ब्रजबिहारी। पांच राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों में आरोप-प्रत्यारोप के गिरते स्तर के बीच कमल कांत नायक की कहानी ताजा हवा के झोंके की तरह है। जिसके भी अंदर उतर गई वह प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। 20 साल की उम्र में वालीबाल खेलते समय गिरने से रीढ़ की हड्डी में लगी चोट ने उन्हें व्हीलचेयर पर बिठा दिया। यह वर्ष 2014 की बात है। कई अस्पतालों में उन्होंने अपना इलाज करवाया, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। मन में आत्महत्या का भी विचार आया, लेकिन बड़ी बहन से मिले उत्साहवर्धन ने उन्हें न केवल जिंदगी से प्यार करना सिखाया, बल्कि कामयाबी के शिखर पर पहुंचा दिया। यही कारण है कि आज उनके नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड है। इतना ही नहीं, पिछले हफ्ते ओडिशा सरकार ने एक लाख रुपये देकर उन्हें सम्मानित किया और अगले पैरालिंपिक खेलों में भाग लेने के लिए हरसंभव सहयोग देने का आश्वासन दिया।

दरअसल, कमल कांत जैसे लोग ही प्रेरणा के असली स्रोत होते हैं। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सक्षम श्रेणी के लोग उनके संघर्ष को कभी समझ ही नहीं सकते हैं। एक क्षण की दुर्घटना से सारे सपनों का बिखर जाना क्या होता है, उसके बाद जिंदा रहने की जिद्दोजहद क्या होती है, यह कोई कमल कांत ही बता सकते हैं। जब डाक्टरों ने उन्हें अंतिम तौर पर यह कह दिया कि वे अपने पैरों पर नहीं चल सकते हैं तो उन्होंने सोचा कि परिवार पर आर्थिक बोझ बनने से बेहतर है कि इस जीवन को ही समाप्त कर लिया जाए, लेकिन इनकी दीदी ने उन्हें सहारा दिया और उन्हें व्हीलचेयर मैराथन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। अब तक वे 16 फुल मैराथन और 13 हाफ मैराथन जीत चुके हैं। वे व्हीलचेयर बास्केटबाल टीम के कप्तान भी हैं। उन्होंने 15 जनवरी को जब 213 किलोमीटर की दूरी व्हीलचेयर से तय की तो 2007 में पुर्तगाल के मारियो टिनिदाद के 182.4 किलोमीटर के 14 साल पुराने रिकार्ड को तोड़ दिया। यह एक बड़ी उपलब्धि है।

प्रेरणा के स्रोत : कमल कांत जैसे व्यक्ति के जीवन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, हार नहीं माननी चाहिए। एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खुलता है। वह मैराथन धावक बनना चाहते थे, लेकिन पैरों से लाचार होने के कारण उनके सपने टूट गए। इस कारण वह गहरे अवसाद में चले गए। ऐसे में परिवार का सहयोग बहुत अहम होता है। उनकी दीदी ने यह रोल बखूबी निभाया। व्हीलचेयर पर आने के बाद जब उन्होंने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया तो उन्हें बाहर निकालने का काम उनकी दीदी ने ही किया। पहले व्हीलचेयर रेस में वे भाग नहीं लेना चाहते थे, क्योंकि वे हारना नहीं चाहते थे, लेकिन दीदी ने कहा कि जीतने के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ सहभागिता के लिए उन्हें इसमें शामिल होना ही चाहिए। एक वह दिन था और एक आज का दिन है। उसके बाद कमल कांत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

उनकी इस उपलब्धि के बारे में जानने के बाद जिज्ञासावश जब उनके टाइटल ‘नायक’ के बारे में खोजबीन की तो पता चला कि यह कोई कुलनाम नहीं, बल्कि एक उपाधि है। यह किसी एक जाति का सूचक नहीं है, बल्कि पेशागत उपनाम है। इस उपनाम के लोग ओडिशा के अलावा बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड और ओडिशा में मिलेंगे। ओडिशा में उत्कल बाह्मणों के अलावा क्षत्रियों में भी यह उपनाम पाया जाता है। मध्य युग में राजाओं द्वारा किसी भी जाति के लोगों को नायक उपनाम दिया जाता था। वे किसी समुदाय के नेता हो सकते थे या फिर किसी मंदिर के पुजारी या फिर युद्ध में असाधारण क्षमता के साथ नेतृत्व करने वाले वीर सैनिक।

हजारों साल पुरानी यह व्यवस्था पहले मुगलों के हमलों और फिर अंग्रेजों के शासन के दौरान ध्वस्त हुई। सनातन जीवन शैली और परंपरा को हिंदू धर्म का नाम दे दिया गया। यह उन धर्मो और उनके द्वारा पोषित विदेशी शासकों द्वारा किया गया जिनके 56 फिरके और सैकड़ों चर्च हैं। मस्जिदों और चर्चो के सताए लोगों को दुनिया में हमने ही सबसे पहले शरण दी। दुनिया के सबसे पुराने चर्चो में से एक भारत में ही है। हम सबका सम्मान करते हैं, लेकिन इसका गलत मतलब लगाया गया और हमें कमजोर समझा गया। अब उनके द्वारा फैलाए गए झूठ की एक-एक कर विदाई हो रही है, इसलिए कमल कांत जैसे हवा के झोंके आते रहेंगे। देखना यह है कि भारत के हर उपनाम को जाति से जोड़कर देखने वालों की आंखें कब खुलती हैं।