[ राजीव सचान ]: मसूद अजहर के समर्थक-संरक्षक की छवि से लैस होने और दुनिया भर में अपनी फजीहत कराने के बाद चीन कुछ समय पहले जब इस आतंकी सरगना पर पाबंदी के पक्ष में खड़ा हुआ था तो ऐसा लगा था कि अब वह भारत के प्रति सकारात्मक रवैये का परिचय देगा, लेकिन जम्मू-कश्मीर पर उसके हालिया रुख ने यही साबित किया कि उसकी पाकिस्तानपरस्ती कायम रहने वाली है।

भारतीय हितों की अनदेखी

पाकिस्तान में निहित अपने हितों की रक्षा के लिए चीन किस तरह भारतीय हितों की अनदेखी करने को तैयार है, इसकी पुष्टि तब हुई जब बीते हफ्ते भारत से चीन गए पत्रकारों के एक समूह से चीनी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि हम अनुच्छेद 370 हटाने को इसलिए ठीक नहीं मानते, क्योंकि हम भारत को नैतिक स्तर पर ऊंचे धरातल पर देखते हैं और यह चाहते हैं कि भारतीय नेतृत्व दक्षिण एशिया में शांति-सद्भाव कायम करने में सहायक बने।

अनुच्छेद 370 हटाने से चीन चिंति‍त

उन्होंने पंचशील सिद्धांत याद करते हुए यह शिकायत की कि भारत को एकतरफा फैसला नहीं लेना चाहिए था। उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि चीन ने गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की ओर से किए गए बदलाव का कोई संज्ञान क्यों नहीं लिया? वह यह भी स्पष्ट नहीं कर सके कि अनुच्छेद 370 हटाने का भारत का फैसला चीन की चिंता का कारण क्यों और कैसे है? सीमा विवाद सुलझाने में हो रही अनावश्यक देरी पर उन्होंने अवश्य यह कहा कि अगले दौर की वार्ता में ठोस प्रगति होने के आसार हैैं, लेकिन वह यह नहीं बता सके कि यह बातचीत कब होगी? उनकी बातों से यह भी साफ हुआ कि भारत न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की सदस्यता के लिए चीन से सहयोग की अपेक्षा न रखे।

हांगकांग से हटकर कश्मीर पर ध्यान

यह पहले से स्पष्ट है कि चीन पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अपने द्वारा बनाए जा रहे गलियारे पर भारत की आपत्तियों का निस्तारण करने को तैयार नहीं है। इसके बावजूद वह यह चाहता है कि भारत यह ध्यान रखे कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है। चीन यह तो चाहता है कि कश्मीर का समाधान अंतरराष्ट्रीय नियमों और खासकर संयुक्त राष्ट्र चार्टर के हिसाब से हो, लेकिन हांगकांग के मुद्दे को वह अपने हिसाब से हल करना चाह रहा है। इन दिनों चीन सरकार यह साबित करने की हरसंभव कोशिश कर रही है कि हांगकांग के प्रदर्शनकारी दंगाई हैं और वे आतंकियों सरीखा बर्ताव कर रहे हैं।

सरकार नियंत्रित चीनी मीडिया

सरकार नियंत्रित चीनी मीडिया भी यह सब साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। 13 अगस्त को अंग्रेजी अखबार चाइना डेली की पहली खबर थी-हांगकांग की अशांति में आतंक के निशान। इसी दिन इस अखबार के संपादकीय में लिखा गया कि अगर हांगकांग में हिंसा थमी नहीं तो जोरदार पलटवार के अलावा और कोई उपाय नही। हांगकांग में चीन के नियम लागू करने का हठ दिखा रहा यही चीनी नेतृत्व कश्मीर पर भारत को उपदेश दे रहा है और इस क्रम में इसकी सुध लेना जरूरी नहीं समझ रहा कि वह खुद उइगर मुसलमानों से किस तरह पेश आ रहा है? चीनी नीति-नियंताओं के रुख से जो स्पष्ट होता है वह यही कि चीन भारत से अपने लिए जैसे व्यवहार की अपेक्षा रखता है वैसा व्यवहार भारत से करने को तैयार नहीं।

चीन का पाकिस्तान प्रेम

चीन को भारत से तो यह अपेक्षा है कि वह उसे किसी और, खासकर पश्चिम की निगाह से न देखे, लेकिन वह खुद भारत को पाकिस्तान की निगाह से देखने की अपनी नीति छोड़ने को तैयार नहीं दिखता। वुहान में कायम समझबूझ को आगे बढ़ाने चीनी राष्ट्रपति भारत आने वाले हैं। उनकी यात्रा यह स्पष्ट करेगी कि चीन के पाकिस्तान प्रेम में कोई कमी आने वाली है या नहीं? इस यात्रा का नतीजा कुछ भी हो, भारत के प्रति चीन के आम लोगों का नजरिया अपनी सरकार से भिन्न दिखता है।

चीनी नागरिक भारत का आदर करते हैं

चीनी नागरिक यिंदू यानी भारत को अपनी जैसी पुरातन संस्कृति वाला देश मानते हैं। भगवान बुद्ध के कारण वे भारत को विशेष आदर की दृष्टि से देखते हैं। वे भारतीयों से मिलते समय उत्साह भी दिखाते हैैं और अपनत्व भी। उनकी लोक कथाओं और कलाओं में बुद्ध के जीवन के नाना प्रसंग उपस्थित हैं। इन प्रसंगों का स्मरण विभिन्न चीनी ओपेरा में भी होता है। चीन रवींद्र नाथ टैगोर की स्मृतियों को भी अपने संग्रहालयों में संरक्षित किए हुए है। वहां के लोग भारत को अपनी जैसी विरासत वाला देश मानते हैैं और शायद इसी कारण बीजिंग में दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को इंगित करने वाला समारोह जिस मंच पर आयोजित हुआ वह चीन की दीवार और ताजमहल की छवि से लैस था।

विकास के मामले में चीन बहुत आगे निकल गया

इसमें दोराय नहीं कि भारत विकास के मामले में चीन को चुनौती देने के लिए कमर कस रहा है, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि चीन कहीं आगे निकल गया है। बीजिंग और शंघाई जैसे शहर चीन की चमत्कारिक प्रगति को पुष्ट करते हैैं। चीन न केवल ढांचागत परियोजनाओं को विशाल रूप देने, बल्कि उनका आनन-फानन निर्माण अपने बलबूते करने में पारंगत हो गया है।

आधुनिक तकनीक से लैस शंघाई बंदरगाह

बतौर उदाहरण शंघाई बंदरगाह। दुनिया के इस सबसे बड़े बंदरगाह में हर सप्ताह 60 जहाज माल लाते-ले जाते हैैं। आधुनिक तकनीक से लैस इस बंदरगाह को महज 256 लोग संचालित करते हैैं। मजदूरों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है, लेकिन वह कुछ दर्जन तक ही सीमित रहती है। शंघाई से इस बंदरगाह तक पहुंच के लिए समुद्र पर करीब 35 किमी लंबा पुल बना है। इसे महज चार साल में तैयार कर लिया गया था। चीन ने ऐसे कई करिश्मे किए हैैं।

आमची मुंबई पीछे छूट गई

आमतौर पर भारत में शंघाई को मुंबई जैसे शहर के तौर पर जाना जाता है, लेकिन सच यह है कि आमची मुंबई पीछे छूट गई है। शंघाई न केवल अपनी भव्यता में अमेरिका और यूरोप के शहरों से टक्कर ले रहा है, बल्कि करीब ढाई करोड़ आबादी के बाद भी कहीं अधिक साफ-सुथरा और सुव्यवस्थित दिखता है। यही कारण है कि वह देशी-विदेशी पर्यटकों से गुलजार रहता है।

चीन की तरक्की से भारत को सीखना होगा

चीन ने तेज विकास के साथ अपने लोगों को समृद्ध भी बनाया है और इसका प्रमाण बीजिंग, शंघाई के साथ-साथ दुनिया के सभी बड़े शहरों में चीनी पर्यटकों की बढ़ती संख्या से मिलता है। नि:संदेह चीन सरकार का भारत के प्रति रवैया दोनों देशों की दोस्ती में एक दीवार है, लेकिन चीन की तेज तरक्की से बहुत कुछ सीखा जा सकता है और वह सीखा भी जाना चाहिए।

( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैैं )