नई दिल्ली [प्रो. लल्लन प्रसाद]। भारतीय अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र के लगभग 45 करोड़ श्रमबल में से करीब 30 प्रतिशत श्रमिक प्रवासी मजदूर हैं, जो गांवों, छोटे शहरों एवं पिछड़े इलाकों से रोजगार की तलाश में बड़े शहरों, औद्योगिक, कृषि एवं व्यावसायिक रूप से विकसित क्षेत्रों में जाते हैं। 

फसलों की बोआई व कटाई के समय विकसित राज्यों में इनकी मांग बढ़ जाती है। अधिकांश प्रवासी मजदूरों का एक पैर गांव में होता है तो दूसरा काम की जगह शहर में। नीति आयोग के अनुसार असंगठित क्षेत्र देश के 85 प्रतिशत मजदूरों को रोजगार देता है, जबकि वर्ष 2018-19 के आíथक सर्वे के अनुसार 93 प्रतिशत श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में हैं। देश की सकल आय में इस क्षेत्र का योगदान 49 प्रतिशत के करीब है। 

खेती, विनिर्माण, परिवहन और छोटे पैमाने पर उद्योग एवं निजी व्यवसाय और काम-धंधे असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के रोजगार के बड़े स्नोत हैं। संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को श्रम कानूनों में मजदूरी के दर और भुगतान, काम के दौरान दुर्घटना की क्षतिपूíत, पीएफ, मेडिकल एवं अन्य सुविधाओं का लाभ मिलता है। अधिकांश बड़ी कंपनियां स्थायी मजदूरों के रहने के आवास की व्यवस्था भी करती हैं। असंगठित क्षेत्र के श्रमिक इन सुविधाओं से वंचित होते हैं, क्योंकि अधिकांश श्रम कानूनों के दायरे में वे नहीं आते। 

वर्ष 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी थी, प्रवासी मजदूरों के लिए कानून पारित हुआ था- अंतरराज्यीय प्रवासी मजदूर (रोजगार नियमन एवं सेवा शर्तें)। इसमें प्रावधान किया गया था कि श्रम ठेकेदारों को दोनों राज्यों, जहां से मजदूर जाएंगे और जहां काम पर लगाए जाएंगे, वहां पंजीकरण कराना पड़ेगा और लाइसेंस लेना होगा। मजदूरों को उचित वेतन, आवास और मेडिकल आदि की सुविधाएं ठेकेदार की जिम्मेदारी होगी। वर्तमान सरकार संसद में एक बिल लाई है जो प्रवर समिति के पास है। इसमें अनौपचारिक मजदूरों की भलाई, उनकी सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, आवास आदि योजनाओं पर ध्यान दिया गया है।

प्रवासी श्रमिकों के शहरों में निवास की समस्या पर सरकार का ध्यान कम है। प्रधानमंत्री आवास योजना जिन आय वर्ग के लोगों के लिए है, उनमें प्रवासी मजदूर नहीं आ पाएंगे। सभी शहरों में जहां प्रवासी मजदूर हैं, वहां श्रमिक आवास बोर्डो की स्थापना की जाए जो श्रमिक भवनों का निर्माण कराए और कम किराये पर प्रवासी मजदूरों को दे। 

प्रवासी मजदूरों की राजनेताओं द्वारा भी उपेक्षा होती रही है। इसका एक बड़ा कारण है कि अधिकांश श्रमिकों के वोटर आइडी उनके मूल निवास के होते हैं, जबकि काम की जगह कहीं और होती है। अधिकांश राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों के प्रति कितनी उदासीन होती हैं, यह लॉकडाउन में देखने को मिला।

ना रोजगार, ना राशन, ना कोई आíथक सहायता, मजदूर घर की ओर पलायन को मजबूर हो गए। लॉकडाउन में सरकार ने मुफ्त राशन का वादा किया था, पर बड़ी संख्या मे जरूरतमंदों को राशन नहीं मिल सका, जो पलायन का बड़ा कारण बना। 

प्रवासी मजदूरों को अपने गांव में ही रोजगार मिल सके, इसके लिए प्रधानमंत्री ने पचास हजार करोड़ रुपये की गरीब कल्याण रोजगार योजना की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत गांव लौटे श्रमिकों के लिए 125 दिनों के रोजगार का प्रावधान किया गया है। फिलहाल यह योजना देश के 116 सर्वाधिक प्रभावित जिलों में लागू की जाएगी जहां अधिकतर मजदूर वापस आए हैं।

इस योजना से करीब तीस लाख मजदूरों के लाभान्वित होने की उम्मीद है। इस योजना में गांव में गरीबों के लिए आवास निर्माण, जल जीवन मिशन में काम, पंचायत भवनों, शौचालयों, मंडियों, सड़कों आदि का निर्माण शामिल है। योजना का प्रभावशाली कार्यान्वयन श्रमिकों को तात्कालिक राहत देगा और उनमें विश्वास पैदा करेगा। (पूर्व विभागाध्यक्ष, बिजनेस इकोनॉमिक्स विभाग, दिल्ली विवि)