नई दिल्ली,शिवानंद द्विवेदी। त्रेता युग में दशानन का अंत, उस काल की एक बड़ी घटना थी। दशानन ‘नकारात्मकताओं’ का प्रतीक था। लिहाजा उसके अंत को ‘विजयपर्व’ के रूप में मनाया गया। हजारों वर्ष पुरानी घटना अगर परंपरा के रूप में याद की जाती है, तो इसका सबसे बड़ा कारण उसके प्रतीकात्मक महत्व की सार्थकता और जीवंतता है। घटना पुरानी हो सकती है, लेकिन उस घटना से निकले प्रतीकात्मक संदेशों की प्रासंगिकता चिरकाल तक बनी रहती है।

युगांतरकारी बदलावों से निकले प्रतीक सदियों तक पुराने नहीं पड़ते। यही कारण है कि दशानन के अनाचार से मुक्ति का विजयपर्व ‘विजयदशमी’ संदेश रूप में आज भी हमारे समाज को उसकी चुनौतियों से उबरने के लिए प्रेरित करता है। हर काल की अपनी कुछ चुनौतियां होती हैं। आज भी ‘दशानन’ रूप में अनेक चुनौतियां हमारे सामने मौजूद हैं। 

चूंकि भारत की वर्तमान राज-व्यवस्था में ‘कल्याणकारी राज्य’ की भावना तत्व-रूप में समाहित है, अत: देश की चुनौतियों को समाज और राज्य दोनों की दृष्टि से ही देखना उचित होगा। वर्ष 2017 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने ‘नए भारत’ की बात की, तब उन्होंने कुछ संकल्प देश के सामने रखे। उन संकल्पों का इशारा भी इन चुनौतियों की तरफ ही था। गरीबी, बेघरी, अस्वच्छता, आत्मनिर्भरता के अवसरों में कमी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुलभता की कमी, भ्रष्टाचार, जातिवाद, संप्रदायवाद, नक्सलवाद एवं आतंकवाद जैसे समस्या रूपी ‘दशानन’ समृद्ध, सशक्त और शक्तिशाली भारत के निर्माण में दशकों से बाधा की तरह है। अब सवाल समाधान का है। बेघरी से मुक्ति को लेकर पिछले कुछ वर्षों में सरकार के स्तर पर ठोस और जमीनी बदलाव लाने वाले प्रयास दिख रहे हैं। 

यह एक बड़ी चुनौती है, किंतु संतोष का विषय यह है कि देश समाधान पर सिर्फ चर्चा करने से आगे बढ़कर, उसे अमल में लाने के रास्ते पर चल पड़ा है। गत जुलाई में बजट पेश करते हुए सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में अगले दो वर्ष में 1.95 करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य देश के सामने रखा। अगर इसे हासिल कर लिया गया तो किसी भी आवासीय योजना के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। गरीबी से पूर्ण मुक्ति की सार्थकता भी इसी में है कि कोई भूखा न हो, कोई वस्त्रहीन न हो, कोई बेघर न हो, सबको शिक्षा का अवसर मिले तथा स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाओं से कोई महरूम न रहे।

इन चुनौतियों से पार पाने में भी सरकार के प्रयास परिवर्तन के प्रति आशान्वित करने वाले हैं। मसलन सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में दो पहलें ऐसी की हैं, जिनकी सफलता हमें अनेक चुनौतियों से निजात दिलाने में कारगर हो सकती है। सरकार द्वारा पांच लाख तक के मुफ्त इलाज की ‘आयुष्मान योजना’ तथा ‘स्वच्छता के प्रति आग्रह’,दो ऐसी पहल हैं जिनका दूरगामी असर देखने को मिल सकता है। कहा जाता है स्वस्थ व्यक्ति ही स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं।

 जल, थल और वायु को शुद्ध रख कर हम एक ऐसे देश का निर्माण कर सकते हैं, जहां बीमार और अस्वस्थ लोगों की संख्या कम हो। इसका एक बड़ा फायदा यह भी है कि देश अपनी पूर्ण श्रमशक्ति का अधिक से अधिक उपयोग कर पाने में सक्षम हो सकेगा। हालांकि यह सिर्फ सरकारी प्रयासों से संभव होगा, ऐसा नहीं है. इसके लिए सामजिक प्रयास कुछ ऐसे होने चाहिए, जो समाज के आचरण में अभिवयक्त होते दिखें। विजयदशमी इन चुनौतियों को पराजित करने का संकल्प लेने का अवसर है। विजयदशमी हमें हमारी क्षमताओं से परिचित कराने वाला प्रतीक पर्व भी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सामूहिकता के बल के साथ वर्तमान की दशानन रूपी चुनौतियों को मात देने में हम सक्षम हैं और सबल भी हैं।

त्रेता युग के दशानन के अंत की खातिर मानव सहित जीव, जंतु, पेड़-पौधे सभी ने अपना सामूहिक योगदान दिया था। देश के विकास में बाधा बन रहे वर्तमान के दशानन का अंत भी सिर्फ सरकार पर आश्रित रहकर संभव नहीं है. यह जवाबदेही संपूर्ण समाज को लेनी होगी। इस कार्य में सरकार की भूमिका सिर्फ की वाहन के ‘इंजन’ की है, ‘पहिये की भूमिका तो समाज को ही निबाहनी होगी। एक शेर की पंक्तियां हैं, ‘न किसी हमसफर न हमनशीं से निकलेगा, हमारे पांव काकांटा हमीं से निकलेगा।’ आज का दशानन भी हमारी चुनौती है, इसका अंत हम सबको ही करना है। 

लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर रिसर्च फेलो है।