हर्ष वी पंत।
हर साल की तरह पाकिस्तान ने इस बार भी संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत को घेरने की भरसक कोशिश की। कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकन अब्बासी ने संयुक्त राष्ट्र से कश्मीर के लिए एक विशेष प्रतिनिधि नियुक्त करने की गुहार लगाई। कश्मीर में कथित अत्याचार की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच करने की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में एक जांच आयोग का भेजना जरूरी हो गया है ताकि वहां ‘मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार लोगों’ को सजा सुनिश्चित की जा सके। भारत ने उनके इस बयान पर त्वरित और कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उसने इस बात को रेखांकित किया कि पाकिस्तान अब ‘टेररिस्तान’ हो गया है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में जवाब देने के अपने अधिकार का उपयोग करते हुए भारत ने कहा कि सच तो यह है कि पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद का न सिर्फ प्रायोजक बना हुआ है, बल्कि उसका अपने नीतिगत हथियार के रूप में इस्तेमाल भी करता आ रहा है। इन सब बातों के अलावा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दोनों देशों में उस बुनियादी अंतर का जिक्र किया जिसके चलते विश्व भारत और पाकिस्तान को अलग-अलग नजर से देखता है। उन्होंने कहा, ‘जहां हमने आइआइटी और आइआइएम बनाए वहीं पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मदको खड़ा किया। जहां हमने डॉक्टर और वैज्ञानिक बनाए वहीं पाकिस्तान ने आतंकी और जिहादी पैदा किए।’ सुषमा स्वराज की बातों का जवाब देने के लिए पाकिस्तान ने फरेब का सहारा लिया, लेकिन वह अपने ही बिछाए जाल में फंस गया और दुनिया में हंसी का पात्र बन गया। उसने भारत को नीचा दिखाने के लिए जिस लड़की की तस्वीर दिखाई और उसके कश्मीर का होने का दावा किया वह गाजा की निकली। अब विश्व ने कश्मीर पर पाकिस्तान के राग को सुनना ही छोड़ दिया है, लेकिन इस्लामाबाद के पास ग्लोबल फोरम पर इसके अलावा बात करने के लिए अन्य कोई विषय ही नहीं रह गया है। इस पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने बिल्कुल सही कहा कि इस्लामाबाद का रवैया ‘मियां की दौड़ मस्जिद’ तक कहावत को चरितार्थ कर रहा है।

दरअसल पाकिस्तान के लिए बहुत मुश्किल घड़ी आन पड़ी है। उसके लिए लगातार बदलती क्षेत्रीय वास्तविकताओं का सामना करना कठिन होता जा रहा है। ट्रंप प्रशासन ने इस्लामाबाद के पेंच कसने शुरू कर दिए हैं। ट्रंप प्रशासन की नई अफगानिस्तान नीति एक तरह से पाकिस्तान केंद्रित ही है। अफगानिस्तान में हालात सुधरें, इसके लिए पाकिस्तान से यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि क्षेत्र में शांति स्थापित करने को लेकर वह अपनी प्रतिबद्धता पर खरा उतरे। जाहिर है कि वैश्विक आतंकवाद का केंद्र बने पाकिस्तान के लिए इन बातों का अर्थ समझने में मुश्किल नहीं हुई होगी। ट्रंप प्रशासन ने पहले ही पाकिस्तान की प्रमुख वित्तीय संस्था हबीब बैंक को अमेरिका में कामकाज करने से प्रतिबंधित कर दिया है। ट्रंप प्रशासन बार-बार उसे अपनी नीति को पारदर्शी बनाने की मांग कर रहा था, लेकिन उसने इस पर ध्यान नहीं दिया। मजबूरन अमेरिका ने उसे अपना कारोबार समेटने का आदेश सुना दिया। इसके अलावा पाकिस्तान से गैर नाटो सहयोगी का दर्जा वापस लेने, वित्तीय मदद में कटौती करने और यहां तक कि उसे आतंकी देश घोषित करने जैसे कदम उठाने की तैयारी हो रही है। आश्चर्य नहीं कि इस समय पाकिस्तान का सत्ता प्रतिष्ठान बौखलाया हुआ है। इसी वजह से अपनी खीझ उतारने के लिए वह अमेरिका के साथ अपने कूटनीतिक रिश्तों और आतंकवाद संबंधी मुद्दों पर परस्पर सहयोग में कटौती कर रहा है और अफगानिस्तान पर अमेरिका को सहयोग देने से इन्कार कर रहा है।

एक तरफ अमेरिका-पाकिस्तान संबंध अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ टंप की दक्षिण एशिया नीति में भारत एक महत्वपूर्ण देश के रूप में उभर रहा है। भारत-अमेरिका सामरिक साङोदारी की भावना पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत हुई है। अमेरिका चाहता है कि अफगानिस्तान के आर्थिक विकास में भारत ज्यादा से ज्यादा अपनी भूमिका निभाए। वाशिंगटन की इस इच्छा से उत्साहित होकर भारत ने अफगानिस्तान के 31 प्रांतों में 116 ‘उच्च प्रभावी सामुदायिक विकास परियोजनाएं’ शुरू करने का फैसला किया है। इसके अलावा भारत और अफगानिस्तान अपने सुरक्षा सहयोग को भी मजबूत करने पर सहमत हुए हैं। लगता है पाकिस्तान अभी अपनी ही दुनिया में खोया हुआ है, क्योंकि उसके प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि अफगानिस्तान में भारत की कोई भूमिका नहीं है। पाकिस्तान में आज अधिकांश लोग यह मानने लगे हैं कि उसने अपनी किस्मत को चीन के हाथों में गिरवी रख दिया है।

पाकिस्तान को ब्रिक्स के शियामेन घोषणापत्र को, जिसमें पाक स्थित आतंकी संगठनों का पहली बार नाम शामिल किया गया, एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए, क्योंकि यदि वह एक बार अलग-थलग पड़ गया तो फिर चीन के लिए भी उपयोगी नहीं रह जाएगा। आज के परिदृश्य में पाकिस्तान के लिए क्षेत्रीय परिस्थितियों से तालमेल बैठाना कठिन होता जा रहा है। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि पाकिस्तान के पास शेखी बघारने और भारत पर अनाप-शनाप आरोप लगाने का ही काम रह गया है।

(लेखक लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में इंटरनेशनल रिलेशन के प्रोफेसर हैं)