[ प्रदीप सिंह ]: लव जिहाद। क्या ये दोनों बातें एक साथ हो सकती हैं? सवाल है कि यह लव (प्यार) के लिए जिहाद है या जिहाद के लिए लव किया जा रहा है। जो भी हो, लव जिहाद का मामला प्रेम का सीधा सादा मामला नहीं लगता। चर्चा गरम है कि लव जिहाद की घटनाएं अपराध हैं या इन्हें अपराध बनाने की कोशिश हो रही है? अब यह मुद्दा भी धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता की बहस में बदल चुका है।

योगी सरकार का लव जिहाद के खिलाफ हल्ला बोल, पहली बार कानूनी जामा पहनाया गया

योगी आदित्यनाथ की सरकार ने लव जिहाद के खिलाफ पहला हल्ला बोल दिया है। उनकी सरकार ने लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की पहल करने का साहस दिखाया है। साहस इसलिए कि इससे पहले इसकी सिर्फ बातें हो रही थीं। पहली बार इसे कानूनी जामा पहनाया गया है। इससे संबंधित अध्यादेश को योगी मंत्रिमंडल ने मंगलवार को मंजूरी दे दी, परंतु पूरे अध्यादेश में लव जिहाद का कहीं नाम नहीं। इससे सरकार ने साफ कर दिया है उसके लिए यह राजनीतिक मुद्दा नहीं है। मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कथित लव जिहाद के जुड़े एक फैसले में कहा कि दो वयस्क लोगों को जीवन साथी चुनने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 में मिले जीवन और आजादी के अधिकार में निहित है। अदालत ने यह भी कहा कि वह दो वयस्कों को हिंदू-मुस्लिम के रूप में नहीं देखती। उन्हें अपनी मर्जी से जीवन साथी चुनने और जीवन यापन का अधिकार है। हाईकोर्ट ने इससे पहले शादी के लिए धर्म परिवर्तन को गलत ठहराने वाले पहले के फैसले को खराब कानून बताया।

अंतरधार्मिक विवाह को विघ्न रहित बनाने के लिए योगी सरकार लाई अध्यादेश

इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले से कोई असहमति नहीं होनी चाहिए। मुझे नहीं लगता कि पहले भी कोई असहमति थी, मगर एक सवाल अनुत्तरित रह गया। क्या जीवन साथी चुनने में किसी एक को (अधिकांश मामलों में लड़की को) अपने धर्म को तिलांजलि देना ही एकमात्र विकल्प है। प्रेम और विवाह में धर्म परिवर्तन की बात कहां से आ जाती है। इसी धर्म परिवर्तन की प्रवृत्ति को रोकने और अंतरधार्मिक विवाह को विघ्न रहित बनाने के लिए योगी सरकार यह अध्यादेश लाई है। इसमें अंतर धार्मिक विवाह पर कोई रोक नहीं लगाई गई है।

एमपी, हरियाणा, उत्तराखंड और कर्नाटक भी लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी में

मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और कर्नाटक राज्यों की सरकारें लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी में हैं। इस कानून के पक्षधरों का कहना है कि लव जिहाद के नाम पर गैर मुस्लिम लड़कियों को प्रेम और शादी के जाल में फंसाकर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। उनके अनुसार इन शादियों का मकसद अंतरधार्मिक विवाह नहीं, बल्कि उसकी आड़ में धर्म परिवर्तन है। सो इसे रोकने के लिए कानून बनाना जरूरी हो गया है।

कानून के विरोधियों का कहना : जीवन साथी चुनने के संवैधानिक अधिकार से वंचित करना

वहीं इस कानून के विरोधियों का कहना है कि लव जिहाद एक काल्पनिक अवधारणा है। इसका मकसद लोगों को अपनी इच्छा से जीवन साथी चुनने के संवैधानिक अधिकार से वंचित करना है। ये लोग कह रहे हैं कि क्या अब सरकार बताएगी कौन किससे शादी करे या न करे। अब चूंकि यह कानून भाजपा शासित सरकारें बना रही हैं इसलिए आलोचकों के लिए सहूलियत भी है, क्योंकि इनकी नजर में भाजपा जो करती है, वह सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने के लिए ही करती है। कुल मिलाकर असली मुद्दा पीछे चला गया है। या कहें कि उसने नया रूप धारण कर लिया है। यह रूपांतरित मुद्दा यही है कि आप भाजपा के समर्थन में हैं या विरोध में। समर्थन में हैं तो आप सांप्रदायिक होंगे ही और विरोध में हैं तो आप धर्मनिरपेक्ष ही होंगे।

केरल हाई कोर्ट ने कहा था- सरकार लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाए

इसकी शुरू से पड़ताल करते हैं। इस मुद्दे को पहली बार भाजपा या उसके समर्थक किसी संगठन ने नहीं छेड़ा और न ही इसका आगाज किसी भाजपा शासित राज्य से हुआ। सितंबर, 2009 में केरल की कैथोलिक बिशप काउंसिल ने आरोप लगाया कि साढ़े चार हजार गैर मुस्लिम लड़कियों को टार्गेट कर उनका धर्मांतरण कराया गया। 10 दिसंबर, 2009 को केरल हाई कोर्ट ने कहा कि 1996 से यह सिलसिला जारी है। इसमें कुछ मुस्लिम संगठन शामिल हैं, जो अच्छे घरों की हिंदू और ईसाई लड़कियों को टार्गेट करते हैं। अदालत ने कहा कि सरकार लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाए। उसके बाद जुलाई, 2010 में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वरिष्ठ माकपा नेता वीएस अच्युतानंदन ने जो आरोप लगाया, वह अभी तक किसी भाजपा नेता ने नहीं लगाया है। उन्होंने कहा कि शादी के नाम पर गैर-मुस्लिम लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराकर केरल को मुस्लिम बहुल राज्य बनाने की कोशिश हो रही है। इस बयान के बाद भाजपा ने मामले की एनआइए जांच की मांग की और कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के बयान की निंदा। दिसंबर 2011 में कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में 84 लापता लड़कियों का मुद्दा उठाया। बरामदगी के बाद 69 लड़कियों ने कहा कि उन्हें धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया।

अलग-अलग धर्म के अनुयायी विवाह करना चाहें तो अपना धर्म बदलने की जरूरत नहीं है

अंतरधार्मिक या अंतरजातीय विवाह समाज में समरसता के लिए अच्छे माने जाते हैं, लेकिन तभी जब उनका उद्देश्य पवित्र हो। इसीलिए संविधान में ऐसे लोगों की सहूलियत के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट का प्रावधान किया गया है। इस कानून में व्यवस्था है कि अलग-अलग धर्म के अनुयायी विवाह करना चाहें तो उनमें से किसी को अपना धर्म बदलने की जरूरत नहीं है। अब देश में इस कानून के बनने के बाद से जितने अंतरधार्मिक विवाह हुए हैं उनका आंकड़ा निकालिए। फिर एक और आंकड़ा निकालिए कि इनमें कितनी शादियां इस कानून के तहत हुई हैं। दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। जिनका मकसद धर्म परिवर्तन कराना नहीं है, उनके लिए यह कानून वरदान है। दोनों आंकड़े निकालने पर आप निराश ही होंगे। इसीलिए कोई ‘लिबरल’ इस कानून की बात नहीं करता।

भारत में गंगा जमुनी तहजीब का शिगूफा छोड़ने वालों ने माहौल बिगाड़ा

दरअसल भारत में गंगा जमुनी तहजीब का शिगूफा छोड़ने वालों ने माहौल ज्यादा बिगाड़ा है। रॉ के पूर्व मुखिया विक्रम सूद ने गहन शोध के बाद ‘द अल्टीमेट गोल’ नाम से किताब लिखी है। उसमें लिखा है कि ‘भारत में धर्म और धर्मनिरपेक्षता एक दोषपूर्ण विमर्श रहा है। सरकार को धर्मनिरपेक्ष होने के लिए सभी मजहबों से दूर रहना चाहिए। उसे मजहब के आधार पर रेवड़ियां नहीं बांटनी चाहिए। न ही राजकाज के मामलों में मजहब के अनुसार आचरण की इजाजत देनी चाहिए।’ भारत में तमाम समस्याएं संविधान और शरिया के साथ-साथ चलने के कारण हैं। समान नागरिक संहिता ही इसका समाधान है।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )