[ सूर्यकुमार पांडेय ]: अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य अस्वस्थ चल रहे थे। उन्हेंं कोरोना हो गया था। उन दिनों अश्वत्थामा हस्तिनापुर से बाहर था। संक्रमण के चलते कोई द्रोणाचार्य के समीप जाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। अपने अध्यापन काल में आचार्य द्रोण ने न जाने कितने शिष्यों को पढ़ाया होगा। सबने उनसे दूरी बना ली थी। नए-पुराने शिष्य, सभी दूर-दूर थे। अर्जुन और भीम ने तो उन्हीं के अंडर में पीएचडी कर रखी थी, पर यह समाचार सुनने के बाद कि गुरुदेव कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं, दोनों ने अपने मोबाइल स्विच ऑफ कर लिए और अज्ञातवास में चले गए। द्रोण अपने शिष्यों की याद करने लगे।

दुर्दिन में द्रोण का साथ देने वाला कोई नहीं था

उन्हेंं जब एकलव्य का ख्याल आया तो उसकी नाराजगी भी समझ में आई, क्योंकि ऑनलाइन क्लास के बदले गुरु द्रोण ने उससे साल भर की रेगुलर क्लास वाली फीस मांग ली थी और न दे पाने की स्थिति में एक कोरे कागज पर उसका अंगूठा लगवा लिया था। ऐसे दुर्दिन में द्रोण का वह अत्यंत प्रिय शिष्य दुर्योधन, जिसकी अयोग्यता के बावजूद आचार्य उसे उत्तीर्ण करते रहे और स्वर्ण पदक दिलवाया था, भी खोज-खबर लेने नहीं आया। हालांकि उसको पहले ही सूचना मिल चुकी थी। द्रोण अकेले पड़ गए थे। वह अपने सब शिष्यों को कोसने लगे, क्योंकि कोई दूध लाकर देने वाला तक उपलब्ध नहीं था। घोर विवशता थी। द्रोणाचार्य पथ्य के नाम पर आटे का घोल बनाकर और उसमें हल्दी मिलाकर पीने के लिए अभिशप्त थे।

कोरोना ग्रस्त गुरु द्रोण से मिलने पहुंचे युधिष्ठिर पीपीई किट पहनकर 

गुरु द्रोण के कोरोना ग्रस्त होने का समाचार युधिष्ठिर ने भी सुना। वह भी आचार्य द्रोण के शिष्य थे, लेकिन दुर्योधन की पक्षधरता के चलते आचार्य द्रोण से मन ही मन कुपित रहा करते थे। उनको लगा, इस आपदा काल में यही सही अवसर है, जब वह आचार्य के ज्ञान की हेकड़ी निकाल सकते हैं। युधिष्ठिर पीपीई किट पहन कर द्रोण के घर गए। पहले तो गुरु द्रोण डर गए, लेकिन फिर यह सोचकर आश्वस्त हुए तो चलो कोई तो आया इस कठिन समय में। द्रोण को अपने शिष्यों से पैर छुआने की आदत थी। जो शिष्य पैर छूने से बचता या हिचकता उससे वह जरूर पैर छुआते। युधिष्ठिर ने दूर से ही हाथ जोड़ते हुए कहा, क्षमा करें आचार्य। इस संक्रमण के दौर में आपका पैर छूना अधर्म है। द्रोणाचार्य को अच्छा तो नहीं लगा, फिर भी कोई उनके यहां झांकने तक नहीं आ रहा था, इस कारण युधिष्ठिर को देखकर वह प्रसन्न हो गए।

युधिष्ठिर ने कहा- आचार्य आपने दो गज दूरी, मास्क जरूरी वाले नियम का अनुपालन करने में चूक की है

युधिष्ठिर ने कहा, आचार्य, आप तो ज्ञानी व्यक्ति कहे जाते हैं। आपने अवश्य दो गज दूरी, मास्क जरूरी वाले नियम का अनुपालन करने में चूक की है! द्रोणाचार्य उस समय भी मास्क पहने हुए थे। वह मास्क के आवरण के पीछे से क्रोधित होते हुए बोले, तुम साक्षात देख रहे हो कि मैं इस समय भी मास्क धारण किए हुए हूं, फिर भी मुझसे ऐसा मूर्खतापूर्ण प्रश्न कर रहे हो! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह प्रश्न करने की? वह कहने ही वाले थे कि जाओ, दफा हो जाओ, फिर यह सोचकर चुप हो गए कि यह भी चला गया तो फिर कौन आएगा?

युधिष्ठिर हंसते हुए बोले, जो गलती आपने द्वापर युग में की थी , वही गलती आपने इस युग में भी दोहराई

गुरुदेव को चुप देखकर युधिष्ठिर बोले, यह तो आधी बात हुई गुरुदेव। फिर आपने दो गज की दूरी नहीं रखी होगी! मैं सभी से नापकर दो गज की दूरी रखा करता था। आचार्य ने चिढ़ते हुए कहा। युधिष्ठिर जैसे इसी अवसर की तलाश में थे। बोले, गुरुदेव, दो गज में कितने फुट होते हैं? युधिष्ठिर, तुम्हें क्या मेरे ज्ञान पर अविश्वास है? कैसी बातें कर रहे हो? क्या तुम्हारा मस्तिष्क फिर गया है? दो गज में छह फुट हुआ करते हैं। युधिष्ठिर हंसते हुए बोले, जो गलती आपने द्वापर युग में की थी कि नर और कुंजर में भेद नहीं कर पाए थे, वही गलती आपने इस युग में भी दोहराई है।

युधिष्ठिर ने कहा, गज का एक अर्थ हाथी भी होता है 

यह सुनकर द्रोणाचार्य का ताप और भी बढ़ गया। उन्होंने झुंझलाते हुए कहा, तुम मुझे समझाना क्या चाहते हो? मुझे अज्ञानी समझते हो! कदापि नहीं आचार्य! युधिष्ठिर ने कहा, गज का एक अर्थ हाथी भी होता है। दो गज की दूरी का तात्पर्य दो हाथियों के बराबर की दूरी से है। यह सुनकर आचार्य द्रोण अतिशय लज्जित हो उठे- इतना अधिक कि वह मूर्छित हो गए। युधिष्ठिर चेहरे पर विजयी मुस्कान लेकर यह समाचार देने के लिए अश्वत्थामा को मोबाइल लगाने में जुट गए।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]