बृजलाल। देश में पुलिस आयुक्त प्रणाली बहुत पुरानी प्रणाली है जिसे अंग्रेज शासकों ने कलकत्ता (कोलकाता) बॉम्बे (मुंबई) तथा मद्रास (चेन्नई) में सबसे पहले लागू किया था। उन्होंने इस प्रणाली को इन शहरों में लागू किया था जहां से वे न केवल अपना व्यापार करते थे, बल्कि ब्रिटिश शासन के अधीन आने वाली कानून व व्यवस्था पर भी नियंत्रण रखते थे।

पुलिस कमिश्नर प्रणाली में सीआरपीसी के अंतर्गत जिला मजिस्ट्रेट को दिए गए मजिस्टियल पावर पुलिस आयुक्त को दिए जाते हैं। भीड़ को तितर-बितर करने, लाठीचार्ज से लेकर गोली चलाने तक की आवश्यकता पड़ जाती है, बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के यह संभव नहीं होता है। कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारी और मजिस्ट्रेट में एक मत न होने के कारण आवश्यक बल प्रयोग में देरी हो जाती है जिसका असर यह होता है कि उपद्रवी भी ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं और जहां टीयर गैस और लाठीचार्ज करने के काम चल जाता है वहां पुलिस को मजबूर होकर गोली चलानी पड़ती है।

कभी कभी तो मजिस्ट्रेट समय से मौके पर नहीं जाते जिससे पुलिस सामान्य प्रक्रियाओं के तहत शांति व्यवस्था बनाने में अक्षम महसूस करने लगती है। कुछ मजिस्ट्रेट बल प्रयोग करने के आदेश पर दस्तखत ना कर अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं। इस तरह से पुलिस विषम परिस्थितियों में अधिकार विहीन दायित्वों का निर्वहन करती है। मैं वर्ष 1992 में वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक था। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत को मेरठ मंडल में ही गिरफ्तार करने का आदेश दिया। मेरठ के किठौर में डीएम, एसएसपी, बुलंदशहर, गाजियाबाद को भी कहा गया कि सभी मौजूद रहेंगे।

दोनों जिलों के डीएम, एसएसपी आ गए, लेकिन मेरे साथ तैनात रहे डीएम तुलसी गौर न तो खुद गए और न ही किसी मजिस्ट्रेट को भेजा। मैंने टिकैत को गिरफ्तार कर लिया और मेरे पास उस वक्त कोई मजिस्ट्रेट नहीं था जो गिरफ्तारी के वारंट पर हस्ताक्षर कर सके। वायरलेस पर एसडीएम निखिल शुक्ला की आवाज सुन कर मैंने उन्हें बुलाया और वारंट पर दस्तखत कराए और महेंद्र सिंह टिकैट को प्रयागराज (इलाहाबाद) की नैनी जेल भिजवाया। पुलिस आयुक्त प्रणाली में ये पूरे अधिकार पुलिस कमिश्नर में निहित होते हैं।

बहुत सी ऐसी परिस्थितियां भी उत्पन्न होती हैं कि पुलिस अधिकारी और मजिस्ट्रेट एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं जो अब इस व्यवस्था के लागू होने से समाप्त हो जाएंगे और पुलिस को भी यह मौका नहीं मिलेगा कि वे असफलता का आरोप किसी अन्य पर टाल सके। अपराध नियंत्रण में गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून धारा 107/ 116/ 151 सीआरपीसी धारा 109/ 110 सीआरपीसी में कार्रवाई अपराध नियंत्रण के लिए बहुत आवश्यक होती है जिसमें कार्रवाई जिला मजिस्ट्रेट स्तर से की जाती है।

अक्सर देखा जाता है कि एसडीएम कोर्ट में पुलिस की रिपोर्ट पहुंचने के बाद भी कार्रवाई नहीं होती और कभी होती भी है तो बहुत देर बाद जिससे आपराधिक घटना घटित हो जाती है और उसके लिए पुलिस को ही जिम्मेदार माना जाता है। यह धारा 107/ 116/ 151 में गिरफ्तारी के साथ दो पार्टियों को पाबंद करने के अधिकार पुलिस उपायुक्त/ सहायक पुलिस आयुक्त को होगा जिससे त्वरित कार्रवाई कर संभावित शांति भंग और आपराधिक घटनाओं को रोका जा सकेगा।

पुलिस द्वारा अवैध असलहों की बरामदगी भारी मात्र में की जाती है, लेकिन जब तक जिलाधिकारी की अनुमति नहीं मिलती तब तक विवेचक न्यायालय में चार्जशीट नहीं लगा सकता है। इसमें विवेचकों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है और जिलाधिकारी की अनुमति के लिए कई दिनों तक चक्कर लगाने पड़ते हैं। अब यह अधिकार पुलिस आयुक्त को मिलने पर समय से न्यायालय में चार्जशीट प्रेषित की जा सकेगी। धरना, प्रदर्शन, मनोरंजन के कार्यक्रमों में लोग अनुमति के लिए जिलाधिकारी को आवेदन करते हैं, पुलिस द्वारा आख्या मांगी जाती है। अब ऐसे आयोजनों पर पुलिस आयुक्त अपने स्तर से सीधे निर्णय ले सकेंगे। कानून व्यवस्था का कार्य जिलाधिकारी तथा उनके अधीनस्थों के पास से हटने के कारण उन्हें अपने जिले में विकास कार्यो में पूरा समय मिलेगा जो पहले संभव नहीं पाता था।

धर्मवीर आयोग ने आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार में रिपोर्ट दी थी जिसमें महानगरों में बेहतर पुलिस व्यवस्था के लिए पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की संस्तुति की थी। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राम नरेश यादव ने 1978 में कानपुर में यह प्रणाली लागू की थी। वासुदेव पंजानी को कानपुर का पुलिस आयुक्त नियुक्त भी कर दिया था। परंतु बाद में उन्होंने इसे निरस्त कर दिया। तब से यह मामला लंबित रहा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस प्रणाली को प्रदेश के दो शहरों में लागू कर ऐतिहासिक काम किया है। इससे पुलिस की भी जवाबदेही बढ़ी है और अब उनका कर्तव्य बनता है कि मुख्यमंत्री की अपेक्षाओं पर खरे उतरें और पुलिसिंग का ऐसा आयाम कायम करें जिससे वहां की जनता को लाभ मिले और कानून व्यवस्था की स्थिति को बहुत अच्छा बनाया जा सके। विकास तब तक संभव नहीं हो पाता, जब तक वहां की कानून व्यवस्था ठीक नहीं होती है। इस प्रणाली से इन महानगरों में विकास को गति मिलेगी और बेहतर कानून व्यवस्था होने से व्यापारी व निवेशकों को उद्योग-धंधे लगाने में प्रोत्साहन मिलेगा जिससे रोजगार सृजित होंगे और प्रदेश के विकास की रफ्तार तेज होगी।

पूर्व डीजीपी, उत्तर प्रदेश