[ अवधेश कुमार ]: राजधानी दिल्ली का शाहीन बाग इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है। वहां के घटनाक्रम को देख-सुनकर यह साफ हो जाएगा कि पूरा धरना ही झूठ, भ्रम, नासमझी, पाखंड, सांप्रदायिक सोच और भाजपा, संघ, नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह के प्रति एक बड़े वर्ग के अंदर व्याप्त नफरत की सम्मिलित परिणति है। वहां अधिकतर को पता ही नहीं कि नागरिकता संशोधन कानून, एनपीआर या एनआरसी है क्या? कई लोग कहते मिल जाएंगे कि मोदी और शाह मुसलमानों को बाहर निकालना चाहते हैैं या हमें कैद में रखना चाहते हैैं।

नागरिकता संशोधन कानून मुसलमानों के खिलाफ नहीं है, सिर्फ भ्रम है

कहा जा रहा है कि नागरिकता संशोधन कानून मुसलमानों के खिलाफ है। यह भ्रम है जिसे योजनापूर्वक फैलाया गया है। आप पूरी व्यवस्था देख लीजिए, इतना भारी संसाधन बिना पूर्व योजना के आ ही नहीं सकता। इसका वित्तपोषण भी एक रहस्य बना हुआ है कि आखिर कौन इतना खर्च कर रहा है?

ऐसा भय पैदा कर दिया गया कि मोदी सरकार मुस्लिम समुदाय के खिलाफ काम कर रही है

इस बहुप्रचारित धरने में कई तरह के लोगों की भूमिका है। पहली श्रेणी में ऐसे लोग हैं जिनके अंदर वाकई यह भय पैदा कर दिया गया है कि मोदी सरकार मुस्लिम समुदाय के खिलाफ काम कर रही है इसलिए हमें अपनी रक्षा के लिए वहां जाना चाहिए। दूसरी श्रेणी में वे लोग हैं जिनको सच मालूम है, लेकिन मोदी और भाजपा से नफरत में उन्होंने यह आग लगाई है और वे वहां डटे हुए हैं ताकि आग बुझे नहीं। तीसरी श्रेणी में वे हैं जिनका आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं। वे या तो अपने नेता, मालिक या अन्य के कहने या फिर पैसे एवं अन्य लालच में आते हैं। चौथी श्रेणी नेताओं की है जो वहां इसलिए जा रहे हैं ताकि वे मुसलमानों के हमदर्द बनकर उनका वोट पा सकें।

झूठ और फरेब पर आधारित प्रदर्शन से मोदी सरकार का समर्थन ही बढ़ेगा

पांचवीं श्रेणी उनकी है जो जेएनयू से लेकर जामा मस्जिद एवं अन्य कई जगहों पर देश विरोधी नारों से लेकर उत्पात की वजह बने हैं। उन्हें लगता है कि इसके साथ जुड़कर वे अधिक ताकतवर होंगे एवं मोदी सरकार पर दबाव बढ़ेगा। छठी श्रेणी मजहबी कट्टरपंथियों की है जो देश में जिहादी माहौल पैदा करने लिए सक्रिय हैं। अगर इन सबको साथ मिला दें तो निष्कर्ष यह है कि हर हाल में मोदी सरकार को मुसलमान विरोधी, सांप्रदायिक, लोकतंत्र का हनन करने वाला करार देकर देश एवं दुनिया में बदनाम करना है। हालांकि उन्हें इसमें सफलता मिलने की संभावना इसलिए नहीं है कि ऐसे झूठ और फरेब पर आधारित प्रदर्शन से मोदी सरकार का समर्थन ही बढ़ेगा।

मोदी विरोधी मुसलमानों को दिखा रहे हैं एनपीआर एवं एनआरसी का भय

दिल्ली-एनसीआर का एक बड़ा वर्ग इस धरने के कारण लगने वाले जाम से परेशान होकर इसके खिलाफ है। लोग विरोध में प्रदर्शन भी करने लगे हैं। हालांकि मीडिया के बड़े समूह द्वारा तथ्य सामने रखने तथा अलग-अलग संगठनों द्वारा मोहल्ला सभाओं में नागरिकता कानून का सच बताने से मुस्लिम समुदाय के अंदर भी यह भाव पैदा हो रहा है कि इस कानून से उनका तो कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन उनमें यह भाव जैसे-जैसे बढ़ रहा है, मोदी विरोधी उन्हें एनपीआर एवं एनआरसी का भय दिखाकर कह रहे हैं कि एनपीआर में तुमसे पहचान मांगी जाएगी, तुम्हारे खानदान का विवरण मांगा जाएगा और नहीं देने पर तुम भारत के नागरिक नहीं रहोगे।

बच्चों को मोदी विरोधी नारे रटवाकर उनसे नारे लगवाए जा रहे हैं

वे यहां तक दुष्प्रचार कर रहे हैं कि उसके बाद तुम्हें जिस सेंटर में रखा जाएगा वहां मोदी और शाह केवल एक समय भोजन देंगे। सबसे भयावह स्थिति इस तथाकथित आंदोलन में छोटे-छोटे बच्चों का दुरुपयोग है। उनके अंदर किस तरह का जहर भरा जा रहा है, यह उनके बयानों एवं नारों से मिल जाएगा। एक बच्चा-बच्ची जिसे आजादी का अर्थ नहीं मालूम उसे रटवाकर नारा लगवाया जा रहा है। एक बच्ची कह रही है कि मोदी और शाह हमें मारने वाले हैैं, लेकिन हम उन्हें मार डालेंगे। एक बच्चा नारा लगा रहा है कि जो हिटलर की चाल चलेगा और उसके साथ सब बोल रहे हैं कि वह हिटलर की मौत करेगा। कोई बच्चा बिना सिखाए यह नारा बोल सकता है क्या?

बच्चों के अंदर सांप्रदायिकता और हिंसा का बीज बोया जा रहा है

इस तरह बच्चों के अंदर सांप्रदायिकता और हिंसा का बीज बोने वाले आखिर देश को कहां ले जाना चाहते हैं? इन बच्चों का क्या दोष है? लेकिन यह भी रणनीति है। बच्चों और महिलाओं को आगे रखो ताकि दुनिया का मीडिया यह सुने और इन पर कोई कार्रवाई हो तो फिर हमें छाती पीटने का मौका मिल जाए कि महिलाओं और बच्चों के साथ बर्बरता की गई। इनके नेताओं के मुंह से बार-बार यही निकलता है कि महिलाएं यहां अपने अधिकारों और संविधान की रक्षा के लिए लड़ रही हैैं तो उनके बच्चे कहां जाएंगे?

एनपीआर 2010 में लागू हुआ, तब कोई समस्या नहीं आई, एनआरसी अभी आया नहीं

प्रश्न है कि यह ऐसे ही चलेगा या इस पर पूर्ण विराम लगाया जाएगा? यह कहना कि विरोध-प्रदर्शन हमारा संवैधानिक अधिकार है, इस खतरनाक अभियान का सरलीकरण करना है। सबसे पहले तो किसी विरोध या आंदोलन का तार्किक आधार होना चाहिए। नागरिकता कानून मुसलमानों के खिलाफ है नहीं। एनपीआर 2010 में लागू हुआ, 2015 में उसको अद्यतन किया गया। तब कोई समस्या नहीं आई। वह जनगणना का भाग है और सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए आवश्यक है। एनआरसी अभी आया नहीं है। जब आएगा और उसमें कुछ आपत्तिजनक बातें होंगी तो उसका विरोध किया जाना चाहिए। इस समय ऐसा कुछ है नहीं।

सुनियोजित राजनीतिक साजिश के तहत एक समुदाय को भड़काया जा रहा है

तो जिस विरोध का कोई तार्किक आधार नहीं है, जिसमें एक समुदाय को भड़काने जैसे सांप्रदायिकता के तत्व साफ दिख रहे हैं, जिसका पूरा उद्देश्य ही कुत्सित राजनीति है वह संवैधानिक अधिकार के तहत नहीं आ सकता। संविधान में मौलिक अधिकार के साथ मौलिक कर्तव्य भी हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि अधिकारों के नाम पर ऐसी स्थिति पैदा कर दें जिनसे दूसरे के लिए कर्तव्य पालन कठिन हो जाए और वह भी सुनियोजित राजनीतिक साजिश के तहत।

देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी शाहीन बाग जैसे धरने जारी हैैं

देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी शाहीन बाग जैसे धरने जारी हैैं। ऐसे धरनों के कारण देश के बड़े वर्ग में गुस्सा पैदा हो रहा है। खतरा यह है कि कहीं प्रतिक्रिया में वह इन्हें चुनौती देने लगा तो फिर स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि इसका कानूनी तरीके से अभी अंत किया जाए।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैैं )