[हरियाणा, जगदीश त्रिपाठी]। आजकल सूर्यदेव को भले ही कोहरे का बाउंसर फॉर्म में नहीं आने दे रहा है, लेकिन हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज पूरी तरह फार्म में हैं। वह धुआंधार बैटिंग कर रहे हैं। पुलिस विभाग के अधिकारी सांसत में हैं। जो स्लिप में हैं वे भी और जो लॉन्ग ऑफ पर हैं वे भी। विज न जाने किस तरफ से गेंद बाउंड्री पार करा दें। और फिर फील्डर को मैदान से बाहर जाने या ट्रांसफर कर देने का फरमान जारी कर दें।

यह विज का स्टाइल है। सो इस कड़कती ठंड में विज की कड़कती आवाज पुलिस अधिकारियों को सर्दी में भी गर्मी का एहसास कराते हुए पसीना-पसीना कर रही है। हालांकि इसमें पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों की कोई गलती नहीं है। दरअसल पिछले 23 वर्षों से मुख्यमंत्री खुद अपने पास गृह विभाग रखते थे। अब मुख्यमंत्री के पास कहां इतनी फुर्सत कि वह पुलिस पर ध्यान दें। विज की सीन में एंट्री क्या हुई, लगा गब्बर आ गया। वैसे विज का प्रचलित नाम गब्बर ही है। हरियाणा में किसी से पूछ लीजिए, गब्बर कौन है? वह छूटते ही बोलेगा- अनिल विज।

देखा-देखी पुण्य, देखा-देखी पाप

एक दिन मनोहर स्वभाव वाले मुख्यमंत्री भी विज के रूप में प्रकट हो गए। सीधे करनाल तहसील कार्यालय पहुंचे। जब तहसील कार्यालयों में लिया राम- दिया राम की परंपरा पहले से चली आ रही है तो करनाल का तहसील कार्यालय इसके अनुपालन में पीछे क्यों रहता? लेकिन इस परंपरा को देख मनोहर, लाल हो गए। तहसीलदार- नायब तहसीलदार सहित चार को निलंबित कर दिया। लोगों को लगा कि वह सीनियर गब्बर बनने जा रहे हैं क्या? हालांकि अब तक उन्होंने फिर वैसा कोई शॉट नहीं खेला है। इससे अधिकारी राहत महसूस कर सकते हैं। लेकिन कब जाने अपने वरिष्ठतम कनिष्ठ का प्रदर्शन देख उनका मन फिर से जोरदार बैटिंग के लिए मचल जाए। अब उनका मन फिर मचले न मचले। उनके खेल मंत्री संदीप सिंह पिच पर उतरते ही विज की तरह आक्रामक मोड में आ गए थे और चर्चा में हैं। उनके विभाग वाले उन्हें सेकेंड गब्बर मानने लगे हैं।

तड़पाए-तरसाए रे दिल्ली की कुर्सी

सर्दी तो तड़पा-तरसा रही ही है, हरियाणा के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं को भी तड़पा-तरसा रही है। खास तौर से तीन प्रमुख नेताओं को। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा राज्यसभा की सदस्य हैं। वे चाहती हैं कि राज्यसभा में उनकी कुर्सी बरकरार रहे तो नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा रोहतक से चुनाव हार चुके अपने पुत्र पूर्व सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा को राज्यसभा भेजना चाहते हैं। लोकसभा का चुनाव हारने के बाद वह माननीय रहे नहीं। अब हुड्डा अगर अपने पुत्र को माननीय बनाने का प्रयास कर रहे हैं, इसमें गलत क्या है? हर पिता अपने पुत्र की राह के कांटे हटाता है।

हुड्डा को राह से कांटे हटाने का प्रचुर अनुभव है। इसका प्रमाणपत्र तो राम बिलास शर्मा साल भर पहले दे चुके हैं। लेकिन ऐसी ही समस्या कांग्रेस के केंद्रीय मीडिया प्रकोष्ठ के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला की है। कैथल से विधानसभा चुनाव हारने के बाद माननीय बनने के प्रबल आकांक्षी वह भी हैं। हरियाणा में विधान परिषद तो है नहीं, इसलिए राज्यसभा के अतिरिक्त दूसरा मार्ग भी नहीं है। दस जनपथ के नजदीकी हैं। राष्ट्रीय प्रवक्ता जैसी बड़ी जिम्मेदारी है। उनका भी सम्मान तो होना ही चाहिए। यह अलग बात है कि एक अनार तीन बीमार, जैसी स्थिति में किन्हीं दो की तकदीर को तो अशोक तंवर होना ही है, हालांकि बाकी दोनों का हश्र तंवर जैसा नहीं होगा यह तय है।

परिणिति के ट्वीट की परिणिति भी गजब रही

नागरिकता संशोधन विधेयक पर हरियाणा में कोई राजनीतिक घमासान नहीं हुआ, यह अच्छी बात रही। मुख्य विरोधी दल कांग्रेस के नेता जहां पूरे देश में हंगामा काटते रहे, वहीं हरियाणा में वह शांत और संयत हैं, लेकिन भाजपा सरकार को मुश्किल में डाल दिया परिणिति चोपड़ा के ट्वीट ने। परिणिति को भी यह अनुमान नहीं रहा होगा कि उनके ट्वीट की क्या परिणिति होगी। उन्होंने ट्वीट किया था, ‘जब लोग अपने विचार व्यक्त करते हैं, तब ऐसा ही होता है। नागरिकता कानून को भूल जाइए। हमें एक बिल पास करना चाहिए और देश को लोकतंत्र नहीं कहना चाहिए। अपने मन की बात कहने पर लोगों की पिटाई असभ्य तरीका है।’ इस ट्वीट से भाजपा नेताओं को तो असहज होना ही था। खास तौर से मुख्यमंत्री मनोहर लाल को, जिन्होंने अंबाला की परिणिति को ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान का हरियाणा का ब्रांड अंबेसडर बनाया था, अपने वरिष्ठ मंत्री अनिल विज को विश्वास में लिए बगैर। इससे वह खफा भी हो गए थे।

जब परिणिति के ट्वीट पर बवाल हो गया तो सरकार ने उन्हें अभियान के ब्रांड अंबेसडर पद से हटा दिया। रणदीप सुरजेवाला ने इसे हरियाणा की बेटियों की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया। फिर सरकार की तरफ से इस अभियान के निदेशक सामने आए। उन्होंने कह दिया कि परिणिति के साथ केवल एक वर्ष का अनुबंध था। अनुबंध का नवीनीकरण ही नहीं किया गया। फिर हटाने का प्रश्न ही नहीं उठता। वैसे भाजपाइयों का कहना है कि परिणिति अपने अनुबंध का नवीनीकरण न होने से क्षुब्ध थीं। वह इसका प्रदर्शन करने के लिए मौके की तलाश में थीं। उन्हें यह मौका नागरिकता अधिनियम पर हिंसक विरोध जताने वालों पर सरकार ने बलप्रयोग कर दे दिया।

[हरियाणा राज्य डेस्क के प्रभारी]

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