[एनके त्रिपाठी]। कश्मीर घाटी में जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर पुलवामा जिले के अवंतीपोरा के पास सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकवादियों ने घात लगाकर हमला किया। इसमें अब तक तक 44 सुरक्षाकर्मी शहीद हो चुके हैं। अनेक जवान गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं। आतंकवादियों ने विस्फोटक पदार्थ भरी अपनी गाड़ी को काफिले में चल रही एक बस से टकराकर विस्फोट किया। इसके बाद आतंकवादियों ने गोलियां भी चलाईं। इस घटना से सुरक्षा बलों को बड़ा धक्का लगा है।

पिछले कुछ वर्षों से सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों के विरुद्ध बहुत ही कारगर कार्रवाई की है, यह हमला उसी से उपजी बौखलाहट का परिणाम है। हमारी जांबाज सेना और सीआरपीएफ के जवानों ने मिलकर पाकिस्तान से घुसपैठ करके आए तथा घाटी में स्थानीय रूप से पलने वाले आतंकवादियों का बड़े पैमाने पर सफाया किया है। बीते तीन-चार वर्षों में कश्मीर घाटी में आतंक की कमर तोड़ने में हमारे सुरक्षाबल काफी हद तक सफल रहे हैं। कुछ ही दिन पूर्व उत्तरी कमांड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह ने बयान दिया था कि सुरक्षा बलों ने 2018 में लगभग 250 आतंकवादियों का सफाया किया है।

यह पिछले एक दशक की सबसे प्रभावी कार्रवाई थी। इसमें कोई संदेह नहीं है पाक आतंकवादियों की घुसपैठ को सीमा पर सेना और सीआरपीएफ ने कारगर तरीके से नियंत्रित किया है। विगत वर्षों में दक्षिण कश्मीर स्थानीय आतंकवादियों को पैदा कर रहा है और दुखद यह कि इन लोगों को वहां पर शरण भी मिल रही है। इसमें भी संदेह नहीं कि भारतीय सेना की जबरदस्त कार्रवाई के कारण आतंकवादियों की बौखलाहट बढ़ती जा रही है। इसी कारण पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के इशारे पर जैश-ए-मोहम्मद द्वारा यह सुनियोजित कायरतापूर्ण कार्रवाई की गई है। जहां तक इस घटना का प्रश्न है, इसमें कहीं न कहीं सुरक्षा-सतर्कता में चूक अवश्य हुई है। इतने बड़े काफिले की सुरक्षा के लिए रोड ओपनिंग पार्टी की सतर्कता बहुत आवश्यक है।

बताया जा रहा है कि आतंकवादियों की एसयूवी गाड़ी ने काफिले के साथ चलते हुए इस घटना को अंजाम दिया। इस संदिग्ध गाड़ी को रोका नहीं जा सका जिसका खामियाजा जवानों की इतनी दर्दनाक शहादत के रूप में भुगतना पड़ा। भविष्य में सीआरपीएफ तथा सेना को अपने काफिले की सुरक्षा के लिए और सतर्क होना पड़ेगा। टीवी चैनलों के चैंबरों में बैठे विशेषज्ञ अपनी-अपनी राय दे रहे हैं, मैं उन पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता, किंतु इतना अवश्य कहूंगा कि केवल बात करने और जमीनी स्तर के हालात में जमीन-आसमान का अंतर होता है। हमें यह समझना होगा कि सुरक्षा बल देश के किसी भी विशेषज्ञ से ज्यादा सतर्क और चुस्त होते हैं। वे अपनी जान और देश की सुरक्षा करना हमसे ज्यादा बेहतर जानते हैं।

इसलिए उनकी आंतरिक खामियों और जमीनी हालात के तालमेल पर प्रश्न उठाने का किसी को कोई अधिकार नहीं। इस समय हमें सुरक्षा बलों के समर्थन में पूरे विश्वास के साथ खड़ा होना होगा। यह भी समझना होगा कि बिना जोखिम लिए कोई भी सुरक्षाबल कार्रवाई नहीं कर सकता। पूर्व खुफिया सूचना न होने का विलाप करना निरर्थक है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल द्वारा सुरक्षा बलों को और चौकस रहने की हिदायत देना केवल रस्म अदायगी ही माना जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि देश पूरी ताकत के साथ इसका जवाब देगा। दबी जुबान से सर्जिकल स्ट्राइक करने की बात भी की जा रही है। किंतु सर्वाधिक जरूरत इस बात की है कि अब निर्णायक कार्रवाई हो। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी वारदात की पुनरावृत्ति न हो।

सनद रहे कि दस आतंकी मार देने से भी ज्यादा जरूरी हमारे एक भी सैनिक का बचना है। हमारे सुरक्षाबलों को अब रक्षात्मक रणनीति के बजाय आक्रामक कूटनीति अपनानी होगी। हालांकि बदले जैसी किसी भी कार्रवाई की तैयारी के साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अब हमारा कोई भी जवान हताहत न हो। पुलवामा में हुई यह कायराना वारदात आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद द्वारा की गई है। जैश का मुख्य सूत्रधार मसूद अजहर पाकिस्तानी भूमि से अपनी गतिविधियों का संचालन कर रहा है।

पाकिस्तान के साथ चीन भी मसूद की ढाल बना हुआ है। चीन संयुक्त राष्ट्र में बार- बार मसूद अजहर के बचाव में उतर आता है। विडंबना यह कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा करतारपुर साहिब कॉरिडोर जैसी छद्म शांतिपूर्ण पहल तो की गई है, परंतु पाकिस्तान के आतंकवादी ढांचे को छूने का साहस उनमें नहीं है। इस घटना से यह स्पष्ट हो गया है कि भले ही लिबरल दिखने वाले इमरान खान वहां सत्ता में हैं, पर पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ के रवैये में कोई परिवर्तन नहीं आया है। पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति वैसी ही बनी हुई है, जैसी सैन्य तानाशाह ने निर्मित की थी। चीन से मिल रही सतत सहायता से भी पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध कार्रवाई करने की शक्ति प्राप्त होती रही है।

अंतरराष्ट्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए इस घटना के बाद भारत को कूटनीतिक हलकों में नई पहल करनी होगी। वर्तमान केंद्र सरकार ने बीते साढ़े चार वर्षों में विदेश नीति व कूटनीति के स्तर पर बेहतर रणनीति अपनाई है। मोदी सरकार ने कूटनीति को अलग स्तर पर ले जाकर दुनिया के देशों से प्रगाढ़ संबंध बनाए हैं और पाकिस्तान को अलग-थलग किया है। अब उन्हीं संबंधों और रणनीतियों को उचित ढंग से साधकर जवाबी कार्रवाई के लिए तैयारी करनी चाहिए। ध्यान रहे कि आगामी लोकसभा चुनावों के कारण हमारी विदेश और रक्षा नीतियों में भटकाव नहीं आना चाहिए।

देशवासियों को यह भी देखना होगा कि राजनीतिक लोगों का कार्य ही राजनीति करना है। अत: आने वाले दिनों में सभी राजनीतिक दल इस घटना की व्याख्या अपने-अपने हितों के अनुकूल करेंगे। किंतु समय आ गया है कि सुरक्षा बलों की कठिन परिस्थिति को देखते हुए तथा देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए सभी दल मिलकर एक समन्वित नीति तैयार करें।

[पूर्व स्पेशल डीजी, सीआरपीएफ, जम्मू-कश्मीर]