[ दुर्गा शंकर मिश्र ]: हमारी संसद देश के जनतांत्रिक मूल्यों की उम्दा अभिव्यक्ति है। इसमें जनता के प्रतिनिधि राष्ट्रीय विधायिका के रूप में संघ की सांविधिक शक्तियों का उपयोग करते हैं। इसका हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। प्रजातंत्र के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए भारत के लोगों के लिए यह एक आस्था और विश्वास का मंदिर है। भारत वर्ष 2022 में अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा। यह विश्व के सर्वाधिक जीवंत लोकतंत्र में अग्रणी होने की ऐतिहासिक उपलब्धि है। इस अवसर को चिरस्मरणीय बनाने के लिए भारतीयों द्वारा राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में पहली बार लोक संसद का निर्माण किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज इसकी आधारशिला रखने जा रहे हैं। यह नया संसद भवन भारतीय जनतंत्र के विकास को दर्शाने के साथ भारत की आकांक्षाओं को भी प्रतिबिंबित करेगा।

हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन भारत के समय से हैं

वास्तव में हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन भारत के समय से हैं। ये इस उपमहाद्वीप में कई राजवंशों के शासनकाल में शताब्दियों से निर्बाध रूप से विकसित हुई हैं। मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत सशक्त स्थानीय शासकीय निकायों सहित वैदिक काल की जन आधारित सभाओं और समितियों ने हमें लोकतांत्रिक मूल्यों का मूलभूत आधार उपलब्ध कराया है। हालांकि सल्तनत और मुगल युग की छह शताब्दियों और तत्पश्चात ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने भारतीय लोकतंत्र को बहुत कमजोर बना दिया, लेकिन स्वतंत्रता के बाद जनतांत्रिक आदर्शों का शासन के मूलभूत सिद्धांत के रूप में पुन: एकीकरण हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व का महत्वपूर्ण कदम रहा है। इस दौरान पराधीनता के काल में बने वर्तमान संसद भवन ने हमारे लोकतंत्र को आधारभूत सुविधा उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

संसद भवन के संबंध में पहला सवाल 1912 में ब्रिटेन की संसद में उठाया गया था

संसद भवन के संबंध में पहला सवाल वर्ष 1912 में ब्रिटेन की संसद में उठाया गया था। इसमें राजधानी दिल्ली में विधान परिषद स्थापित करने के लिए अलग भवन का निर्माण करने की व्यवस्था करने के बारे में पूछा गया था। वर्तमान संसद परिसर का उद्घाटन वर्ष 1927 में हुआ था, जिसके तीन हॉल थे-चेंबर ऑफ प्रिंसेस, स्टेट काउंसिल और सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली, जो स्वतंत्रता के पश्चात क्रमश: लाइब्रेरी हॉल, राज्यसभा और लोकसभा के रूप में प्रयोग हो रहे हैं। बढ़ी हुई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वर्ष 1956 में इसमें दो अतिरिक्त तल जोड़े गए।

नए संसद भवन की स्थापना भारतीय लोकतंत्र की ऐतिहासिक पहल

वर्तमान संसद भवन एक औपनिवेशिक शाही निर्माण है, जिससे भारत ने सफल लोक आधारित जनतंत्र के सात से अधिक दशकों में प्रगति की है। अब जैसे-जैसे राष्ट्र वर्ष 2022 में स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे 130 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए नए लोक संसद के निर्माण की योजना राष्ट्र के समृद्ध इतिहास में स्थायी स्मारक के रूप में उभर कर आ रही है। इस भवन की स्थापना भारतीय लोकतंत्र की ऐसी ऐतिहासिक पहल है, जो राष्ट्र की जनता द्वारा, जनता का और जनता के लिए वाले सिद्धांत का अनुपालन करते हुए समृद्ध सांस्कृतिक विविधता को अक्षुण्ण बनाएगी।

ऑस्ट्रेलिया ने स्वतंत्रता के 87 वर्षों के बाद केनबरा में नए लोक संसद भवन का अनावरण किया

विश्व इतिहास में ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जहां औपनिवेशिक व्यवस्था से स्वतंत्र होकर कई देशों ने ऐसे कार्य किए हैं। वर्ष 1776 में स्वतंत्रता के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में आजादी के 25 वर्षों के अंदर राजधानी भवन का निर्माण करके वर्ष 1800 में संयुक्त राज्य कांग्रेस का पहला सत्र आयोजित किया गया। ऑस्ट्रेलिया में वर्ष 1901 में स्वतंत्रता के 87 वर्षों के बाद देश की राजधानी केनबरा में एक नए लोक संसद भवन का अनावरण किया गया, जो वहां के नागरिकों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। ब्राजील में स्वतंत्रता के लगभग 70 वर्षों के बाद 1960 में राष्ट्रीय कांगे्रस भवन का निर्माण किया गया। इन परिवर्तनकारी कार्यों ने विश्व के तीन बड़े लोकतंत्रोंं के विकास क्रम में अहम भूमिका निभाई।

नया संसद भवन भारतीय लोकतंत्र के लिए एक प्रतीक का कार्य करेगा

ऐसे में भारत के लोगों को प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में राष्ट्र का गौरव और उत्साह बढ़ाने के लिए स्वतंत्रता के बाद पहली बार अपने लोक संसद भवन के निर्माण के लिए एक साथ खड़ा होना चाहिए। नया संसद भवन भारतीय लोकतंत्र के लिए न केवल एक प्रतीक का कार्य करेगा, बल्कि यह भी इंगित करेगा कि कैसे देश ने अत्याधुनिक भवन निर्माण की दिशा में प्रगति की है। यह नए भारत का प्रतिरूप होने से साथ-साथ नए भारत के विजन का एक अहम अंग भी होगा। इसमें वर्ष 2022 में संसद के शीतकालीन सत्र का आयोजन किया जाएगा।

त्रिकोणीय आकार का नया भवन भारतीय मूल्यों और संस्कृति की अनूठी विविधताओं से ओत-प्रोत होगी

संसद परिसर में वर्तमान संसद भवन और त्रिकोणीय आकार का नया भवन आपस में जुड़े होंगे, जिसमें राष्ट्रीय विधायिका का प्रभावी संचालन हो सकेगा। यह भारतीय लोकतंत्र की बढ़ती हुए क्षमता को प्रदर्शित करेगा। नई संसद का डिजाइन और इसकी आंतरिक सज्जा भारतीय मूल्यों और क्षेत्रीय कलाओं, शिल्पों और संस्कृति की अनूठी विविधताओं से ओत-प्रोत होगी। इसका लोकसभा सदन मौजूदा लोकसभा से तीन गुना बड़ा होगा। लोकसभा और राज्यसभा में संसद सदस्यों के लिए उच्च स्तर की सुरक्षा के साथ-साथ उत्तम गुणवत्ता वाली ध्वनि, दृश्य-श्रव्य सुविधाएं तथा सुरक्षित आपातकालीन निकासी की व्यवस्था होगी। इस भवन का आसानी से रख-रखाव और संचालन भी किया जा सकेगा।

नए संसद भवन में प्रत्येक सांसद के लिए अलग-अलग चैंबर होंगे

वर्ष 2024 तक प्रत्येक संसद सदस्य के लिए अलग-अलग चैंबर भी बनाया जाएगा। इसमें प्रत्येक सांसद को संसद परिसर में अपने कार्यालय के लिए पर्याप्त जगह होगी, जिससे वे सम्मानजनक तरीके से अपने निर्वाचन क्षेत्र के व्यक्ति या अन्य से मिलकर चर्चा कर सकेंगे। इनके अतिरिक्त सांसदों के लिए चेंबर, संसद एनेक्सी और पुस्तकालय भवन को मिलाकर एक लेजिस्लेटिव एन्क्लेव बनेगा, जो हमारे लोकतंत्र के आधुनिक कॉलेजियम के रूप में प्रतिष्ठित होगा। कुल मिलाकर सेंट्रल विस्टा की विरासत का संरक्षण करते हुए नया संसद भवन नए भारत की भावी मांगों का समाधान करेगा।

( लेखक केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय में सचिव हैं )