[विवेक काटजू]। पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रमुख दलों ने एक साझा प्रेस कांफ्रेंस में पाकिस्तानी डेमोक्रेटिक मूवमेंट नाम से संयुक्त अभियान का एलान किया। इस कांफ्रेंस में पाकिस्तान मुस्लिम लीग यानी पीएमएल-एन और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी जैसे देश के प्रमुख दल शामिल हुए। इस धड़े का मुख्य मकसद इमरान खान सरकार को सत्ता से बेदखल करना है, ताकि राजनीति में सेना की भूमिका और प्रभाव को समाप्त किया जा सके। एक ऐसे देश में जहां सार्वजनिक जीवन का कोई कोना सेना के प्रभाव से अछूता न हो और जहां नेता सेना के खिलाफ रुख अख्तियार करने में खासे हिचकते हों, वहां खुलेआम ऐसी मांग करने के लिए वाकई कलेजा चाहिए।

पीएमएल-एन की कमान फिलहाल भले ही शाहबाज शरीफ के हाथ में हो, लेकिन उनके बड़े भाई और पूर्व पीएम नवाज शरीफ ही पार्टी का चेहरा हैं। उन्होंने लंदन से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये उक्त कांफ्रेंस को संबोधित किया। इलाज के सिलसिले में वह पिछले साल से ही लंदन में हैं। उन पर आय से अधिक संपत्ति के मामले में लंदन में आलीशान संपत्ति खरीदने के मामले में आरोप तय हुए हैं। उन्हें 2018 में दस साल की सजा सुनाई गई, लेकिन गंभीर रूप से बीमार होने पर उन्हें जमानत पर रिहा किया गया। बाद में उन्हें लंदन भेजा गया। पिछले नौ महीनों से वह शांत थे, परंतु अब चुप्पी तोड़ी है।

पाकिस्तानी पीएम को सेना की प्रताड़ना झेलनी पड़ी

उन्होंने अतीत में सरकारों के तख्तापलट और चुनी हुई सरकार के शासन में दबंगई दिखाने के लिए सेना की कड़ी निंद की। उन्होंने कहा कि प्रत्येक पाकिस्तानी पीएम को सेना की प्रताड़ना झेलनी पड़ी। उन्होंने यह शिकायत भी की कि सेना ने चुनावों में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए दखल दिया। 2018 के चुनाव में सेना ने फैसला किया कि वह चुनाव हार जाएं और इमरान जीत जाएं। नवाज ने पाकिस्तान के उन न्यायाधीशों की भी आलोचना की, जिन्होंने सेना द्वारा तख्तापलट और राजनीति में दखलंदाजी को तो अनदेखा किया, लेकिन नेताओं के खिलाफ गैरवाजिब कार्रवाई की।

नवाज शरीफ खुद सेना के बहुत करीबी थे

नवाज शरीफ ने जो कहा वह सोलह आने सच है, लेकिन एक हकीकत यह भी है कि जब 1980 के दशक में उन्होंने अपना सियासी सफर शुरू किया था तो वह खुद सेना के बहुत अजीज और करीब थे। फौज के साथ उनकी तनातनी 1999 में हुई, जब उन्होंने परवेज मुशर्रफ को सेना प्रमुख के पद से हटाने का प्रयास किया। तब उलटे सेना ने ही तख्तापलट कर उन्हें बेदखल कर दिया। नवाज की ही तरह सभी पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों के सेना के साथ कभी न कभी करीबी रिश्ते रहे। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या पाकिस्तानी जनता पाकिस्तानी डेमोक्रेटिक मूवमेंट को समर्थन देकर इमरान और सेना के खिलाफ मुहिम के प्रति एकजुटता दिखाएगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि इमरान का दावा है कि विपक्षी नेता उनसे इसीलिए कुपित हैं, क्योंकि वह उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं।

पाकिस्तान अपने कानूनों में कर रहा है संशोधन

विपक्षी दलों द्वारा इमरान और सेना के खिलाफ मुहिम एक ऐसे समय शुरू हो रही है जब पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था गहरे संकट में धंस रही है। वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद की मोहताज है। उसे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से भी अपना पिंड छुड़ाना है। पाकिस्तान अपने कानूनों मे संशोधन कर रहा है, ताकि एफएटीएफ के कोप से बच सके। पाकिस्तानी संसद के उच्च सदन द्वारा दो ऐसे महत्वपूर्ण विधेयकों को खारिज करने के बाद इमरान सरकार को संसद का संयुक्त सत्र बुलाना पड़ा। सरकार ने हाफिज सईद, मसूद अजहर और दाऊद इब्राहिम जैसे 87 आतंकियों के खाते सील करने का कदम उठाया है, लेकिन यह सब दिखावा ही है, क्योंकि भारत के खिलाफ आतंकवाद को खाद-पानी देना पाकिस्तान की रणनीति का अहम हिस्सा है। सेना ने पाकिस्तानी जनता को इस कदर सम्मोहित किया हुआ है कि केवल वही भारत के खिलाफ उनकी रक्षा कर सकती है, जिसे पाकिस्तान अपना शाश्वत शत्रु मानता आया है।

भारतीय कूटनीति की होगी परीक्षा

अक्टूबर में एफएटीएफ की अगली बैठक में पाकिस्तान के मामले की सुनवाई होगी। भारत का प्रयास होगा कि पाक कम से कम ग्रे लिस्ट में तो कायम ही रहे, जबकि चीन और तुर्की जैसे देशों की हरसंभव कोशिश होगी कि उसे इस सूची से बाहर निकाला जा सके। इसमें भारतीय कूटनीति की परीक्षा होगी। भारत के खिलाफ पाकिस्तान का नकारात्मक रवैया बना हुआ है। हाल में उसके द्वारा जारी विरूपित नक्शे से उसकी बदनीयती ही झलकी। भारत ने उसे बकवास बताकर एकदम उचित किया। इस नक्शे में न केवल जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे केंद्रशासित प्रदेशों, बल्कि जूनागढ़ तक को पाकिस्तान का हिस्सा बताया गया है। भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर पर पिछले साल उठाए गए संवैधानिक कदमों की काट में पाकिस्तान कुछ खास नहीं कर पाया तो इस तरह की बचकानी हरकतों पर उतर आया है। चूंकि चीन और तुर्की को छोड़कर इस मसले पर पाकिस्तान को किसी देश का समर्थन नहीं मिला, इसलिए उसके नेताओं का मानसिक संतुलन प्रभावित होता दिख रहा है।

पाकिस्तानी भभकियों की परवाह न करे भारत

ऐसी खबरें भी आई हैं कि पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान का दर्जा बढ़ाकर उसे प्रांत बनाने जा रहा है। यदि वह ऐसा करता है तो भारत को यही दोहराना चाहिए कि यह भू-भाग लद्दाख का हिस्सा है और वह उसे उसी रूप में छोड़ दे। भारत को यह चेतावनी भी दोहरानी चाहिए कि जो देश गिलगित- बाल्टिस्तान या गुलाम कश्मीर के किसी हिस्से का इस्तेमाल करेगा, वह वास्तव में भारतीय क्षेत्र का उल्लंघन करेगा। चीन इसी इलाके में आर्थिक गलियारे का निर्माण कर रहा है। भारत के लिए जरूरी है कि वह एलएसी पर अपने सामरिक रक्षण को और सशक्त बनाए और पाकिस्तानी भभकियों की परवाह न करे।

इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग के लिए चुने गए राजनयिकों का वीजा आवेदन खारिज करके भी पाकिस्तान ने एक और उकसाने वाला काम किया है। यह भारत द्वारा नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग का आकार घटाने की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, परंतु भारत ने खुद इस्लामाबाद में अपने उच्चायोग का दायरा घटाया है। मौजूदा वक्त पाकिस्तानी फौज और इमरान का पूरा ध्यान अपने देश के हालात सुधारने पर केंद्रित होना चाहिए, लेकिन इसके उलट वे भारत के खिलाफ नकारात्मक कदम उठाने में जुटे हैं। इससे केवल पाकिस्तानी जनता का ही अहित होना है।

(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं)

[लेखक के निजी विचार हैं]