डॉ. अनिल सौमित्र। देशहित से जुड़े अनेक मसलों के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपनी बात देश-दुनिया के लोगों तक ‘मन की बात’ के जरिये पहुंचाते हैं। अपने कर्मो और विचारों के माध्यम से उन्होंने देश में कई तरह के बदलाव की शुरुआत की है। हालांकि नरेंद्र मोदी से राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर अभी अनेक परिवर्तनों की अपेक्षा है, किंतु आगे के कार्यकाल के दौरान और कुछ उल्लेखनीय न भी हुआ तो भी उनके नाम अनेक उपलब्धियां दर्ज हो चुकी हैं।

संन्यासी के रूप में भारत का विश्व संचार

तब का नरेंद्र संन्यासी के रूप में भारत का विश्व संचार कर रहा था, लेकिन आज का नरेंद्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, प्रचारक और प्रधानमंत्री के रूप में भारत का विश्व संचार कर रहा है। अमेरिका, चीन, रूस समेत फ्रांस, इजराइल आदि देशों की मोदी की प्रत्येक विदेश यात्र भारत का संदेश देने वाली सिद्ध हुई है। उनकी अनेक राष्ट्रों की यात्र ना सिर्फ आर्थिक और व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामरिक, सांस्कृतिक और राजनय की दृष्टि से भी मील का पत्थर है। उल्लेखनीय है कि अनेक देशों की संस्कृति और परंपरा भारत की सनातन जीवन परंपरा से प्रभावित रही है।

भारत को मानते हैं बड़ा भाई

अनेक राष्ट्र आज भी भारत को सांस्कृतिक तौर पर अपना गुरु, मित्र और बड़ा भाई मानते हैं। भारत के शासक या राष्ट्राध्यक्ष से दुनिया को इसी भूमिका की अपेक्षा है, किंतु दुर्भाग्यवश अभी तक अंग्रेज द्वारा अनुशंसित गांधी-नेहरू मॉडल ही प्रचलित रहा। चाहे पंचशील का सिद्धांत हो, गुट-निरपेक्षता का व्यवहार या ‘हिंदी -चीनी भाई-भाई’ का नारा, भारत को एक दमित, शोषित, पिछलग्गू और विपन्न राष्ट्र के रूप प्रतिनिधित्व दिया जाता रहा है। पहले इंग्लैंड, फिर सोवियत रूस और बाद में अमेरिका से पोषित राष्ट्र की छवि वाला भारत दुनिया की नजरों में रहा है।

अमेरिका-रूस के अपने हित

इतिहास गवाह है कि अमेरिका और सोवियत रूस अपने राष्ट्रीय हितों के लिए सशस्त्रीकरण करते रहे और पूरी दुनिया के लिए नि:शस्त्रीकरण का सिद्धांत रचते रहे। भारत इन दोनों राष्ट्रों के हितों का ही पोषण करता रहा। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह के कार्यकाल तक कमोबेश यही चला। लाल बहादुर शास्त्री और अटल बिहारी वाजपेयी इस संबंध में अपवाद कहे जा सकते हैं। ये दोनों कुछ करना चाहते थे, लेकिन विषम परिस्थितियों के कारण असफल रहे।

वाजपेयी का यूएन में हिंदी में भाषण

अत: कह सकते हैं कि 1947 के बाद अभी तक भारत में जितने भी राजपुरुष हुए हैं, उनमें से सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर भारत का पक्ष प्रस्तुत किया, लेकिन भारत का स्वतंत्र और समग्र प्रतिनिधित्व करने वाला पक्ष किसी प्रधानमंत्री ने नहीं रखा। यह मोदी का संचार कौशल ही है कि अयोध्या, धारा-370, तीन तलाक और नागरिकता पंजीयन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी देश के मुसलमानों और अनेक ईसाई- इस्लामिक राष्ट्रों के नेताओं का समर्थन कांग्रेसी- कम्युनिस्ट मिथक का खंडन-मंडन है। विरोधी देश भी अब भारत के साथ स्वाभाविक सांस्कृतिक संबंधों से जुड़ने को लालायित हो रहे हैं।

क्‍या कहता है आरएसएस

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के अनुसार, ‘नरेंद्र भाई दुनिया भर में नाम कमा रहे हैं और उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है, लेकिन इससे उनके व्यक्तित्व, कार्यो या नेतृत्व पर कोई असर नहीं पड़ा है। वे आज भी वैसे ही हैं जैसा वे मुख्यमंत्री बनने से पहले थे। उनका सबसे बड़ा गुण यह है कि जैसी जरूरत होती है, उसी के अनुरूप वे काम करते हैं।’

मोदी भी होते हैं असहमत

ऐसा नहीं है कि संघ, भाजपा या अन्य संगठनों के कार्यकर्ता- पदाधिकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किसी बात से असहमत नहीं होते। मोदी से अनेक असहमतियां हैं। भिन्न-भिन्न भूमिकाओं और वैचारिक प्रतिबद्धताओं के कारण मतभेद या असहमति स्वाभाविक और आवश्यक है, किंतु मोदी के बारे में उनके आलोचक भी मानते हैं कि जानते-बूझते हुए वे भारत के राष्ट्रीय हितों के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे, किसी भी कीमत पर नहीं करेंगे। संभव है उनके प्रयासों में नीतिगत या व्यवहारगत कमी या दोष हो, पर नीयत में लेशमात्र भी खोट नहीं। मोदी समर्थक उनके आडंबररहित एवं प्रभावी प्रशासन शैली और उनकी करिश्माई भाषण शैली के कायल हैं। मोदी की लिखी और मोदी पर लिखी गई किताबें बेस्ट सेलर हो रही हैं। उनकी पुस्तकें उनके भाषणों की तरह शक्तिशाली, अंतर्दृष्टिपूर्ण और ज्ञानवर्धक हैं।

मोदी का व्यक्तित्व और उनका अनुभव 

नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व उनके अनुभवों का प्रतिबिंब है, उनके संघर्ष और सफलता की कहानी है। अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी जिस प्रकार देश को एक नई ऊंचाइयों पर ले गए, विकास योजनाओं को लागू किया, उससे भारत में या फिर वैश्विक परिदृश्य में अनेक रिकॉर्ड कायम हुए हैं। ये वो रिकॉर्ड हैं, जिनसे पूरी दुनिया में भारत का सम्मान बढ़ा है। विदेशी भूमि पर नरेंद्र मोदी का खड़ा होना भारत का अपने ओज-तेज, पराक्रम और वैभव के साथ विश्व पटल पर खड़ा होना है।

मोदी एक कुशल, श्रेष्ठ और आदर्श संचारक

जैसा कि शुरू में उल्लेख किया गया कि मोदी एक कुशल, श्रेष्ठ और आदर्श संचारक हैं, वे विविध रूपों और आयामों में भारतीयता के विश्वसंचारक सिद्ध हुए हैं। मोदी एक स्वयंसेवक, प्रचारक, राजपुरुष, वक्ता आदि के रूप में देश-दुनिया से संचार कर रहे हैं। वे संचार के तमाम प्रारूपों, प्रक्रियाओं, पद्धतियों और माध्यमों का उपयोग करते हैं। संचारक के रूप में यदि देखा जाए तो चुनाव के समय मोदी त्रि-आयामी (थ्री-डी) आभासी मोदी बन जाते हैं। मोदी टेक्नोक्रेट नहीं, टेक्नोसेवी हैं।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं) 

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