डॉ. जयंतीलाल भंडारी। India Defeat China On Economic Front वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर चीनी सेना की अवांछित हरकतों के बाद उपजे तनाव के बीच भारत सरकार ने हाल ही में टिकटॉक व शेयरइट समेत 59 चीनी एप पर प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही उसने सरकारी विभागों और मंत्रालयों को चीन के आपूर्तिकर्ताओं के किसी सामान के चयन या खरीदारी से दूर रहने का अनौपचारिक निर्देश दिया है। चीनी एप पर प्रतिबंध और चीनी सामान के बहिष्कार जैसे कदमों से चीन बौखला गया है और उसकी चिंताएं बढ़ गई हैं।

ज्ञातव्य है कि भारत का बाजार दुनिया का चौथा सबसे चमकीला बाजार है और भारत की वर्चुअल स्ट्राइक चीन को जबर्दस्त आर्थिक आघात दे सकती है। यही कारण है कि चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाए जाने के भारत सरकार के कदम को लेकर चिंताएं भी जाहिर कीं। गौरतलब है कि देश के आम जनमानस में भी चीन के प्रति गुस्सा बढ़ रहा है और चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम जोर पकड़ रही है। वहीं सरकारी विभागों में भी चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्वदेशी उत्पादों के उपयोग की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे चीन पर आर्थिक दबाव दिखाई देना शुरू भी हो गया है।

बहरहाल चीन को आर्थिक चुनौती देने और देश की अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर व मजबूत बनाने के लिए नई आर्थिक रणनीति को अपनाना भी जरूरी है। चीन पर निर्भरता कम करने के लिए चीन से आयात किए जाने वाले उत्पादों को देश में ही उत्पादित करने के लिए प्रोत्साहन, चीन को कच्चे माल के निर्यातों पर सख्ती और उन पर उपकर लगाया जाना, अमेरिका, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड व जापान जैसे अनेक देशों में चीनी सामानों का विकल्प बनने का अवसर मुठ्ठियों में लेना, देश के उद्योगों को नए शोध से लाभान्वित करने वाले संगठनों को प्रभावी बनानाए भ्रष्टाचार तथा अकुशलता पर नियंत्रण, तकनीकी विकास और बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाते हुए आत्मनिर्भरता की डगर पर आगे बढ़ना होगा।

इस वक्त भारतीय अर्थव्यवस्था की चमकीली विशेषताएं और दूसरी ओर चीन की आर्थिक प्रतिकूलताएं भी भारत को चीन से आर्थिक मुकाबला करने में ताकत देते हुए दिखाई दे रही हैं। भले ही चीन की अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था से करीब पांच गुना बड़ी हो, लेकिन यह न भूलें कि भारतीय अर्थव्यवस्था भी दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 501 अरब डॉलर की ऐतिहासिक ऊंचाई पर दिखाई दे रहा है। इसी तरह देश में बढ़ते आर्थिक सुधारों एवं देश के मध्यम वर्ग की बढ़ती क्रयशक्ति के कारण दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत की ओर तेजी से कदम आगे बढ़ाती दिख रही हैं। इस वक्त चीन की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट है। चीन से निर्यात घट गए हैं। दुनिया भर में कोविड-19 के प्रकोप के बीच चीन के प्रति नकारात्मकता बढ़ी है। कई देशों ने चीन से आयात किए जाने वाले अनेक सामानों पर एंटी डंपिंग शुल्क लगा दिया है। हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नए फैसले के बाद अब यूरोपीय संघ भी कई उत्पादों पर एंटी डंपिंग शुल्क लगाने की तैयारी करते दिखाई दे रहा है।

ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष यानी 2019 में भी चीन से आयात घटे हैं और भारत का चीन से व्यापार घाटा भी कम हुआ है। अब चूंकि देश भर में चीन के प्रति नकारात्मक माहौल है, लिहाजा यह तय लगता है कि इस वर्ष चीन से आयात और घटेंगे। हाल ही में सी-वोटर सर्वे में 68 फीसद लोगों ने चीनी उत्पादों के बहिष्कार का मत व्यक्त किया है। देश के उद्यमियों द्वारा चीन से आयात की जाने वाली ऐसी वस्तुएं चिह्नित की जा रही हैं, जो देश के उद्योग-कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। उल्लेखनीय है कि चीन द्वारा भारत की करीब 2,800 से अधिक वस्तुओं पर नॉन-टैरिफ बैरियर लगाया गया है। इसके कारण ये वस्तुएं चीन को निर्यात करना मुश्किल है। जबकि भारत ने करीब 430 वस्तुओं के आयात पर ही नॉन-टैरिफ बैरियर लगाया है।

निस्संदेह चीन को आर्थिक टक्कर देने और भारत की अर्थव्यवस्था के मजबूत बनने की संभावना के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि कोविड.19 के बाद की नई दुनिया में आगे बढ़ने के लिए जिन बुनियादी संसाधनों, तकनीकों और विशेषज्ञताओं की जरूरतें बताई जा रही है, उनके मद्देनजर भारतीय युवा प्रोफेशनल्स तमाम क्षमताओं से लैस दिखाई दे रहे हैं। इसके अलावा हम यह भी देखें कि अनेक आर्थिक मापदंडों पर भारत अभी भी चीन से आगे है। भारत दवा निर्माण, रसायन निर्माण और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में तेजी से उभरता देश है।

फिर भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर हमें काफी काम करने की जरूरत है। चीन को आर्थिक मोर्चे पर मात देने के लिए हमें अपने उद्योग-कारोबार क्षेत्र की कमजोरियों को दूर करना होगा। सरकार द्वारा ऐसे सूक्ष्म आर्थिक सुधार करना भी लाजिमी होगा, जिससे घरेलू के अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी भारतीय उत्पाद चीनी उत्पादों को मात दे सकें। उन ढांचागत सुधारों पर जोर देना होगा, जिसमें निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति मिल सके। हमें अपनी बुनियादी संरचना में व्याप्त अकुशलता एवं भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कर अपने उत्पाद की लागत कम करनी होगी। भारतीय उद्योगों को चीनी उद्योगों के मुकाबले में खड़ा करने के लिए इन्हें नए अविष्कारों, खोज से परिचित कराने के मद्देनजर औद्योगिक शोध से संबंधित शीर्ष संस्थानों को प्रभावी और महत्वपूर्ण बनाना होगा।

हम उम्मीद करें कि सरकार ने जिस तरह टिकटॉक समेत चीन के 59 एप पर रोक के आदेश दिए हैं और सरकारी विभागों को चीनी उत्पादों की खरीदारी से दूर रहने का जो अनौपचारिक निर्देश दिया है, उससे चीन पर डिजिटल स्ट्राइक जैसा असर होगा। हमें यह भी उम्मीद है कि चीनी उत्पादों का यह बहिष्कार जनभावनाओं का महज क्षणिक आवेग बनकर नहीं रहेगा। अब पूरे देश के करोड़ों लोग चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को अपने जीवन का स्थायी भाव बनाएंगे, वहीं देश के उत्पादक चीनी उत्पादों के स्थानीय विकल्पों को विकसित करने का हरसंभव प्रयास करेंगे। हम यह भी उम्मीद करें कि केंद्र सरकार आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घोषित किए गए बुनियादी ढांचे के विकास, तकनीकी विकास और आर्थिक सुधारों के ठोस क्रियान्वयन की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी।हम उम्मीद करें कि देश की नई पीढ़ी चीन को आर्थिक चुनौती देने के लिए कोविड-19 के बाद की नई कार्य-संस्कृति का प्रभावी ढंग से नेतृत्व करेगी। निश्चित रूप से ऐसे समग्र रणनीतिक प्रयासों से जरिये उद्यमिता व आत्मनिर्भरता की डगर पर आगे बढ़कर चीन को आर्थिक मोर्चे पर मात देना संभव हो सकता है।

[अर्थशास्त्री]