[ विकास सारस्वत ]: प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की ओर से दी गई यह जानकारी जितनी सनसनीखेज है उतनी ही चिंतित करने वाली भी कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया अर्थात पीएफआइ ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तमाम बैंक खातों के जरिये करीब 120 करोड़ रुपये स्थानांतरित किए, ताकि नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के खिलाफ धरना-प्रदर्शनों को हवा दी जा सके। ईडी के अनुसार उक्त रकम का एक बड़ा हिस्सा देश के कुछ नामी वकीलों के पास गया। ये वही वकील हैैं जो इस कानून के खिलाफ सक्रिय हैैं। ध्यान रहे सीएए के विरोध में उत्तर प्रदेश में भड़की हिंसा के बाद ही प्रदेश सरकार ने चरमपंथी संगठन पीएफआइ पर प्रतिबंध लगाने की संस्तुति की थी।

सीएए पर भड़काऊ प्रचार और हिंसा भड़काने में पीएफआइ की कई राज्यों में भूमिका

यूपी पुलिस पीएफआइ के प्रदेश अध्यक्ष वसीम अहमद, कोषाध्यक्ष नदीम और मंडल अध्यक्ष अशफाक समेत अन्य को हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर चुकी है। अहमद ने शुरुआत में अपनी पहचान छिपाने का प्रयास किया, लेकिन कॉल डिटेल्स की छानबीन के बाद उसकी असलियत सामने आ गई। इस संगठन के विभिन्न दफ्तरों से तमाम भड़काऊ सामग्री भी बरामद की गई थी। सीएए पर भड़काऊ प्रचार और हिंसा भड़काने में पीएफआइ की भूमिका असम में भी सामने आई है। इसके अलावा दिल्ली और कर्नाटक के मंगलुरु में हुई हिंसा में भी उसका हाथ नजर आया।

पीएफआइ का उग्रवाद-अतिवाद से पुराना नाता

पीएफआइ का उग्रवाद-अतिवाद से पुराना नाता है। इस संगठन का उदय 2006 में केरल में हुआ था। पहली बार यह संगठन राष्ट्रीय सुर्खियों में तब आया था जब उसके कार्यकर्ताओं ने जुलाई 2010 में ईशनिंदा का आरोप लगाकर केरल के न्यूमैन कॉलेज के प्रो. डीजे जोसेफ की हथेली को काट दिया था। इसकी जांच में केरल पुलिस ने सात शहरों में छापेमारी कर पीएफआइ कैडर के घरों से बड़ी मात्रा में हथियार और आपत्तिजनक सामग्री बरामद की थी। इनमें तालिबान और अल कायदा का गुणगान करने वाली सामग्री भी थी।

2013 में कन्नूर में पुलिस ने पीएफआइ के ट्रेनिंग सेंटर पर छापा मारकर हथियार बरामद किए थे

2011 में मैसूर के एक कॉलेज से सुधींद्र और विग्नेश नामक दो युवकों के अपहरण और हत्या के मामले में भी पीएफआइ से संबद्ध संगठन कर्नाटक फोरम ऑफ डिग्निटी के छह सदस्य गिरफ्तार किए गए थे। उनका अपहरण संगठन के लिए धन उगाही के लिए किया गया था। इसके बाद 2013 में कन्नूर के नरथ इलाके में पुलिस ने पीएफआइ के ट्रेनिंग सेंटर पर छापा मारकर हथियारों सहित 21 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं में डर बैठाने के लिए फ्रंट पर उसके कई सदस्यों की हत्या का आरोप है। कन्नूर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सचिन गोपाल और विशाल की हत्या, बेंगलुरु में रुद्रेश और मूदबिदरी में प्रशांत पुजारी की जघन्य हत्या के अलावा कई अन्य हत्याओं में पीएफआइ के सदस्यों की गिरफ्तारी हो चुकी है।

केरल सरकार के हलफनामे में पीएफआइ को 27 हत्याओं का दोषी माना गया था

केरल सरकार द्वारा दिए गए एक हलफनामे में पीएफआइ को अकेले केरल में 27 हत्याओं, 86 हत्या के प्रयास और 106 सांप्रदायिक घटनाओं का दोषी माना गया था। इसमें ज्यादातर पीड़ित संघ कार्यकर्ता ही थे। फरवरी 2015 में शिमोगा में पीएफआइ की रैली के दौरान हिंसा में दो लोगों की जान चली गई थी। केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन फ्रंट पर मतांतरण द्वारा राज्य के इस्लामीकरण का आरोप लगा चुके हैं इस संगठन पर लव जिहाद को बढ़ावा देने के भी आरोप लगते रहे हैं। ईडी ने जिन वकीलों पर पीएफआइ से पैसे लेने की बात कही है उन्होंने यह माना है कि यह पैसा लव जिहाद के हादिया केस की पैरवी के लिए लिया था।

लव जिहाद के जरिये धर्मांतरण को प्रेरित करने के लिए पीएफआइ का नाम आ चुका

शहंशाह और सिराजुद्दीन बनाम स्टेट ऑफ केरल केस में केरल हाईकोर्ट के जस्टिस केटी शंकरण ने डीजीपी को लव जिहाद की विवेचना के आदेश दिए थे। 2018 की एक मीडिया रिपोर्ट में एनआइए के हवाले से लव जिहाद के जरिये धर्मांतरण को प्रेरित करने के लिए पीएफआइ के एक सेंटर का नाम आ चुका है।

पीएफआइ का संबंध आतंकी संगठनों से होने का संदेह

सबसे ज्यादा चिंताजनक यह है कि पीएफआइ का संबंध आतंकी संगठनों से होने का संदेह है। पूर्व में प्रतिबंधित सिमी के ही सदस्यों द्वारा शुरू हुए पीएफआइ के इस्लामिक स्टेट से संबंध प्रकाश में आते रहे हैं। कन्नूर के वल्लपत्तनम से फ्रंट के करीब 40-50 लोग आइएस में शामिल भी हो चुके हैं। श्रीलंका में हुए धमाकों के मास्टरमाइंड को कट्टरवादी बनाने में भी फ्रंट का नाम सामने आया था। रक्षा विशेषज्ञ, लेफ्टिनेंट जनरल पीसी कटोच पीएफआइ के आइएसआइ से साठगांठ का संदेह जता चुके हैं। कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने फ्रंट की गतिविधियों पर चिंता जताई है। मलयालम लेखक मोहिउद्दीन कच्चेरी चेताते हैं कि ऐसे संगठन मुस्लिम युवकों को अल मौदूदी की कट्टरपंथी राह पर ले जाकर केरल के तालिबानीकरण में जुटे हैं।

नौ संगठनों के विलय के बाद पीएफआइ राष्ट्रीय चुनौती बन गया

करीब नौ संगठनों के विलय के बाद पीएफआइ राष्ट्रीय चुनौती बन गया है। इसका जाल मणिपुर तक पहुंच चुका है। दिल्ली के शाहीन बाग में जहां पिछले पांच-छह सप्ताह से सीएए के विरोध में धरना जारी है वहां फ्रंट का मुख्यालय है। संभव है कि यह शक्ति प्रदर्शन पीएफआइ पर प्रतिबंध की स्थिति में मुख्यालय को घेरे रखने और विरोध को उग्र बनाने के तहत हो। कहने को यह संगठन मुस्लिम हितों और मानवीय अधिकारों की रक्षा का दम भरता है, परंतु इसका सांप्रदायिक और उग्रवादी चरित्र किसी से छिपा नहीं है।

हाथ में तिरंगा लेकर उपद्रव करना इसकी शैली है

फ्रंट प्रजातंत्र द्वारा प्रदत्त अधिकारों का बड़ी चतुराई से उपयोग कर अपने सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाता है। एकता मार्च और फ्रीडम मार्च जैसे शब्दों से अलगाववाद और इस्लामीकरण की वकालत होती है। हाथ में तिरंगा लेकर उपद्रव करना और आजादी जैसे नारों का अलगाववाद के लिए इस्तेमाल करना इसकी शैली है। इसका अपना एक दैनिक अखबार भी है।

झारखंड सरकार पीएफआइ पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुकी है

झारखंड सरकार पीएफआइ पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुकी है। दो साल पहले पुलिस महानिदेशकों की बैठक में भी फ्रंट पर प्रतिबंध लगाने को लेकर चर्चा हुई थी। सीएए के विरोध में हुई हिंसा में पीएफआइ की भूमिका के मद्देनजर देखना होगा कि केंद्र सरकार कितनी जल्दी उस पर कार्रवाई करती है और उसके हितैषियों को बेनकाब करती है?

( लेखक इंडिक अकादमी से संबद्ध हैं )