नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में जहां 50 फीसद परिवार मासिक 10 हजार रुपये या इससे भी कम में गुजर-बसर को मजबूर हैं, वहीं प्रति व्यक्ति मासिक आमदनी 2019-20 में औसतन 32 हजार रुपये बताना दिल्ली सरकार के सर्वेक्षण की बड़ी विडंबना है।

शिशुओं से लेकर छह साल उम्र के बच्चों के लिए टीकाकरण का मिशन इंद्रधनुश चलाने वाली केंद्र सरकार की नाक के नीचे दिल्ली में ही कुल बच्चों में एक-चौथाई को खसरा, पोलियो, तपेदिक आदि का टीका नहीं लगता। छह लाख बच्चों के टीकाकरण से महरूम रहने ने जहां सरकारी दावों की पोल खोल दी, वहीं ऐसी गंभीर खामियों को दूर करने की चुनौती भी थमा दी। 

सर्वेक्षण में राजधानी के 21 फीसद घरों में ही कंप्यूटर या लैपटॉप होने की हकीकत ने डिजिटल माध्यम से घर बैठे ऑनलाइन पढ़ाई के प्रचार की भी पोल खोल दी। कोविड महामारी से बचाव के लिए स्कूल, कॉलेज, तकनीकी, व्यावसायिक शिक्षण संस्थान बंद करने से छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाने का हरेक सरकार एवं संस्थान

जोरशोर से प्रचार कर रहे हैं।

इससे पहले यूनिसेफ भी देश के महज 25 फीसद घरों में इंटरनेट होने की बात कहकर ऑनलाइन पढ़ाई के दावों की हकीकत बता चुका है। विद्याíथयों के लिए छिन्न-भिन्न पढ़ाई-लिखाई के डरावने सच से दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज की गणित की मेधावी छात्र ऐश्वर्या रेड्डी की तेलंगाना में आत्महत्या सबको सिहरा चुकी है। उसके माता-पिता के पास उसे लैपटॉप खरीदकर देने लायक रकम नहीं थी और कॉलेज ने भी कोई सुध नहीं ली जिससे पढ़ाई में पिछड़ने तथा परिवार पर आíथक बोझ बन जाने के तनाव में उसने फांसी लगा ली। चुनाव में लोक लुभावन वादों के बूते बनने वाली सरकारों ने बच्चों को मुफ्त कंप्यूटर तो दूर टैबलेट या स्मार्टफोन देने की जहमत भी नहीं उठाई।

बहरहाल राजधानी की आबादी में छह वर्ष तक आयु के बच्चों में भी लगभग आधे बच्चों को आंगनवाड़ी में मिलने वाली सुविधा नसीब नहीं है। सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली की करीब पौने दो करोड़ आबादी में छह वर्ष तक उम्र के बच्चों की संख्या 11.4 प्रतिशत है। उनमें से भी महज 55.4 फीसद बच्चे ही आंगनवाड़ी में जा रहे हैं। इसी तरह 18 वर्ष से अधिक उम्र की गर्भवती महिलाओं की कुल आबादी में बमुश्किल 47 प्रतिशत महिला ही आंगनवाड़ी केंद्रों की सुविधा उठा रही हैं।

ये आंकड़े केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रलय की भी आंखें खोलने वाले हैं कि महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण एवं स्वस्थ संतति के लिए जच्चा-बच्चा के पोषण तथा टीकाकरण कार्यक्रम का फायदा उनकी आधी आबादी को मिल ही नहीं रहा। इन आंकड़ों के आधार पर दिल्ली प्रदेश व केंद्र सरकार यहां के आंगनवाड़ी केंद्रों पर महिलाओं एवं बच्चों की पूरी आबादी के लिए पहुंचने वाली इमदाद में से आधी के ही इस्तेमाल होने पर जांच करवा सकती हैं कि बाकी बचे संसाधन कहां हैं?

महिलाओं एवं बच्चों की बाकी आधी आबादी के आंगनवाड़ी केंद्रों पर नहीं जाने के कारण दूर करके उन्हें भी इन कार्यक्रमों के लाभ दिलाने के प्रयास किए जा सकते हैं। उनके स्वस्थ होने से सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं पर दबाव भी घटेगा। दरअसल राजधानी में लगभग 73 फीसद लोग इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों व डिस्पेंसरियों की ही शरण लेते हैं। इससे स्पष्ट है कि नागरिकों के लिए सरकारी स्वास्थ्य सुविधा कितनी आवश्यक है।

इस सर्वेक्षण ने दिल्ली के नवधनाढ्यों की राजधानी होने का भ्रम भी तोड़ दिया। इसके अनुसार राजधानी की आबादी में महज 1.66 फीसद लोग ही मासिक 50 हजार रुपये से अधिक रकम अपने रहन-सहन पर खर्च कर पाते हैं। बाकी ज्यादातर परिवार निम्न वर्ग तथा निम्न मध्यम वर्ग अर्थात कामगार श्रेणी के हैं। यहां के

कुल घरों में 47.3 फीसद परिवार मासिक 10 हजार से 25 हजार रुपये पर गुजारा कर रहे हैं। मासिक 10 हजार रुपये से कम पर जीवनयापन करने वाले परिवारों का प्रतिशत 42.5 है।

यदि दिल्ली के मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी पूरी मिल रही है तो उनका परिवार मासिक 10 हजार रुपये से भी कम में गुजारे को क्यों मजबूर है? उस पर तुर्रा यह कि दिल्ली की प्रति व्यक्ति मासिक आमदनी 32 हजार रुपये है। इन आंकड़ों से यह भी स्पष्ट है कि प्रति व्यक्ति मासिक आय का राज्यस्तरीय औसत आकलन का

वर्तमान फार्मूला कितना भ्रामक है।

इसी का नतीजा है कि दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय तो मासिक 32 हजार रुपये है, मगर 90 फीसद से अधिक आबादी 15 से 25 हजार रुपये मासिक में ही गुजारे को विवश है। खर्च के ये आंकड़े देश की दौलत चंद मुट्ठियों में कैद होने संबंधी सर्वेक्षणों के चिंताजनक परिणामों की तस्दीक व आर्थिक संसाधनों के समतामूलक बंटवारे की जरूरत को इंगित कर रहे हैं।

कुल 1.02 करोड़ लोगों पर किए गए सर्वेक्षण के नतीजों का आकलन नवंबर 2020 में किया गया। मेट्रो ट्रेन में सफर कर पाने की हैसियत सिर्फ छह फीसद लोगों की है, जबकि 63 फीसद लोग डीटीसी की बसों में धक्के खा रहे हैं। एक लाख परिवार टैंकरों से पानी खरीद कर पी रहे हैं तथा एक-चौथाई घरों में पानी का कनेक्शन ही नहीं है। 

सर्वेक्षण ने दिल्ली में तीन-चौथाई लोगों की सब्सिडीयुक्त सरकारी सुविधाओं पर निर्भरता उजागर करके राजधानी की तरक्की के दो दशक के दावों की भी हवा निकाल दी। नवंबर 2018 से नवंबर 2019 के बीच राजधानी दिल्ली में एक करोड़ से अधिक दिल्लीवासियों पर किए गए एक सर्वेक्षण के हालिया आए परिणामों के अनेक तथ्य चौंकाने वाले हैं।

[वरिष्ठ पत्रकार अनंत मित्तल से बातचीत पर आधारित

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