[ संजय गुप्त ]: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 73वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम जो संबोधन दिया उसमें उनके इस कार्यकाल की भावी रूपरेखा का लेखाजोखा कहीं अधिक स्पष्ट रूप में सामने आया। इस संबोधन में उन्होंने अनुच्छेद-370 हटाए जाने के संदर्भ में विपक्ष और खासकर कांग्रेस को तो आईना दिखाया ही, यह भी रेखांकित किया कि कैसे एक ऐतिहासिक भूल को मात्र 75 दिन में सुधार दिया गया। प्रधानमंत्री का यह कहना सही है कि इस फैसले के बाद भारत का प्रत्येक नागरिक यह कह सकता है कि अब यहां ‘एक देश-एक संविधान’ है। उन्होंने नए भारत के लक्ष्य के लिए ‘एक देश-एक चुनाव’ पर चर्चा को भी आवश्यक बताया। इसके लिए उन्होंने जीएसटी का उदाहरण रेखांकित करते हुए यह याद भी दिलाया कि ‘एक देश-एक टैक्स’ की तरह ‘एक देश और एक मोबिलिटी कार्ड’ की व्यवस्था पहले ही शुरू की जा चुकी है। स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री देश में व्यवस्थाओं में एकरूपता पर जोर दे रहे हैं।

कश्मीर मामले पर पाकिस्तान पराजित

अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद पाकिस्तान कश्मीर के मामले में पूरी तरह पराजित हो चुका है। प्रधानमंत्री ने भी अपने संबोधन में बिना नाम लिए पाकिस्तान को आगाह कर दिया कि वह आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद करे। मोदी ने बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में बढ़ रहीं आतंकी गतिविधियों का हवाला देकर विश्व समुदाय को भी आश्वस्त किया कि भारत आतंकवाद के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध होने के साथ ही इस क्षेत्र में शांति एवं स्थायित्व के लिए अपनी भूमिका को लेकर गंभीर है।

मोदी के भाषण से पाक को सचेत हो जाना चाहिए

उनके भाषण से पाकिस्तान को सचेत हो जाना चाहिए कि अगर उसने अपनी नीति नहीं बदली तो उससे निपटने में भारत की जवाबी कार्रवाई बालाकोट से भी अधिक घातक हो सकती है। लाल किले से ही प्रधानमंत्री ने पहली बार तीनों सुरक्षा बलों में बेहतर समन्वय एवं उनकी क्षमताओं में और पैनापन लाने के उद्देश्य से चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी सीडीएस के गठन की घोषणा की। यह सैन्य सुधार का एक महत्वपूर्ण कदम है।

पीएम मोदी चुनौतियों से निपटना भी जानते हैं

प्रधानमंत्री मोदी की यह खूबी रही है कि वह भारत के समक्ष चुनौतियों को बखूबी समझते हैं और उनसे उतने ही अच्छी तरह निपटना भी जानते हैं। पिछले कार्यकाल में उन्होंने स्वच्छता अभियान के जरिये खुले में शौच से मुक्ति के लिए अभियान चलाया था और उसमें सफलता भी पाई। ऐसे ही गरीब महिलाओं को भी उन्होंने एलपीजी कनेक्शन देकर उनकी दशा सुधारी। अब उनकी नजर उन लोगों पर है जो जल संकट से त्रस्त हैं। देश के पचास प्रतिशत से अधिक घर इस संकट का सामना कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने पीने के पानी की उपलब्धता को नए भारत के लक्ष्य का अहम हिस्सा बताते हुए साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये के जल जीवन मिशन का एलान किया। इस मिशन में सरकार के साथ ही जनता की भागीदारी की आवश्यकता रेखांकित की गई है।

भारतीयों की आकांक्षाएं बढ़ती जा रही हैं

प्रधानमंत्री का यह कहना उचित ही है कि भारतीयों की आकांक्षाएं बढ़ती जा रही हैं। एक विकासशील देश में लोगों की आकांक्षाओं से ही संभावनाओं के द्वार खुलते हैं। इसके लिए बुनियादी ढांचे का विकास पहली आवश्यकता है। सरकार ने बुनियादी ढांचे पर सौ लाख करोड़ रुपये के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है। यह प्रतिबद्धता प्राथमिकता के आधार पर पूरी होनी चाहिए, क्योंकि यह देश की प्रगति के साथ ही रोजगार सृजन के लिए भी आवश्यक है।

देश की बढ़ती आबादी पर पीएम मोदी ने चिंता जताई

यह भी उल्लेखनीय है कि एक लंबे अरसे के बाद किसी प्रधानमंत्री ने देश की बढ़ती आबादी पर चिंता जताई है। इसमें संदेह नहीं कि युवाशक्ति हमारे लिए एक वरदान है, लेकिन यह भी सच है कि बढ़ती आबादी संसाधनों के लिए गंभीर चुनौती पेश कर रही है। आर्थिक दृष्टि से भी इतनी बड़ी आबादी के लिए एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित करना किसी भी सरकार के लिए टेढ़ी खीर है। प्रधानमंत्री की इस अपील पर हर किसी को गौर करना चाहिए कि शिशु के जन्म से पहले यह सोचा जाना चाहिए कि उसकी अपेक्षाएं कैसे पूरी होंगी। यह अपने आप में प्रधानमंत्री की नई सोच है।

आर्थिक चुनौतियों का दौर

मौजूदा दौर आर्थिक चुनौतियों का है। इन चुनौतियों का सामना औद्योगिक माहौल को बेहतर बनाकर ही किया जा सकता है। समस्या यह है कि देश में राजनीति और नौकरशाही समेत कई वर्ग ऐसे हैं जो उद्यमियों और उद्योगपतियों के खिलाफ माहौल बनाने का कार्य करते हैं और अक्सर उनकी नकारात्मक छवि बनाने की कोशिश की जाती है। प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी उद्योग जगत का भरोसा बढ़ाने वाली है कि वेल्थ क्रिएटरों को संदेह की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। वे देश की सेवा करते हैं और इस लिहाज से सम्मान और प्रोत्साहन के हकदार हैं।

पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के संकल्प

बेहतर हो कि उद्योग जगत के प्रति नकारात्मकता फैलाने वाले लोग और समूह यह समझें कि अगर संपदा का निर्माण नहीं किया जाएगा तो उसे देश के गरीबों तक नहीं पहुंचाया जा सकेगा और रोजगार की संभावनाएं भी नहीं बन सकेंगी। संपदा का निर्माण अगर कानूनी तौर-तरीकों से किया जाता है तो इसमें अनुचित क्या है? प्रधानमंत्री ने देश को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के संकल्प को फिर से दोहराया। यह संकल्प तभी पूरा होगा जब भारत का उद्योग जगत भी इसमें पूरे उत्साह के साथ बढ़-चढ़कर भागीदारी करेगा। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए सरकार को देखना होगा कि निजी निवेश का दायरा कैसे बढ़े।

मोदी की दूरदर्शिता की दूसरी मिसाल नहीं

यह सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री कर्मठ हैं, लेकिन उनकी दूरदर्शिता ने राष्ट्र को दिशा दिखाने का जो काम किया है उसकी दूसरी मिसाल नहीं है। इसकी एक बानगी इससे भी मिलती है कि मोदी की आलोचना में अक्सर सबसे आगे रहने वाले कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने भी तीन विषयों-जनसंख्या नियंत्रण, प्लास्टिक पर अंकुश और अर्थव्यवस्था को गति देने वाले उद्यमियों को सम्मान देने के आह्वान पर मोदी का खुलकर समर्थन किया है। प्रधानमंत्री ने जिस तरह समाज में परिवर्तन लाने में सक्षम नेतृत्व की कसौटी भी पूरी की है उससे वह मौजूदा दौर में एक अलग ऊंचाई पर बैठे राजनेता के रूप में सामने आए हैं। फिलहाल इस मामले में उनकी बराबरी कर पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा।

मोदी ने जनता के सपनों को साझा किया

उनसे पहले शायद ही किसी प्रधानमंत्री ने इतनी स्पष्टता से जनता के साथ अपने सपनों को साझा किया होगा। हालांकि इन सपनों को पूरा करना आसान नहीं है, क्योंकि कई बाधाएं ऐसी हैं जो प्रगति की राह रोकती हैं। इनमें राज्य सरकारों और उनकी नौकरशाही का रवैया सबसे ऊपर है। नौकरशाही अभी भी भ्रष्टाचार में धंसी है और भ्रष्टाचार लोगों के जीवन को दीमक की तरह चाट रहा है। इस भ्रष्टाचार को प्रशासनिक सुधारों के जरिये ही नियंत्रण में लाया जा सकता है। ये सुधार तत्काल आरंभ किए जाने चाहिए, क्योंकि देश की भावी तस्वीर का जो सपना दिखाया जा रहा है उसे साकार करने के लिए भी नौकरशाही के ढांचे को दुरुस्त करना होगा।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]