[कमल किशोर सक्सेना]। उत्तर भारत में इन दिनों काफी गर्मी पड़ रही है। इतनी कि लोग बर्फ भी खरीदने जाते हैं तो दुकानदार से कहते हैं-भैया ठंडी ही देना। जाहिर है इतना ज्यादा तापक्रम किसी के भी सिर का वह हिस्सा हिला सकता है, जहां दिमाग होता है। इस गर्मी ने इस हिस्से में भी विस्फोट कर दिया है, जिसके अनेक प्रकार के साइड इफेक्ट्स सामने आ रहे हैं। वैसे तो ये साइड इफेक्ट्स तकरीबन हर क्षेत्र में दिखे हैं, किंतु राजनीति में सबसे ज्यादा। हालांकि आलोचक गण तो राजनीति को ही जिंदगी का सबसे बड़ा साइड इफेक्ट मानते हैं।

खैर, अपने देश में राजनीति-राजनीति खेलने का अच्छा और बड़ा स्टेडियम दिल्ली मानी जाती है। इसी दिल्ली के एक दिलेर नेताजी की याददाश्त ने आजकल हड़ताल कर दी है। नहीं समझे। इतिहास में एक हुए हैं अजातशत्रु। इन अजातशत्रु के दूर के रिश्तेदार हैं-बुद्धिशत्रु। इन्होंने एक नई थ्योरी खोजी है। जिसके मुताबिक पंचतत्वों से बनी इस काया का हर अंग स्वतंत्र रूप से हड़ताल करने के लिए स्वतंत्र है। अर्थात जिसे मेडिकल भाषा में कब्ज कहा जाता है, वह दरअसल एक अंग विशेष की हड़ताल होती है।

इसी थ्योरी के तहत नेताजी के साथ धोखा हो गया। उनकी याददाश्त ने उन्हें धोखा दिया तो बेचारे ये भी भूल गए कि उनके पास जो संपत्ति है, वह धोखे से उनके पास आ गई या किसी को धोखा देकर लाई गई। धोखे से आवागमन करने वाली संपत्ति का हिसाब-किताब प्रवर्तन निदेशालय रखता है। जिस प्रकार पतिव्रता महिलाएं अपने पति का नाम न लेकर उन्हें 'एजी' या 'ओजी' जैसे संबोधनों से बुलाती हैं। ठीक उसी प्रकार इसे 'ईडी' कहकर सम्मान दिया जाता है। आजकल कई सम्मानित लोग इस सम्मानित विभाग के फेरे लगा रहे हैं।

देश की वयोवृद्ध पार्टी के अधेड़ युवा नेता को भी पिछले दिनों वहां जाने का परम सौभाग्य हासिल हुआ। ये उनके या उनके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी पार्टी के लिए गर्व की बात थी। लिहाजा हजारों कार्यकर्ता सैकड़ों वाहनों और लाव लश्कर के साथ गगनभेदी नारे लगाते हुए निकल पड़े। वाकई आंखों में स्थायी रूप से बसा लेने वाला नयनाभिराम दृश्य था। ऐसा दृश्य तो पुराने रजवाड़ों की बारात में भी शायद देखने को नहीं मिलता था। बस आकाश से पुष्प वर्षा की कमी रह गई। वरना नारे रूपी मंगल गीत तो कानों में मिसरी घोल ही रहे थे।

हालांकि इस कवायद के कई अर्थ भी निकाले गए। दर्शकों के एक वर्ग के अनुसार इस तरह के जुलूसों ने उन अपराधियों को नई राह दिखाई है, जो समन मिलने पर सिर झुकाकर, छुपते-छुपाते, चोरों की तरह ईडी या पुलिस के पास पूछताछ के लिए पेश होते थे। दूसरे वर्ग के मुताबिक यदि इसे बारात माना जाए तो वर्षों से कुंवारे बैठे लोगों के लिए अच्छा अवसर है। अब तो खुद से खुद की शादी करने की मिसाल भी सामने है। ढूंढ़-ढांढ़कर कुछ अच्छे किस्म के लोग जुटाइए और नाचते-गाते जाकर खुद को डोली में बिठाकर विदा करा लाइए।

तीसरे वर्ग की प्रतिक्रिया कुछ खतरनाक थी, लेकिन उसमें भी चिर कुंवारों के लिए आशा का संदेश था। इस वर्ग का कहना था कि लाव लश्कर के साथ जाने में 'खातिरदारी' तक तो बात ठीक है। मगर उसके बाद उधर से ही 'ससुराल' भेज दिया तो पता नहीं 'गौना' कब हो? चौथे वर्ग के आशावादी लोगों ने इसे नकारात्मक सोच या विधवा प्रलाप की संज्ञा दी तो पांचवां वर्ग बिफर उठा। उसने व्याकरण को आधार बनाकर कहा, 'यहां विधवा प्रलाप हो ही नहीं सकता, क्योंकि विधवा केवल महिलाएं होती हैं। यह पुरुषों का मामला है। अत: विधुर प्रलाप तो संभव है, मगर प्रलाप के लिए विवाहित होना भी आवश्यक है। और यहां विवाह ही सबसे बड़ी समस्या है। इसलिए कोई प्रलाप नहीं बनता मी लार्ड।

गर्मी के साइड इफेक्ट्स जारी हैं। जिसमें ज्ञान की कई बातें सामने आई हैं। वैसे शास्त्रों में ज्ञान प्राप्त करने के तीन साधन बताए गए हैं- अध्ययन, प्रवचन और पर्यटन, लेकिन इधर महानायक अमिताभ बच्चन एक टीवी विज्ञापन में जोर-शोर से बता रहे हैं कि ज्ञान जहां से भी मिले, उसे प्राप्त कर लेना चाहिए। उनकी इस बात से प्रभावित होकर कुछ लोग ज्ञान की खोज में दसों दिशाओं में निकल गए और प्रशासन के नोटिस, अदालतों के समन और तशरीफ पर ज्ञान की गहरी छाप लेकर लौटे।