डॉ. अंशु जोशी। आज जहां एक और पूरा विश्व कोरोना नामक वायरस से त्रसित हो विभिन्न संकटों से जूझ रहा है, चीन जैसा देश, जिस पर पूरे विश्व में इस घातक वायरस को फैलाने का आरोप भी लग रहा है, अपनी कुत्सित चालों से बाज नहीं आ रहा है। गलवन घाटी में चीन ने जो किया, उसे न भुलाया जा सकता है, न माफ किया जा सकता है। भारत की तरफ से हमेशा –हिंदी चीनी भाई भाई- का भाव रहा। किंतु चीन ने कभी भारतीय सीमा में घुसपैठ कर, कभी भारतीय भूमि पर कब्जा कर तो कभी भारतीय सैनिकों को मार कर विश्वासघात का ही परिचय दिया है।

राजनीतिक और कूटनीतिक पटल पर भी चीन ने भारत विरोधी स्वर ही अपनाए। चाहे संयुक्त राष्ट्र की रक्षा परिषद् में भारत का विरोध हो या ‘मोतियों की माला’ नामक हिंद महासागर में भारत को घेरने की खतरनाक कूटनीतिक चाल, चीन का भारत के प्रति घोर शत्रुता का भाव जगजाहिर है। इस शत्रुता के कई आयाम हैं, कई कारण और कई संभावित-असंभावित परिणाम। इसी का एक हिस्सा, एक आयाम है, भारत और नेपाल के बीच गहराता संबंधों का संकट।

नेपाल और भारत के अभिन्न संबंध: अंतरराष्ट्रीय राजनीति के पटल पर नेपाल को हमेशा भारत के छोटे भाई के रूप में देखा जाता रहा है। भारत और नेपाल के बीच लंबं समय से सशक्त, सकारात्मक सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। दोनों ही देशों में हिंदू बाहुल्य आबादी का होना भी सशक्त संबंधों का एक बड़ा कारण रहा है। नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर की स्थापना केरल से पहुंचे आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा किया जाना अपने आप में नेपाल और भारत के अभिन्न संबंधों का द्योतक है। पर आज स्थिति बहुत भिन्न दिखाई पड़ती है। नेपाल न सिर्फ खुल कर चीन के समर्थन में बोल रहा है, भारत के साथ लंबं समय से जुड़ी अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ों को भी काटने का प्रयास कर रहा है। चीन नेपाल के माध्यम से भारत के साथ एक साइकोलॉजिकल वारफेयर शुरू कर चुका है जिसमें वह नेपाली युवाओं को भारत के विरुद्ध भड़काकर वामपंथियों की नई फौज गढ़ रहा है।

भारतीय मीडिया के नेपाल में प्रसारण पर रोक: हाल ही में नेपाल सरकार द्वारा दूरदर्शन को छोड़ सभी भारतीय टीवी चैनल्स के नेपाल में प्रसारण पर रोक लगा दी गई। नेपाल सरकार ने भारतीय विदेश मंत्रालय से इस बात की शिकायत भी की थी कि भारतीय मीडिया द्वारा नेपाल सरकार और नेताओं की छवि मलिन की जा रही है और इसलिए नेपाल भारतीय मीडिया के नेपाल में प्रसारण पर रोक लगा रहा है। हालांकि इस रोक को अब हटाया जा रहा है, लेकिन ये आगामी संकट के लक्षण हैं, और ये कोई अचानक दिखाई पड़ने वाला लक्षण नहीं है।

नेपाली विद्यालयों में चीन की मंदारिन भाषा की पढ़ाई पर जोर: पिछले कई दिनों से इस प्रकार के कई उदाहरण हमारे सामने आए जिनसे नेपाली सरकार के मंसूबे स्पष्ट होते दिखे। एक तरफ नेपाल द्वारा एक नया भौगोलिक नक्शा प्रदर्शित किया जाता है जिसमें भारत के कई हिस्से शामिल कर लिए जाते हैं तो दूसरी तरफ नेपाली विद्यालयों में चीन की मंदारिन भाषा की पढ़ाई पर जोर दिया जाता है। नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार से और दूसरी अपेक्षा भी न थी, पर ये चीन की भी सफल चाल मानी जा सकती है जिसके जरिये चीन नेपाली समाज और जीवन शैली में धीरे धीरे अपना सांस्कृतिक वर्चस्व स्थापित करना चाहता है, ताकि भारत को नेपाली जनता से भी कोई सहयोग या सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिले। दूसरी ओर चीन नेपाल में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के नाम पर जो पैसा लगा रहा है वह नेपाल के अपने भविष्य के लिए तो खतरनाक है ही, भारत के लिए भी है।

एक सोची समझी रणनीति: चीन ने नेपाल के साथ इसी वर्ष फरवरी में चीन-नेपाल ट्रांजिट प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं जिससे नेपाल को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए अब भारत पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। चीन की काली नजर नेपाल पर सिर्फ भारत की वजह से नहीं है। और नेपाल हाल फिलहाल चीन से पूरी तरह से प्रभावित नजर आ रहा है। नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार का होना चीन के लिए अभी सबसे फायदे की स्थिति है और वह इसका पूरा फायदा भी उठा रहा है। चीन एक सोची समझी रणनीति के तहत नेपाल की राजनीतिक, आर्थिक और सामजिक नीतियों पर अपना प्रभाव जमाता साफ दिख रहा है। भारत के लिए यह निश्चित ही एक चुनौती है। साथ ही नेपाल की भूरणनीतिक स्थिति भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए भारत के लिए इस पूरी स्थिति और रिश्तों के संकट का निराकरण करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है।

नेपाल-भारत मैत्री योजना: कम्युनिस्ट नेपाली सरकार जान बूझकर भारत के साथ अपने संबंध खराब कर रही है। मंतव्य नेपाल के नए नक्शे से स्पष्ट हो जाता है। भारत अपनी तरफ से नेपाल के साथ संबंध सशक्त बनाए रखने के कई प्रयास कर चुका है। उदाहरणस्वरूप वर्ष 2017-18 में नेपाल को प्रदान की गई 375 करोड़ की आर्थिक सहायता 2019-20 में बढ़ाकर 1,050 करोड़ कर दी गई। इसके अलावा भारत ने नेपाल में कई विद्यालय बनवाने की घोषणा कर काम शुरू कर दिया है। नेपाल-भारत मैत्री योजना के तहत भी भारत नेपाल की अस्पताल निर्माण में और अन्य आवश्यक सुविधाओं को जुटाने में आर्थिक सहायता कर रहा है। फिर समस्या कहां आ रही है? समस्या विचारधारा के स्तर से फैल रही है।

चीन का भारत विरोधी प्रोपगंडा नेपाली सरकार ने अपने यहां सफलतापूर्वक चलाया है, पर क्यों यह समझने की आवश्यकता है। यह भी वस्तुस्थिति है कि भारत ने नेपाल को हमेशा -छोटा भाई- मानकर नेपाल की कई स्थितियों को गंभीरता से नहीं लिया। नेपाल की राजशाही को भारत की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने समर्थन न देकर कम्युनिस्ट शक्तियों को फलने-फूलने में सहायता की जो आज चीन के लिए सबसे अनुकूल स्थिति बनकर उसे शक्ति प्रदान कर रही है।

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और कम्युनिस्ट बाबूराम भट्टाराय भारत के ही जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से शिक्षा और वामपंथ की दीक्षा लेकर नेपाल पहुंचे। आज नेपाल में भारत को जिस जहरीली फसल का सामना करना पड़ रहा है, उसकी नर्सरी भारत स्वयं रहा है। फिर भी आंतरिक और सीमा सुरक्षा के दृष्टिकोण से कहीं न कहीं नेपाल को यह संदेश भी दिया जाना अनिवार्य जान पड़ता है कि भारतीय सीमा में किसी प्रकार की घुसपैठ, कब्जा या अन्य चाल बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

[असिस्टेंट प्रोफेसर, अंतरराष्ट्रीय संबंध संस्थान, जवालरलाल नेहरू विवि]