सुनीता मिश्र। तेलुगू देशम नेता चंद्रबाबू नायडू ने शरद पवार और फारूख अब्दुल्ला के साथ मिलकर गैर-भाजपा दलों के महागठबंधन की संभावनाओं को फिर हवा देने की कोशिश की है। तीनों नेताओं ने मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि देश में लोकतंत्र संकट में है और सरकार लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश कर रही है। चंद्रबाबू नायडू राहुल गांधी के अलावा विपक्षी दलों के अन्य नेताओं से मुलाकात भी कर रहे हैं और उन्होंने 22 नवंबर को इस संबंध में दिल्ली में एक बैठक करने का ऐलान किया है। राहुल गांधी भी मोदी सरकार पर राफेल विमान सौदे में घोटाले का आरोप लगा चुके हैं। यह बयानबाजी 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर की गई है। हालांकि पांच राज्यों के जारी विधानसभा चुनावों से भी इसका संबंध है। ऐसे में इस बात का विश्लेषण किया जाने लगा है कि 2019 से पहले क्या सचमुच महागठबंधन बनेगा? अगर बनेगा, तो क्या उसमें सभी भाजपा विरोधी दल शामिल हो जाएंगे?

क्या महागठबंधन बनेगा!

जानकारों का मानना है कि महागठबंधन नहीं बनेगा, लेकिन यह अनुमान सही नहीं है। महागठबंधन न बनने का अनुमान ये लोग इस आधार पर लगा रहे हैं कि कांग्रेस मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बसपा से समझौता नहीं कर पाई। मध्य प्रदेश में तो समाजवादी पार्टी भी कुछ सीटों पर चुनाव मैदान में है, बसपा ने छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के साथ तालमेल कर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। लेकिन इन राज्यों के विधानसभा चुनाव अलग बात हैं जबकि लोकसभा चुनाव अलग। राज्य विधानसभा चुनाव में सभी दल अपनी ताकत को अलग-अलग आजमा रहे हैं। अगर बसपा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान या फिर इन तीनों में से किसी एक राज्य में बेहतरीन प्रदर्शन करती है तो उससे दो बातें होंगी। कांग्रेस दबाव में आ जाएगी और बसपा लोकसभा चुनाव के लिए ज्यादा मोलभाव करने की स्थिति में होगी। इन दोनों स्थितियों में वह महागठबंधन में शामिल हो जाएगी। उसे महागठबंधन में शामिल करने के लिए कांग्रेस को झुकना पड़ेगा। वैसे इस अनुमान से विपरीत होने की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता है। अगर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बसपा कुछ खास नहीं कर पाएगी तो वह दबाव में आ जाएगी। लिहाजा वह महागठबंधन में शामिल हो जाएगी। बसपा का आधार केवल उत्तर प्रदेश में है। वहां से उसका एक भी लोकसभा सदस्य नहीं है। प्रदेश विधानसभा में भी उसका प्रतिनिधित्व कम हो गया है। लिहाजा पार्टी यदि 2019 में ठीक प्रदर्शन नहीं कर पाई तो इसका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

भाजपा के साथ जाएंगी माया?

मायावती अगर भाजपा के साथ चली गईं तो उनका जनाधार तो अवश्य खिसक जाएगा। धीरे-धीरे बीजेपी उनके मतदाताओं को अपने पाले में कर लेगी, लेकिन मायावती ऐसी नेता नहीं हैं जो भाजपा से परहेज करती हों। उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ मिलकर वह सरकार बना चुकी हैं। उनके दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं। नरेंद्र मोदी और मायावती के रिश्ते भी खराब नहीं हैं। अमित शाह भी जानते हैं कि उन्हें किस पार्टी या नेता को भाजपा के साथ लाना है। इसलिए मायावती के भाजपा के साथ जाने की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता। हां, यह जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि अपना वोट बैंक हमेशा-हमेशा के लिए खिसकने के डर से मायावती फैसला बहुत सोच-समझकर लेंगीं।

तीसरा मोर्चा बनने की संभावनाएं

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव एक ऐसा मोर्चा बनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं जिसमें शामिल दल भाजपा व कांग्रेस से दूरी बनाकर चलेंगे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और द्रमुक नेता एमके स्टालिन उनके प्रयास से सहमत दिख रहे हैं। स्टालिन को छोड़कर ये सभी नेता वैसे हैं जो कांग्रेस से भी उतना ही डरते हैं जितना भाजपा से। कांग्रेस इनकी मूल प्रतिद्वंद्वी है। ओडिशा में भाजपा का जनाधार बढ़ रहा है, लेकिन वहां नवीन पटनायक की प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ही है। पश्चिम बंगाल में न कांग्रेस का खास जनाधार है न भाजपा का, वहां ममता बनर्जी को वामपंथी दलों के साथ प्रतिद्वंद्विता है। ऐसे में ममता का रुख आगे क्या होगा यह नहीं कहा जा सकता, लेकिन उनके मन में प्रधानमंत्री बनने का सपना पल रहा है। इस सपने का बीज उनमें लालू प्रसाद यादव ने बोया था। इस बार जब ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि ममता बनर्जी देश की प्रधानमंत्री बन सकती हैं। ममता तभी से इसी सपने के साथ राजनीति कर रही हैं। ऐसे में अगर उन्हें प्रधानमंत्री का पद महागठबंधन देगा, तो वह उसके साथ चली जाएंगी और तीसरा मोर्चा देगा तो उसके साथ। तीसरे मोर्चे की राह आसान नहीं, क्योंकि भाजपा नहीं चाहेगी कि उसके विरोधी वोट एकजुट हों। अत: वह चंद्रशेखर राव में तीसरा मोर्चा बनाने की हवा भरती रहेगी। शरद पवार और चंद्रबाबू नायडू की चंद्रशेखर राव से पटरी नहीं बैठती है। इसीलिए उन्हें अपने पाले में लेने वाला फिलहाल कोई नहीं।

महागठबंधन की संभावना

अगर हम भाजपा विरोधी महागठबंधन की संभावना के आधार पर ही आगे बढ़ें, तो इसका सबसे कमजोर पक्ष यह है कि यह प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की स्थिति में नहीं है। चंद्रबाबू नायडू, शरद पवार और फारूख अब्दुल्ला ने पत्रकार-वार्ता में कहा कि प्रधानमंत्री चुनाव परिणाम आने के बाद तय किया जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार इच्छा जताई थी कि अगर विपक्ष चाहेगा तो वह प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं, जिस पर ममता बनर्जी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। इसके बाद पी चिदंबरम ने मोर्चा संभाला और कहा कि यह चुनाव के बाद तय किया जाएगा कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा। महागठबंधन की रणनीति में धार तभी आएगी जब वह प्रधानमंत्री पद का चेहरा पहले बताए, लेकिन वह इस स्थिति में नहीं है। चंद्रबाबू नायडू अपने हाथ आया प्रधानमंत्री का पद एक बार छोड़ चुके हैं। माना जाता है कि एचडी देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने में उनकी बड़ी भूमिका थी। इस बार भी उनके मन में प्रधानमंत्री बनने की इच्छा नहीं दिख रही, बाकी तो विपक्ष का हाल एक अनार सौ बीमार वाला है।

एनडीए सरकार का विरोध

भाजपा की अगुआई में केंद्र की सत्ता पर काबिज एनडीए सरकार के विरोध में तमाम विपक्षी पार्टियां इन दिनों लामबंद हो रही हैं जिसमें कांग्रेस की अगुआई में महागठबंधन बनाने की कवायद जारी है। हालांकि यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि क्या सभी विपक्षी दल मोदी सरकार के विरोध में एकसाथ आते हुए महागठबंधन बना सकते हैं या फिर एक तीसरा मोर्चा भी अस्तित्व में आ सकता है, क्योंकि कई क्षेत्रीय क्षत्रपों की राजनीति अलग-अलग राह पर दिख रही है

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)