[ गोपालकृष्ण गांधी ]: संसद नर है, किंतु लोकसभा और राज्यसभा नारी। क्यों, कैसे? क्योंकि सभा नारी है। हिंदी में पुल्लिंग-स्त्रीलिंग का बंटवारा क्यों, कैसे, किस तर्क से कोई नहीं जानता। मेज पुल्लिंग, कुर्सी स्त्रीलिंग आदि। मगर रूप-रेखा स्त्रीलिंग क्यों? खुदा जाने। तो फिर लोकसभा जो बनेगी कुछ हफ्तों में, उसकी रूपरेखा के बारे में मेरा एक सपना है। बिंदुओं में उसका वर्णन देता हूं।

-अगली लोकसभा के सदस्यों में 50 प्रतिशत महिलाएं हों। पाठक मुझे पूछ सकते हैं। क्या कह रहे हैं आप। जब 33 प्रतिशत नहीं हो पा रहे हैं तब आप 50 की बात कर रहे हैं! किस दुनिया में हैं आप? आदर्शों को छोड़िए, हकीकत को देखिए। तो मैं कहूंगा, मैं हकीकत की बात कर रहा हूं। मैं कुदरत की दुनिया में रहता हूं। जब प्रकृति में 50 प्रतिशत पुरुष और 50 प्रतिशत स्त्री हैं तो राजनीति में क्यों नहीं हों? क्या राजनीति प्रकृति से अलहदा है? जन्म के लिए मां चाहिए और बाप, दोनों। कानूनों के जन्म के लिए भी मां चाहिए और बाप, दोनों। एक से बल मिले, दूसरे से बल भी और करुणा भी। आपके ख्यालों में हो या न हो, मेरे सपनों की लोकसभा के सदस्यों में आधे पुरुष हों और आधी स्त्रियां हों।

-अगली लोकसभा संविधान में एक संशोधन लाए जिससे नए नॉमिनेशन की व्यवस्था बने। संदर्भ दिए देता हूं, सिद्धांत भी। हमारे संविधान ने लोकसभा में दो एंग्लो इंडियन सदस्यों के नॉमिनेशन की व्यवस्था की है। इस व्यवस्था के पीछे सोच यह है कि एंग्लो इंडियन समुदाय की संख्या इतनी कम और फैलाव इतना दुर्बल है कि उस समुदाय से सामान्य तरीके से कोई चुनाव जीत नहीं सकेगा और उस समुदाय का प्रतिनिधित्व न हो, यह ठीक नहीं। सही सोच है। वैसे ही एक और समुदाय भी है जिसके लिए यही बात कही जा सकती है। ट्रांसजेंडर्स के लिए भी दो नहीं तो एक नॉमिनेटेड सीट होनी चाहिए।

-अगली लोकसभा में गरीब एमपी माशाल्लाह कोई नहीं होगा। कैसे हो? गरीब इंसान चुनाव कैसे लड़े? फिर भी खुशी की बात है कि पिछली लोकसभाओं के जैसे अगली लोकसभा में भी कोई गरीब न होगा, लेकिन गरीबों के एमपी कई हों। उनकी पीड़ा को समझने वाले, उनकी आबरू, उनकी आरजू को पहचानने वाले। अगली लोकसभा में नि:संदेह अमीर एमपी कई होंगे। सुभानअल्लााह। तो फिर मेरे सपनों की अगली लोकसभा में ऐसा इंतजाम हो कि वह एमपी जिसकी घोषित संपत्ति 10 करोड़ रुपये से ऊपर है वह एमपी की तनख्वाह नहीं ले। न ही बाद में एमपी की पेंशन। हां, बाकी सुविधाएं जैसे कि रहने का निवास, नि:शुल्क असीमित एयर-रेल यात्रा, सचिव, एमपीलैड्स निधि वह सब रहे। यह रूल न हो, सिर्फ एक नया समझौता, नई प्रथा हो। इससे जनता में एमपी के लिए इज्जत बढ़ेगी, एतबार बढ़ेगा।

-अगली लोकसभा में एक भी हिस्ट्रीशीटर न हो। कोई दबंग नहीं, न ही कोई मुस्टंड। न कोई किसी को डराए, न कोई किसी से डरे। सिर्फ अपने जमीर से और संविधान की आत्मा से डरे।

-अगली लोकसभा में कोई भी एमपी सवाल के बदले नोट के जुर्म को जगह न दे, न किसी लॉबी के प्रभाव में आए। अगली लोकसभा जल्द से जल्द लोकपाल का निर्माण करे और वह लोकपाल ऐसा हो जिसका नाम सुनते ही हिंद की आवाम कहे- वाह, क्या बात है!

-अगली लोकसभा की सदारत जो भी करे वह अपने दल से तुरंत हटकर निर्दलीय ही नहीं, सर्वथा निष्पक्ष पेश हो। उस आसन में जो भी विराजे, वह संपूर्ण लोकसभा के विश्वास का पात्र और उसकी साफ सिफत का स्वरूप हो। उस व्यक्ति केपिछले सारे रुझान, झुकाव, लगाव उस क्षण लुप्त हो जाएं, जिस क्षण वह अध्यक्ष या अध्यक्षा बने। इंशाअल्लाह!

-अगली लोकसभा में दलितों का प्रतिनिधित्व दलित एमपी लोग जरूर करें, गैर-दलित एमपी लोग भी वही करें, उसी जोश के साथ, उसी उत्साह से, उसी गंभीरता से। दलितों पर अत्याचार कम होते जाएं, यह प्रार्थना है, लेकिन जब भी (न करे नारायण, खुदा न खास्ता) किसी अत्याचार की खबर आए तब गैर-दलित एमपी दलित एमपी से पीछे नहीं, उनसे भी पहले उस अन्याय के मुद्दे को उठाएं। अगली लोकसभा यही करे अल्पसंख्यक सुरक्षा के लिए भी। जब भी कोई अल्पसंख्यक व्यक्ति पीड़ित हो तो वह पीड़ा सारे भारतवासियों की पीड़ा हो, क्योंकि कहीं न कहीं हम सब अल्पसंख्यक हैं, मजहब के मारे, रूढ़ियों के मारे, भाषाई अल्पसंख्यक, प्रांतीय, वर्गीय, वैचारिक, आचरिक अल्पसंख्यक...।

-अगली लोकसभा के उत्तर भारतीय एमपी हमारे दक्षिण के बारे में कुछ गहरी जानकारी हासिल करें और दक्षिण के एमपी उत्तर के बारे में और दोनों हमारे पूर्वोत्तर के बारे में और हमारे द्वीप-भारत के बारे में यानी अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप समूह। हर एमपी का अपना निर्वाचन क्षेत्र होता है, लेकिन हर एमपी समस्त भारत के लोगों का प्रतिनिधि होता है न कि सिर्फ उनका, जिनके वोट उसे हासिल हुए हैं।

-अगली लोकसभा में क्लाइमेट चेंज पर एमपी लोग विचार करें। दुनिया के मौसम के बदलाव से कैसे निपटा जाए, हम भारत में क्या करें? यह विषय गंभीर है। सामने हमारे अकाल खड़ा है। ठीक बरसात नहीं हुई है। किसानों की समस्या पर विशेष अधिवेशन हो।

-अगली लोकसभा में वाद हो, विवाद हो, गर्मी हो, गुस्सा भी, लेकिन अपशब्द न सुनने को आएं, न ही चुभने वाला कटाक्ष, व्यंग्योक्ति, परिहास, ताने। हंसी खूब हो, ठहाके हंसी, लेकिन अपने ऊपर, दूसरों पर नहीं। मखौल किया जाए, पर अपना, खुद का, न कि दूसरे का। लोकसभा में चरित्र हनन न हो, न ही किसी पर पर्सनल अटैक हो। जब कोई तर्क नहीं होता तब व्यक्ति के व्यक्तित्व पर प्रहार होता है। बहुत गाली-गलौज सुन चुकी है हिंद की जनता राजनीति में। उसे अब रुखसत चाहिए इस कड़वे तर्जुबे से।

-अगली लोकसभा का एक दिन भी शोरगुल से, अशोभनीय दृश्यों से नष्ट न हो। उसे स्थगित न करना पड़े, शोरगुल, अव्यवस्था की वजह से। हम भारत के लोग अपने प्रतिनिधियों को हल्ला-गुल्ला करने के लिए नहीं, देश की समस्याओं पर विचार करने के लिए चुनते हैं। इस मामले में सरकार पर बड़ा जिम्मा पड़ता है। अगर सरकार संवेदनशील नहीं होती, अगर वह विपक्ष को सम्मान नहीं देती तो विपक्ष उत्तेजित हो जाता है। जवाहरलाल नेहरू को तब के विपक्षी नेता और साम्यवादी विद्वान आचार्य हीरेन मुखर्जी ने एक अनमोल संज्ञा दी थी- जवाहरलाल नेहरू इज लीडर ऑफ द हाउस एंड लीडर ऑफ अपोजिशन रोल्ड इनटू वन।

-अगली लोकसभा में कोई बाहुबली जैसा दिखने की जुर्रत न करे। सब अपनी निष्ठा से, अपने इल्म और हुनर और अपने ईमान से तोले जाएं। अगली लोकसभा आलोक सभा हो। वह रोशन हो, दीप्यमान हो।

क्या उम्मीद लगाई है, आपने! पाठक कह सकते हैं, निराश होंगे! शायद, लेकिन अधिकार है सपनों का हमें। जागृति फिल्म में रतन कुमार गा गए हैैं- चलो चलें मां, कांटों से दूर कहीं, फूलों की छांव में...। तो मैं भारत मां से यही कह रहा हूं। कोई टोके न मुझे, रोके न मुझे। अपना सपना है यह मेरा, सपना अपना है मेरा।

( वर्तमान में अध्यापन में रत लेखक पूर्व राजनयिक एवं राज्यपाल हैंं )