नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल] गुरुवार को दिल्ली एनसीआर में कमर्शियल वाहनों की हड़ताल ने जनजीवन को ठप कर दिया। हाल ही में लागू मोटर वाहन संशोधन कानून, 2019 में कई गुना बढ़े जुर्माने, बढ़ी बीमा राशि के अलावा आरएफआइडी टैग (रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटीफिकेशन डिवाइस) की अनिवार्यता जैसे प्रावधानों के विरोध में ये हड़ताल हुई। नए कानून को लेकर दो तरह के विचार सामने आ रहे हैं। ज्यादातर विशेषज्ञ सड़क इस्तेमाल की संस्कृति विकसित करने की दिशा में इसे जरूरी बता रहे हैं, लेकिन कुछ लोग इसे बहुत कारगर नहीं मान रहे हैं।

बुनियादी सवाल तो यह है कि देश में यातायात और यातायात जनित अव्यवस्थाओं को पहले दुरुस्त करने की दरकार है या लोगों से भारी टैक्स, जुर्माना वसूलकर देश में यातायात अनुकूल संस्कृति विकसित करने की अनिवार्यता। शहरों की स्थिति तब भी कुछ ठीक है, ग्रामीण इलाकों में 20 किमी दूर जिला मुख्यालय तक पहुंचने में किसी का भी आधा दिन आसानी से खर्च हो जाता है। दरअसल जागरूकता और संस्कृति विकसित करने के लिए 'सख्ती' के साथ 'भक्ति' भी जरूरी है। सख्ती से लोग विवशता में भले कुछ समय के लिए मौके के अनुसार सलीकेदार बन जाएं लेकिन वहां से हटते ही उनके उच्छृंखल होने की पूरी आशंका रहती है। ऐसे में नए मोटर वाहन कानून से देश में सड़क दुर्घटनाओं में लग सकने वाली लगाम और सड़क पर चलने की संस्कृति विकसित होने की संभावना की पड़ताल आज बड़ा मुद्दा है।

मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019

अर्थदंड में प्रभावी इजाफा

सौ रुपये का न्यूनतम जुर्माना अब पांच सौ हो चुका है। बिना लाइसेंस के वाहन चलाने पर अर्थदंड पांच सौ से पांच हजार हो चुका है। सीट बेल्ट न बांधने का जुर्माना सौ रुपये से बढ़कर एक हजार हो चुका है। शराब पीकर गाड़ी चलाने पर दो हजार की जगह 10 हजार रुपये चुकाने होंगे। आपातकालीन वाहनों से एंबुलेंस आदि को पास न देने पर दस हजार जुर्माना देना पड़ सकता है।

भलाई करने वालों की सुरक्षा

सड़क दुर्घटना के समय मददगार के लिए बेहतर प्रावधान हैं। पहले नियम-कानूनों के फेर में पड़ने के चलते लोग जरूरतमंदों की मदद को आगे नहीं आते थे, लिहाजा दुर्घटना के तुरंत बाद के गोल्डेन ऑवर में उनकी मदद नहीं हो पाती थी।

तय हुई जवाबदेही

सड़क संरचना में खामी के चलते हो रही दुर्घटनाओं के मामले में ठेकेदार या निर्माण करने वाली संस्था पर मुकदमा चलेगा। किशोर वाहन चालक द्वारा दुर्घटना करने की स्थिति में अभिभावक या गाड़ी मालिक जिम्मेदार होंगे। गाड़ी में खराबी की बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं या टेस्टिंग एजेंसी द्वारा शिकायत मिलने पर केंद्र सरकार कंपनी को वाहनों की वापसी का निर्देश दे सकेगी। 

मुआवजा और इंश्योरेंस कवरेज

हिट एंड रन के मौत मामले में मुआवजा 25 हजार से बढ़ाकर दो लाख किया गया है। घायल होने पर मुआवजा 12500 से बढ़ाकर

50 हजार हुआ है। सड़क पर चलने वाले सभी लोगों को अनिवार्य रूप से इंश्योरेंस कवर और सड़क दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए केंद्र सरकार के स्तर पर एक मोटर वाहन दुर्घटना कोष गठित होगा।

लाइसेंस का पात्र

ड्राइविंग स्कूल के प्रमाणपत्र धारक लाइसेंस के पात्र हैं।

बदल रही है संस्कृति

मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 (एमवीएए) का मकसद देश में सुरक्षित यातायात सुनिश्चित करना है। इसके लिएनियमों का उल्लंघन करने वाले के लिए कई गुना सख्त प्रावधान किए गए हैं। इस कानून का असर जानने के लिए सड़क सुरक्षा के लिए काम कर रही सेव लाइफ फाउंडेशन ने एक अध्ययन कराया। इस अध्ययन में कानून लागू होने से पहले और कानून लागू होने के बाद वाहन चालकों के आचार, विचार और व्यवहार में आए बदलाव का तुलनात्मक अध्ययन किया गया। यह अध्ययन दिल्ली के बुराड़ी, भलस्वा और मुकुंदपुर चौक में तथा महाराष्ट्र के मुंबई पुणे एक्सप्रेस वे और ओल्ड मुंबई पुणे एक्सप्रेस वे पर किया गया। इस अध्ययन में बसों, ट्रकों, दोपहिया वाहनों के साथ हल्के वाहनों को शामिल किया गया। नतीजे बहुत सकारात्मक रहे।

इसलिए राज्य बदलाव में सक्षम

केंद्र द्वारा मोटर वाहन संशोधित कानून 2019 लागू किए जाने के बाद कई राज्यों ने इसे मूल स्वरूप में लागू करने में विवशता जाहिर की। गुजरात की शुरुआत के बाद भाजपा शासित और गैर भाजपा शासित राज्यों की लाइन लग गई। ऐसे में लोगों के जेहन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या केंद्र के किसी कानून में राज्य अपने स्तर से बदलाव कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विराग गुप्ता के अनुसार सड़क यातायात समवर्ती सूची में आता है। लिहाजा इस पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। इस पूरे मामले के तीन आयाम हो सकते हैं।


1. अगर राज्य सरकार चाहें तो एक अधिसूचना जारी करके नये मोटर वाहन (संशोधन) कानून लागू कर सकते हैं और वहां की पुलिस चालान करने में सक्षम होगी

2. अगर राज्य सहमत नहीं हैं तो उन्हें अपना कानून बनाना पड़ेगा। इस कानून की राष्ट्रपति से सहमति लेनी होगी। जब तक कानून नहीं बनेगा तब तक चालान केंद्र के कानून के तहत कटेंगे और उसे अदालती प्रक्रिया द्वारा वसूला जाएगा।

3. जिन भी राज्य केमुख्यमंत्रियों, यातायात मंत्रियों द्वारा मनमाने तौर से जुर्माना केंद्र द्वारा तय राशि से कम वसूला जा रहा है, वह संवैधानिक अराजकता है।