[ संजय गुप्त ]: अमेरिका से शुरू हुए मी टू यानी यौन उत्पीड़न की घटनाओं को उजागर करने के अभियान ने धीरे-धीरे एक विश्वव्यापी रूप ले लिया है। इस अभियान के चलते दुनिया के अनेक देशों में ऊंचे पदों पर बैठे लोग बेनकाब हो रहे हैैं और उनकी प्रतिष्ठा पर बन आई है। कुछ तो बेनकाब होने के साथ ही शर्मसार हो रहे हैैं। ये वे लोग हैैं जो महिलाओं के ऐसे आरोपों का सामना कर रहे हैं कि अतीत में उन्होंने उनका यौन उत्पीड़न किया था। अभी हाल में ऐसे ही आरोपों से अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में नामित किए गए जज ब्रेट कैवनॉघ को भी दो-चार होना पड़ा। उन पर प्रोफेसर क्रिस्टीन ब्लेसीफोर्ड ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। इससे अमेरिका में अच्छा-खासा हंगामा खड़ा हो गया।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपने ही नामित जज के खिलाफ जांच की अनुमति देनी पड़ी। जांच में कैवनॉघ पर लगे आरोप सही साबित नहीं हो सके। इसके बाद सीनेट ने उनके नाम को मंजूरी दे दी और वह सुप्रीम कोर्ट के जज की शपथ लेने में कामयाब रहे। अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप समेत कई लोगों ने मी टू अभियान पर सवाल खड़े करते हुए उसका मजाक उड़ाया। इस अभियान पर दुनिया के अन्य देशों में भी सवाल खड़े किए जा रहे हैैं। सवाल खड़े करने वालों को लगता है कि इस बहाने मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के साथ ही तथ्यहीन आरोप भी लगाए जा रहे हैैं। इस सबके बीच भारत में भी कुछ महिलाएं मुखर होकर अपने साथ घटीं यौन उत्पीड़न की घटनाओं का विवरण सार्वजनिक कर रही हैैं। यह सर्वथा उचित है कि सरकार ने ऐसे मामले सामने आते देखकर चार सेवानिवृत जजों की एक समिति बनाने का फैसला किया है।

अपने देश में सबसे पहले फिल्म अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर के खिलाफ करीब दस साल पहले एक गाने की शूटिंग के दौरान यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाया। इसके बाद एक पिटारा सा खुल गया और फिल्म जगत के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों के कई जाने-माने लोग कठघरे में खड़े किए जाने लगे। इनमें प्रमुख हैैं विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर। उन पर आरोप है कि जब वह संपादक के तौर पर सक्रिय थे तो उन्होंने कई महिला पत्रकारों का यौन उत्पीड़न किया या फिर करने की चेष्टा की। इन आरोपों के बाद सभी की निगाहें इस पर लगी हुई हैं कि अकबर इस्तीफा देते हैं या नहीं? उनका भविष्य कुछ भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती किकुछ लोग उनके मामले को राजनीतिक तौर पर भुनाने की कोशिश भी कर रहे हैैं।

महिलाओं का यौन उत्पीड़न कोई नई बात नहीं है। पुरुष प्रधान समाज में यौन उत्पीड़न का सिलसिला पुरातन काल से ही कायम है। अधिकांश महिलाएं बगैर मुंह खोले यौन उत्पीड़न सहती रहती हैैं, क्योंकि एक तो उन्हें अपनी ही बदनामी का भय होता है और दूसरे यह भरोसा नहीं होता कि दोषी को दंडित किया जा सकेगा। मी टू अभियान ने यौन उत्पीड़न का सामना करने वाली महिलाओं को इसके लिए बल प्रदान किया है कि वे आगे आकर अपनी आपबीती बयान करें। यह कहना कठिन है कि अभी तक सामने आईं यौन उत्पीड़न की घटनाओं में कितनी सत्यता है, क्योंकि इस तरह की घटनाओं को अदालत के समक्ष साबित करना मुश्किल है। इसके बावजूद यह एक तथ्य है कि पुरुषों में मी टू अभियान को लेकर एक डर बैठता रहा है। वे पुरुष खास तौर से डरे-सहमे हैं जिनकी फितरत ही महिलाओं का उत्पीड़न करना है।

भारतीय समाज में एक बड़ी हद तक अभी भी महिलाओं के लिए यही कल्पना की जाती है कि वे घर का काम करें और पुरुषों के हिसाब से चलें। इसके चलते औसत भारतीय महिलाएं पुरुषों पर आश्रित बनी रहती हैैं। इस कारण उनमें आत्मबल का अभाव दिखता है। भारत में दुष्कर्म की बढ़ती घटनाएं महिलाओं के प्रति पुरुषों की इस संकीर्ण सोच को ही जाहिर करती हैैं कि वे उन्हें अपनी जागीर की तरह समझते हैैं। दुष्कर्म के बढ़ते मामलों में यह भी एक सच्चाई है कि तमाम मामले पुलिस तक नहीं पहुंचते। यह स्थिति सही नहीं। ऐसे माहौल में समाज का स्वस्थ विकास नहीं हो सकता। आखिर वह समाज सही तरह कैसे विकसित और आगे बढ़ सकता है जहां महिलाएं पुरुषों की यौन प्रताड़ना का शिकार होती रहें? कोई भी समाज और देश तभी आगे बढ़ेगा जब पुरुष और महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर काम करें और यह तब संभव होगा जब महिलाओं को सम्मान की नजर से देखा जाएगा।

मी टू अभियान आज एक तूफान की तरह दिख रहा है। एक के बाद एक महिलाएं सोशल मीडिया के जरिये अपनी आपबीती बयान कर रही हैैं, लेकिन यह कहना कठिन है कि इस अभियान के तहत जो लोग कठघरे में खड़े किए जा रहे और लांछित किए जा रहे हैैं उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई भी हो सकेगी? चूंकि कार्रवाई के लिए सुबूत चाहिए होंगे और इतने वर्षों बाद उनकी तलाश करना एक कठिन काम होगा इसलिए जल्द ही यह अभियान थम भी सकता है। यदि महिलाएं चाहती हैैं कि यौन उत्पीड़न करने वाले भय खाएं और उन्हें उनके किए की सजा मिले तो उन्हें प्रतिकूल हालात से दो-चार होने के मौके पर ही आवाज उठानी होगी। ऐसे में सुबूत और गवाह जुटाना आसान होगा।

आज तो तमाम ऐसे कानून भी हैैं जो महिलाओं को यह अधिकार प्रदान करते हैैं कि वे उत्पीड़न करने वालों के खिलाफ संबंधित संस्थान, विभिन्न समितियों, महिला आयोग, पुलिस, अदालत आदि के पास जाकर न्याय के लिए पहल कर सकें। यदि ऐसा होने लगे तो अन्य महिलाओं को भी आगे आकर यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने का साहस मिलेगा। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अभी कुछ खास महिलाएं ही अपनी आपबीती बयान कर पा रही हैैं। उनके मामले इसलिए चर्चा में आ रहे हैैं, क्योंकि वे किसी जाने-माने शख्स की पोल खोल रही हैैं। स्पष्ट है कि एक ऐसा माहौल बनाने की आवश्यकता है जिसमें आम महिलाएं भी अपने खिलाफ होने वाले यौन दुर्व्यवहार को बयान कर सकें। वे ऐसा तभी कर सकेंगी जब उन्हें यह भरोसा होगा कि उनकी आवाज सुनी जाएगी और उन्हें न्याय भी मिलेगा।

ध्यान रहे कि मी टू अभियान के तहत कई मामले ऐसे आए हैैं जिनमें पीड़ित महिलाओं ने शिकायत दर्ज कराने की पहल नहीं की है। अच्छा होगा कि शासन-प्रशासन के साथ समाज एक ऐसे माहौल का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़े जिससे यौन उत्पीड़न करने वाले अपनी हरकतों के अंजाम से डरें। नि:संदेह इस मामले में पुरुषों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे वैसे लोगों को आगाह करें, उनकी पोल खोलें और उनके खिलाफ यथासंभव अपने स्तर पर आवश्यक कदम उठाएं जो महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने की ताक में रहते हैैं या फिर इसके लिए बदनाम हैैं। ऐसा होने पर ही महिलाओं को सम्मान के साथ जीने का अवसर मिलेगा और महिलाओं का शोषण करने वाले हतोत्साहित होंगे।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]