[अवधेश कुमार]। पूरे देश में इस समय दुख और आक्रोश का माहौल है। यह बिल्कुल स्वाभाविक है। जम्मू कश्मीर में पिछले तीन दशक में सुरक्षा बलों पर ऐसा आतंकवादी हमला कभी नहीं हुआ। इसमें दो राय नहीं कि हमला सुनियोजित था और साजिश रचने वालों को पता था कि हाईवे से सीआपीएफ का बड़ा काफिला गुजरने वाला है। देश की सामूहिक सोच बिल्कुल स्पष्ट है कि इस तरह अपने जवानों के बलिदान को हम चुपचाप सहन नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री ने देश को बता दिया है कि सेना को कार्रवाई की पूर्ण स्वतंत्रता दे दी गई है। वह कार्रवाई कब, कहां और कैसे करेंगे यह सेना तय करेगी। इसका मतलब बहुत गंभीर है।

सेना को कार्रवाई का आदेश राजनीतिक नेतृत्व से मिलता है। प्रधानमंत्री के वक्तव्य का मतलब है कि सेना को हरी झंडी दे दी गई है। उसे कार्रवाई के लिए राजनीतिक नेतृत्व से अलग से आदेश लेने की आवश्यकता नहीं है। जिस तरह सभी राजनीतिक दलों ने एकता दिखाई है वह निश्चय ही पूरे देश को आश्वस्त करता है कि ऐसी घड़ी में हमारे राजनीतिक दल जिम्मेदार भूमिका निभाएंगे। किसी कार्रवाई के लिए तैयारी करनी पड़ती है। कार्रवाई का पाकिस्तान किस तरह का जवाब दे सकता है इन सबका पूर्वानुमान लगाते हुए उसका सामना करने के लिए हर पहलू से तैयार रहने की जरूरत होती है। बिना पूर्ण तैयारी के कोई कार्रवाई अपेक्षित परिणाम नहीं दे सकता। भारत का पहला लक्ष्य तो यही है कि सीमा पार से आतंकवाद का प्रायोजन बंद हो।

भारत के साथ खड़ी दुनिया
भारत के साथ लगभग पूरी दुनिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति भवन की तरफ से पाकिस्तान को नाम लेकर चेतावनी दी गई है। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता सारा सैंडर्स ने कहा कि पाक तुरंत अपनी जमीन से चलने वाले आतंकी संगठनों को समर्थन देना बंद करे। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित किए जा चुके पाकिस्तान के जैश-ए-मोहम्मद ने इस जघन्य हमले को अंजाम दिया। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि इस हमले के जिम्मेदार लोगों को सजा मिलना बेहद जरूरी है। ये दो तो उदाहरण मात्र हैं। अनेक देशों ने भारत के साथ संवेदना व्यक्त की है। चीन ने भी निंदा की है। वैसे यह वही चीन है जो जैशए-मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने का तीन प्रयास विफल कर चुका है।

इसका उल्लेख यहां इसलिए जरूरी है, क्योंकि इस हमले की जिम्मेवारी जैश ने ही ली है। आत्मघाती हमलावर पुलवामा का काकापोरा निवासी आदिल अहमद उर्फ वकास था। आदिल 2018 में ही जैश-ए- मोहम्मद में शामिल हुआ था। इस हमले का मास्टरमाइंड जैश-ए-मोहम्मद का पाकिस्तान का आतंकवादी अब्दुल रशीद गाजी है। मसूद अजहर ने अपने भतीजे उस्मान और भांजे तल्हा रशीद की मौत का बदला लेने के लिए गाजी को चुना था। तल्हा को नवंबर 2017 में पुलवामा व उस्मान को अक्टूबर 2018 में त्राल में सुरक्षा बलों ने मार गिराया था। जब तक पाकिस्तान आतंकी निर्माण का कारखाना बना रहेगा तथा वहां की सेना उसकी संरक्षक बनी रहेगी, भारत में घुसपैठ कराने का हरसंभव प्रयास करेगी तब तक आतंकवादी हमले बंद नहीं हो सकते।

भारत की आपत्ति
शुरुआती कदम के तौर पर भारतीय विदेश सचिव विजय गोखले ने पाकिस्तान उच्चायुक्त सोहेल महमूद को बुलाकर एक कड़ा आपत्ति पत्र जारी किया है। गोखले ने बता दिया है कि पाकिस्तान को फौरन जैश-ए-मोहम्मद पर कार्रवाई करनी होगी। इसके अलावा उन संगठनों और व्यक्तिगत तौर पर उसकी मदद बंद करने होंगे जो उसकी धरती से आतंकवादी संगठन चला रहा हो। इसका पाकिस्तान पर कोई असर शायद ही होगा। पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस ले लिया गया है। आयातों पर सीमाशुल्क बढ़ा दिया गया है। हालांकि इससे पाक को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा।

कूटनीतिक स्तर पर लड़नी होगी लड़ाई
आतंकवादी हमलों के पीछे एक विचारधारा है। हाल में कई आतंकवादियों का सोशल मीडिया पर बयान आया है कि वो कश्मीर को इस्लामिक मुल्क बनाना चाहते हैं। पाकिस्तान की सेना और आइएसआइ इसका पोषण करती है। यह भारत केंद्रित आतंकवाद का मामला है। किंतु विश्व स्तर पर जो आतंकवाद है उसको खत्म किए बगैर अंतिम लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री ने अपने बयान में फिर एक बार विश्वशक्ति को साथ आने की अपील की है। यह अपील उन्होंने पिछले चार सालों में हर वैश्विक मंच पर किया है। यह ऐसा पहलू है जिसका ध्यान हमें हर कार्रवाई के संदर्भ में रखना होगा। देश आतंकवाद के विरुद्ध बोलते जरूर हैं, लेकिन कार्रवाई में एकजुटता नहीं होती।

चीन सरकार ने कहा है कि इस हमले से हमें गहरा धक्का लगा है। लेकिन जब चीन के प्रवक्ता गेंग शुआंग से मसूद अजहर पर पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उसे वैश्विक आतंकी घोषित करने के मामले को हम जिम्मेदार तरीके से देखेंगे। ऐसे में हम कूटनीतिक रूप से पाक को अलग-थलग करके आर्थिक क्षति पहुंचाकर, आर्थिक नाकेबंदी करवाकर घुटने टेकने को मजबूर कर सकते हैं। इसमें चीन और कई इस्लामी देश बाधा हैं, तो हमें अपने स्तर पर सब करना होगा।

काफिले की सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त!
इस हमले के कई पहलू और भी है। करीब 300 किलो विस्फोटक गाड़ी में लेकर आतंकी। वहां तक पहुंचता है तो जाहिर है उसे सहयोग करने वाले अन्य लोग भी होंगे। वह आतंकी इतने विस्फोटक के साथ वहां पहुंच घंटों प्रतीक्षा करता रहा और सुरक्षा बलों की नजरों से बचा रहा तो कैसे? आतंकी तक सीआरपीएफ जवानों के गुजरने की जानकारी कब और कैसे मिली? जिस जगह हमला हुआ वहीं कमांडो ट्रेनिंग सेंटर में 31 दिसंबर 2017 को जैश के आतंकियों ने ही हमला किया था जिसमें सीआरपीएफ के पांच जवान शहीद हुए थे। इसके पहले भी वहां बड़े हमले हो चुके हैं। वह स्थान संवेदनशील था। इस पर भी विचार करने की जरूरत है कि उन जगहों पर काफिले की सुरक्षा के लिए कोई विशेष प्रबंधन किया गया था या नहीं।
[वरिष्ठ पत्रकार]