डॉ. निधि सिंह। प्रधानमंत्री से संवाद पर आधारित ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम पहली बार डिजिटल माध्यम से आयोजित हुआ। यह दिखाता है कि प्रधानमंत्री को छात्रों की कितनी फिक्र है और उन्हें डिजिटल क्रांति पर कितना भरोसा है। कोरोना महामारी ने भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में स्वास्थ्य के साथ-साथ शिक्षा को भी झकझोर कर रख दिया। विकसित देशों में जहां डिजिटल माध्यम का पहले से ही काफी हद तक विस्तार हो चुका था, भारत में इस तरह की शिक्षा शुरुआती दौर से ही गुजर रही थी।

हालांकि ‘समग्र शिक्षा’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे सरकारी पहलों ने डिजिटल माध्यम से शिक्षा को आगे बढ़ने की बात जरूर कही थी, परंतु जमीनी तौर पर और व्यापक रूप में इसका विकास नहीं हो पाया था। शिक्षा मंत्रलय (तब का मानव संसाधन विकास मंत्रलय), भारत सरकार द्वारा चलाए जाने वाले ‘स्वयं’ (स्कूली और उच्च शिक्षा के लिए ऑनलाइन कोर्सेज का प्लेटफॉर्म) और ‘स्वयं प्रभा’ (डीटीएच टीवी चैनलों का नेटवर्क) जिनकी शुरुआत 2017 और 2016 में हुई थी, ने डिजिटल माध्यम की शिक्षा प्रणाली को आगे तो बढ़ाया था, किंतु इनका प्रचार-प्रसार और विकास भी सिलसिलेवार ढंग से नहीं हो पाया था। नतीजा यह हुआ कि 2020 में कोरोना महामारी के दौरान स्कूल-कॉलेजों के अचानक बंद होने पर शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी खाई महसूस की जाने लगी। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत पीएम ई-विद्या ‘वन क्लास वन चैनल’ की शुरुआत मई, 2020 में की।

पीएम ई-विद्या, भारत सरकार द्वारा एक ऐसी पहल है जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में टीवी, रेडियो और इंटरनेट पर आधारित माध्यमों का एक अनूठा सामंजस्य देखा जा सकता है। इस पहल में एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम पर आधारित कक्षा एक से 12वीं तक के लिए वीडियो और ऑडियो कार्यक्रम विकसित किए जा रहे हैं। जहां वीडियो कार्यक्रम टीवी के माध्यम से प्रसारित हो रहे हैं, वहीं ऑडियो कार्यक्रम रेडियो के माध्यम से। साथ ही, ये सारे वीडियो और ऑडियो कार्यक्रम इंटरनेट पर आधारित दीक्षा प्लेटफार्म पर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं ताकि शिक्षार्थी कहीं भी कभी भी इन ई-कंटेंट का लाभ अपने पठन-पाठन के लिए उठा सकें।

शिक्षार्थियों को यह जानकर अच्छा लगेगा कि पीएम ई-विद्या के तहत हर कक्षा के लिए एक अलग यानी कक्षा एक से 12वीं तक के लिए 12 टीवी चैनल हैं। इन चैनलों पर हर कक्षा के पाठ्यक्रम पर आधारित वीडियो कार्यक्रम के साथ-साथ कला, कहानी, योग और सामान्य जागरूकता पर आधारित कार्यक्रम भी दिखाए जाते हैं। इनका उद्देश्य शिक्षाíथयों की रुचि बनाए रखने के साथ-साथ उनका सर्वागीण विकास भी है। इन चैनलों को डीटीएच टीवी, डीडी फ्री डिश के साथ-साथ एकाध अन्य टीवी एप पर भी देख सकते हैं। एक दिलचस्प बात जानने वाली ये है कि पाठ्यक्रम-आधारित इन सारे वीडियो कार्यक्रमों में क्यूआर कोड लगे हैं जिन्हें दीक्षा एप से स्कैन करने पर अपनी सुविधा के हिसाब से दीक्षा वेबपोर्टल पर भी देख सकते हैं।

जिस प्रकार कोरोना महामारी ने दुनिया के सभी देशों को मानवता की सुरक्षा के लिए एकजुट होकर लड़ने की क्षमता प्रदान की उसी तरह स्कूली शिक्षा के लिए एनसीईआरटी, एनआइओएस, सीबीएसई, केंद्रीय विद्यालय संगठन और नवोदय विद्यालय समिति जैसे संस्थानों ने विभिन्न प्रकार से क्षमता निर्माण में योगदान दिया है। कोरोना महामारी की विषम परिस्थितियों में भी पीएम ई-विद्या के तहत बनने वाले कार्यक्रमों का प्रोडक्शन भी कुछ रोचक तरीके से हुआ। एनसीईआरटी में दिन-रात काम चलता रहा और करीब 1,500 कार्यक्रम (वीडियो-ऑडियो) अकादमिक और टेक्निकल लोगों के योगदान से बनना संभव हुआ। स्कूली शिक्षा में शिक्षाíथयों को डिजिटल माध्यम से शिक्षा प्रदान करने में इस तरह का यह एक अनुकरण योग्य प्रयास है। इन कोशिशों के लिए शिक्षा जगत से जुड़े सभी लोग बधाई के पात्र हैं जिन्होंने निरंतर शिक्षा को हर जनसाधारण तक पहुंचाने का सपना देखा है।

स्कूल-कॉलेजों के इतने लंबे समय तक बंद रहने और डिजिटल माध्यम से पठन-पाठन ने कुछ महत्वपूर्ण सवालों को हमारे सामने लाकर खड़ा कर दिया है। पहला सवाल है कि क्या हम ‘वर्क फ्रॉम होम’ की ही तरह होम स्कूलिंग जैसी शिक्षा की ओर अग्रसर हो रहे हैं? यहां याद करने वाली बात यह है कि पुराने जमाने में कई जगहों पर, खासकर महिलाओं के लिए घर में ही शिक्षा प्राप्त करने की बातों का उल्लेख मिलता है। जैसे-जैसे फॉर्मल स्कूलिंग का विस्तार हुआ, वैसे-वैसे घर में शिक्षा प्राप्त करने की पद्धति खत्म होती गई। कोरोना महामारी के समय में घर बैठे डिजिटल माध्यम से पढ़ाई के तरीकों ने फिर से इस तरह की पद्धति के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया है।

दूसरा महत्वपूर्ण सवाल जो पिछले साल से काफी चर्चा में रहा है वह है, डिजिटल शिक्षा का फेस-टू-फेस शिक्षा के विकल्प के रूप में उभरना। हालांकि शिक्षा का डिजिटल माध्यम से प्रसार फेस-टू-फेस शिक्षा के प्रसार का विकल्प साधारण समय में कदापि नहीं हो सकता। परंतु कोरोना महामारी जैसी भविष्य में आने वाली ऐसी कई विषम परिस्थितियों से लड़ने में जरूर सहायक साबित होगा।

भारत के जिन इलाकों में इंटरनेट से नहीं पहुंचा जा सकता है, वहां टीवी और रेडियो के माध्यम से जरूर पहुंचा जा सकता है। इसी उद्देश्य से ई-विद्या नामक शिक्षा मंत्रलय द्वारा शुरू की गई इस पहल का प्रचार करने की और उसे और मजबूत बनाने की जरूरत है। नगरीय इलाकों के साथ-साथ सुदूर और पिछड़े इलाकों से आइवीआरएस नंबर पर बच्चों और उनके संबंधियों के फोन कॉल्स और ईमेल के माध्यम से आए फीडबैक ये बताते हैं कि वे इन कार्यक्रमों से लाभान्वित हो रहे हैं। बस जरूरत है इनके और प्रचार-प्रसार की।

[अकादमिक कंसलटेंट, सीआइईटी, एनसीईआरटी, नई दिल्ली]