सी में शामिल किए जाने का पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए और इसके लिए जरूरी हो तो असम कांग्रेस के नेता कांग्रेस के खिलाफ खुला विद्रोह करें। इस समर्थन से उत्साहित बोरदोलोई अड़ गए और ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस, दोनों को झुकना पड़ा।

बोरदोलोई ने असम को पाकिस्तान में जाने से तो बचा लिया, परंतु आजादी के बाद मुख्यमंत्री के तौर पर जब उन्होंने घुसपैठियों को निकालने का प्रयास किया तो उन्हें प्रधानमंत्री नेहरू के विरोध का सामना करना पड़ा। एक मौके पर तो नेहरू ने नाराज होकर राज्य को केंद्र से मिलने वाली मदद तक रोकने की धमकी दे दी थी। सीमापार से होने वाली घुसपैठ रोकना केंद्र के जिम्मे आता है, लेकिन नेहरू सरकार इसे लेकर गंभीर नहीं थी। दूसरी ओर पाकिस्तान ने असम को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की योजना कभी नहीं छोड़ी। बाद में यही योजना बांग्लादेश ने अपना ली।

1991 में बांग्लादेश के जाने माने विचारक सादिक खान ने हॉलीडे पत्रिका में लेख लिखकर ‘लेबंसराम’ थ्योरी दी। इसके तहत इस पर जोर दिया गया कि बांग्लादेश की बढ़ती आबादी को पश्चिम बंगाल और भारत के उत्तर-पूर्व के सात राज्यों में योजनाबद्ध तरीके से फैलाना चाहिए। अगर निचले असम पर नजर डालें तो 1971 से 2011 के बीच मुस्लिम आबादी तकरीबन 15 फीसद बढ़कर 45 फीसद पहुंच चुकी थी। 1906 में भी इस इलाके को मुस्लिम बहुल बनाना मुस्लिम लीग की योजना थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तैयार एनआरसी का विरोध कर रहीं पार्टियों और खासकर तृणमूल कांग्रेस को बताना चाहिए कि जो काम देश का विभाजन कराने वाली मुस्लिम लीग ने शुरू किया था उसे वे क्यों जारी रहने देना चाहती हैं?

[ लेखक कांउसिल फॉर स्ट्रैटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं ]