अमित शर्मा। पिछले दिनों पंजाब पुलिस की आधिकारिक फेसबुक आइडी से लाइव होकर पुलिस महानिदेशक दिनकर गुप्ता ड्रोन के जरिये पाकिस्तान से भारत में नशे और हथियारों की डिलीवरी मॉड्यूल का खुलासा कर रहे थे। उसी समय एक फेसबुक यूजर ने कमेंट सेक्शन में ऐसी घटनाओं के दोहराव पर कटाक्ष करते हुए लिखा ‘‘इसे कहते हैं पंजाब पुलिस के ‘डंडे’ पर ‘माउस’ का भारी पड़ना।’’

बेशक इस शख्स ने ऐसा कमेंट चुटकी लेने के लिए किया हो, लेकिन इस कटाक्ष के मायने इसी में मौजूं है कि भारत-पाकिस्तान सीमा पर आधुनिक टेक्नोलॉजी के बल पर अपराधों के बदलते स्वरूपों की वजह से पंजाब पुलिस के सामने न सिर्फ चुनौतियां बढ़ी हैं, बल्कि आज सख्त जरूरत है ‘डंडे’ के बल पर देश भर में अपनी धौंस दिखा चुकी धाकड़ पंजाब पुलिस को आधुनिक तकनीक से लैस किए जाने की। आधुनिकीकरण के नाम पर वायरलेस या बुलेट प्रूफ गाड़ियां खरीदने तक सीमित रहने वाली पंजाब पुलिस की नशे से जुड़े आतंकवादी तंत्र की जांच करने की क्षमता सीमित है।

इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहां पिछले साल तक केवल पाकिस्तान साइड से भारतीय सीमा में ड्रोन आ रहे थे तो अबकी बार बीते हफ्ते नशे की खेप लाने के लिए भारत की ओर से लगातार पाकिस्तान सीमा में ड्रोन भेजे जाने के सनसनीखेज मामले सामने आ गए। पुलिस महानिदेशक गुप्ता के अनुसार भारतीय सीमा पर स्थित तरनतारन जिले के एक गांव से यह ड्रोन एक या दो बार नहीं, बल्कि पांच बार अपनी उड़ान भर कर पाकिस्तान से नशा, जाली करेंसी और हथियार इस पार ला चुका था।

अच्छी बात है कि मुस्तैद पंजाब पुलिस ने इस नेटवर्क के कुछ सदस्यों को गिरफ्तार कर मॉड्यूल का पता लगा लिया और डीजीपी ने ऐसी बढ़ती चुनौतियों से निपटने को लेकर प्रतिबद्धता और कार्ययोजना का खाका भी पेश किया, लेकिन यक्ष प्रश्न है कि क्या जब ऐसी पहली घटना पांच अगस्त 2019 को सामने आई और उसके बाद सितंबर के दौरान पाकिस्तान की ओर से ड्रोन के जरिये भारत में हथियार गिराए गए थे तो उसके बाद सूबे की पुलिस ने इस ‘टेक्नोलॉजिकल वॉर’ से निपटने और फील्ड अफसरों को सक्षम बनाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए?

इस नई चुनौती लिए क्या बॉर्डर जिलों में तैनात पुलिस दस्तों को आधुनिक बनाने की विशेष रूपरेखा तैयार की गई। शायद नहीं! नतीजतन विध्वंसक गतिविधियों के लिए एक वर्ष पहले तक जिस नशे और हथियारों की खेप की उड़ान बॉर्डर पार पाकिस्तान में एक ‘माउस’ क्लिक से संचालित हो रही थी, वह आठ महीनों के अंतराल में भारतीय सीमा से सटे पंजाब के फिरोजपुर, अमृतसर और तरनतारन जिलों से ही संचालित होने लगी।

यह विडंबना ही है कि आधुनिकीकरण के नाम पर पंजाब पुलिस में कई वर्षो से एक मॉडर्नाइजेशन विंग तो चल रहा है, जिसे डीजीपी रैंक के अधिकारी ही हेड करते हैं, लेकिन बदलते परिवेश में सूबे की पुलिस में आधुनिक प्रौद्योगिकीय एवं वैज्ञानिक उपकरणों की कमी पूरी करने का आज तक कभी कोई ठोस ड्राफ्ट नहीं बन पाया है। और अगर कभी बना भी है तो या तो वह बहुचर्चित वायरलेस स्कैम जैसे घोटालों की भेंट चढ़ गया या हमेशा की तरह आला अफसरों की आपसी राजनीति का शिकार बन फाइलों में ही दब कर रह गया है।

लगातार बदलते आपराधिक परिवेश में आधुनिक टेक्नोलॉजी से दूर अपने ‘डंडे’ के ही बल पर आगे बढ़ने का दम भरने वाली पंजाब पुलिस के लिए यह चुनौतियां केवल भारत-पाकिस्तान सीमा पर ड्रग्स तस्करों या आतंकियों द्वारा ही नहीं पेश आ रही हैं। एक तरह से टेक्नोलॉजी से लैस हर अपराधी के आगे सूबे की पुलिस घुटने टेकती नजर आती है।

अब बात चाहे विदेश में बैठे गर्मख्यालियों द्वारा सोशल मीडिया पर रेफरेंडम-2020 जैसे पंजाब विरोधी एजेंडा चलाने की हो या फिर प्रदेश में लगातार बढ़ रहे ऑनलाइन ठगी के मामलों की, इनकी जांच को लेकर पंजाब पुलिस अपने को ठगा सा ही महसूस करती आई है। और अब रही सही कसर पंजाब के हर शहर में बेखौफ फैलते ड्रैगन डोर के खेल ने पूरी कर दी है। जहां अपनी आपराधिक गतिविधियों को टेक्नोलॉजी के माध्यम से गैंगस्टर्स और अन्य अपराधी एक नए चुनौतीपूर्ण स्तर पर ले जा चुके हैं वहीं प्रदेश की साइबर पुलिस भी अधिकतर मामलों में अभी तक फिसड्डी ही साबित हुई है। यानी वास्तव में ही पंजाब पुलिस के ‘डंडे’ पर अपराधियों का ‘माउस’ भारी पड़ रहा है।

(लेखक पंजाब के स्थानीय संपादक हैं)