[रवि शंकर]। Delhi Assembly Election 2020 : दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक बार फिर से शून्य का स्वाद चखना पड़ा है। दिवंगत शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 साल तक दिल्ली की सत्ता पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी का लगातार दूसरी बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला। इतना ही नहीं इस बार के चुनाव में पार्टी का वोट शेयर भी गिरकर आधा हो गया है। साल 2015 के मुकाबले कांग्रेस को इस बार 4.40 फीसद वोट मिला है, पिछले चुनाव में यह आंकड़ा 10 फीसद था। नतीजे साफ बता रहे हैं कि कांग्रेस उम्मीदवारों की स्थिति निर्दलीय उम्मीदवारों जैसी हो गई है।

यह ठीक है कि दिल्ली के चुनावी दंगल में सीधी जंग बीजेपी और अरविंद केजरीवाल के बीच हुई। कांग्रेस शुरू से न तो मुकाबले में दिखाई दी और न ही बेहतर स्थिति में थी। फिर भी ऐसी उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस का पिछली बार की तरह इस बार भी खाता नहीं खुलेगा। अहम बात यह भी कि मई 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 70 में से 65 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी, जबकि इस बार वह अपनी यह स्थिति भी बरकरार नहीं रख सकी। कांग्रेस के लिए निश्चित ही यह आत्ममंथन का समय है।

कांग्रेस को मिली करारी हार के लिए आला नेतृत्व पूरी तरह से जिम्मेदार है। गौर कीजिए कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में सबसे ऊपर गांधी परिवार के तीन सदस्यों सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा का नामा था। मगर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की चुनाव में भागीदारी देखकर कहा जा सकता है कि उनके द्वारा प्रचार की खानापूर्ति भर की गई। जहां बीजेपी और आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं ने पूरी ताकत झोंक दी, वहीं कांग्रेस के दिग्गज आखिरी वक्त में प्रचार करने घर से बाहर आए। कांग्रेस की हार के पीछे एक बड़ी वजह यह भी रही। इतना ही नहीं, विधानसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में जमीन पर कांग्रेस का संगठन नहीं दिखा। कार्यकर्ताओं में मायूसी थी और इसका असर पार्टी के प्रचार अभियान पर साफ नजर आया। दिल्ली इकाई में कद्दावर चेहरों की कमी साफ नजर आई। चुनाव में दिल्ली यूनिट के अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन की मौजूदगी बेहद कमजोर नजर आई। दिल्ली इकाई में पार्टी के दूसरे दमदार नेता भी सुस्त नजर आए। महाबल मिश्र पर तो आप के टिकट पर लड़ रहे बेटे के लिए प्रचार का आरोप लगा।

साफ है, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन के बाद अब तक पार्टी को उनके कद के नेता का विकल्प नहीं मिल पाया है। दिल्ली में पार्टी के पास कपिल सिब्बल, सुभाष चोपड़ा और अजय माकन जैसे नेता हैं, मगर जनता के बीच किसी की अपील शीला दीक्षित जैसी नहीं है। पिछले कुछ विधानसभा चुनावों (हरियाणा और महाराष्ट्र) में कांग्रेस के आंतरिक मतभेद भी खुलकर सामने आए। दिल्ली में भी यह देखने को मिला। शीला दीक्षित के बेटे और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने स्टार प्रचारक की लिस्ट में शामिल नहीं होने को लेकर पार्टी के नेताओं पर ही आरोप लगा दिए।

दिल्ली में दलित और मुसलमान हमेशा से कांग्रेस का वोटबैंक रहे हैं, लेकिन राज्य में कांग्रेस का यह वोट बैंक भी दरक गया है और आप के पास चला गया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में वोट लेने के मामले में कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी और लगा कि पार्टी एक बार फिर कोर वोट बैंक के सहारे विधानसभा चुनाव में कुछ करिश्मा करेगी, पर ऐसा नहीं हुआ। 2020 की शुरुआत के साथ कांग्रेस दिल्ली में सरकार बनाने का दावा कर रही थी, लेकिन उनका दावा तो इतना गलत साबित हुआ कि आप सोच भी नहीं सकते हैं। कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह यह भी रही कि जातिगत खांचों में वह अब फिट नहीं बैठ रही है। कुल मिलाकर कांग्रेस की पराजय की वजह मुद्दों को लेकर सही रणनीति, खराब मैनेजमेंट और सही समय पर चेहरा न पेश कर पाना रही।

(स्वतंत्र टिप्पणीकार)

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