नई दिल्ली [अनंत विजय]। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक स्वयायत्त संस्था है ललित कला अकादमी। इस संस्था का शुभारंभ 5 अगस्त 1954 को उस समय के शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आजाद ने किया था। इसका उद्देश्य चित्रकला, मूर्तिकला आदि के क्षेत्र में अध्ययन और शोध को बढ़ावा देना है। इसके अलावा क्षेत्रीय कला और कलाकारों के बीच संवाद का मंच प्रदान करना भी एक उद्देश्य है। स वक्त इस संस्था के प्रोटेम (अस्थायी) अध्ं में स्पष्ट रूप से अकादमी के अी के दस्यों के विदेंटिंग्स के यक्ष उत्तम पचारणे हैं।

ललिता कला अकादमी के संविधान में छह महीने के अस्थाई अध्यक्ष का प्रावधान है ताकि वो नए अध्यक्ष के चयन की औपचारिकताएं पूरी करवा सकें। ललित कला अकादमी पिछले कई वर्षों से अपने उद्देश्यों से भटक गई प्रतीत होती है। अकादमी से एम एफ हुसैन की पेंटिंग गायब होने की घटना सुर्खियों में रही थीं। अकादमी से मूल्यवान पेंटिंग्स के गुम होने को लेकर आरोप प्रत्यारोप का लंबा सिलसिला चला। पूर्व के चेयरमैन पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे। इस संस्था के अध्यक्ष रहे अशोक वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान अनियमितताओं को लेकर सीबीआई जांच चल रही है। विवादों की इस शृंखला में इस संस्था का प्रशासन केंद्र सरकार ने अपने हाथ में भी लिया था। कुछ समय तक केंद्र से नियुक्त प्रशासक ने इसको चलाया। उस वक्त भी विवाद थम नहीं सका।

ताजा विवाद अस्थाई अध्यक्ष के खिलाफ कार्यकारिणी के सदस्यों के विद्रोह का है। पिछले महीने की 25 तारीख को उपाध्यक्ष नंदलाल ठाकुर और कार्यकारिणी के सदस्यों ने संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव को एक पत्र लिखकर अध्यक्ष के असंवैधानिक कामों के बारे में उनका ध्यान आकृष्ट किया। अपने पत्र में इन लोगों में स्पष्ट रूप से अकादमी के अध्यक्ष उत्तम पचारणे पर ललित कला अकादमी के संविधान के हिसाब से काम नहीं करने का आरोप लगाया है। उस पत्र में आरोप है कि उत्तम पचारणे कार्यकारिणी के निर्णयों को बदलकर कार्यक्रम आयोजित करवा रहे हैं। कार्यकारिणी ने जिन कार्यक्रमों को तय किया है उसको नहीं करवा कर दूसरे कार्यक्रम करवा रहे हैं।

उपाध्यक्ष और कार्यकारिणी के सदस्यों ने अपने पत्र में मंत्रालय को लिखा है कि उत्तम पाचरणे ने दिल्ली में आयोजित होनेवाले प्रिंट बिनाले को बगैर कार्यकारिणी की मंजूरी के मुंबई में कराने का आदेश जारी कर दिया है। अकादमी का संविधान उनको ऐसा करने की अनुमति नहीं देता है। इसके अलावा स्वाधीनता के अमृत महोत्सव पर मुंबई में किए जानेवाले आर्ट कैंप का नाम बदलकर अनसंग हीरो-छत्रपति शिवाजी के नाम से कराने का फैसला किया है। कार्यकारिणी के सदस्यों ने छत्रपति शिवाजी को अनसंग हीरो कहे जाने का विरोध किया लेकिन अस्थाई अध्यक्ष सुनने को राजी नहीं थे।अस्थाई अध्यक्ष ने बैठक में घोषणा की कि वो इसको मुंबई के जे जे स्कूल आफ आर्ट में अपनी जिम्मेदारी पर आयोजित करवा रहे हैं। यह भी अकादमी के संविधान के खिलाफ निर्णय है।

इस पत्र में ये आरोप भी लगाया गया है अस्थायी अध्यक्ष कार्यक्रमों के आयोजन में मनमानी करते हैं और कार्यकारिणी को विश्वास में नहीं लेते हैं। ललित कला अकादमी के क्रियाकलापों को लेकर मंत्रालय जांच करेगी या नहीं ये भविष्य में पता चलेगा। अगर जांच होती भी है तो संभव है कि जांच आरंभ होने तक अस्थायी अध्यक्ष का छह महीने का कार्यकाल समाप्त हो जाए। उनका छह महीने का कार्यकाल इस महीने ही पूरा हो रहा है। जिस काम, नए अध्यक्ष के चुनाव, के लिए अस्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति की गई थी उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। सर्च कमेटी बनी या नहीं इस बारे में भी अकादमी की बेवसाइट पर कोई जानकारी नहीं है।

अगर दिसंबर में अस्थाई अध्यक्ष का कार्यकाल बगैर नए अध्यक्ष के चयन के खत्म हो जाता है तो क्या एक बार फिर से अस्थाई अध्यक्ष की नियुक्ति की जाएगी। क्या संस्कृति मंत्रालय फिर से उत्तम पचारणे के नाम की सिफारिश राष्ट्रपति से करेगी और राष्ट्रपति उसको मान लेंगे। अगर ऐसा होता है तो यह नियमों की खामियों की आड़ लेना होगा। तब सवाल ये भी उठेगा कि क्या उत्तम पचारणे तबतक ललित कला अकादमी के अस्थाई अध्यक्ष बने रहेंगे जबतक कि नए अध्यक्ष का चयन नहीं हो जाता है।

नियमों की खामियों की आड़ लेकर ऐसा होता है तो फिर अस्थाई अध्यक्ष नए अध्यक्ष का चयन क्यों होने देगा। इसके पहले जब उत्तम पचारणे नियमित अध्यक्ष थे तब भी उन्होंने अपना कार्यकाल तीन साल से पांच साल करने का प्रस्ताव मंत्रालय को भेजा था जिसपर संस्कृति मंत्रालय की मुहर नहीं लग पाई थी। तब उत्तम पचारणे को पद छोड़ना पड़ा था लेकिन कुछ ही दिन बाद संस्कृति मंत्रालय ने अस्थाई अध्यक्ष के तौर पर उत्तम पचारणे के नाम का अनुमोदन कर राष्ट्रपति को भेज दिया था।

दरअसल अगर देखा जाए तो उत्तम पचारणे की नियुक्ति के समय से ही विवाद आरंभ हो गया था। इनकी नियुक्ति में तय प्रक्रिया के पालन नहीं होने के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक केस चल रहा है। पर लंबी कानूनी प्रक्रिया की वजह से उसपर निर्णय कब आएगा इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। ललित कला अकादमी के क्रियाकलापों को लेकर अन्य कई केस भी अदालत में लंबित हैं।

करदाताओं के पैसे का जो सदुपयोग कला के विकास में होना चाहिए वो कानूनी पचड़ों में खर्च हो रहा है। नियुक्तियों में भी अनियमितताओं के आरोप लग रहे हैं। ललित कला अकादमी में काम रही एक महिला को बिना किसी आरोप पत्र के सस्पेंड कर दिया गया, वो केस भी अदालत में लंबित है। ललित कला अकादमी को नजदीक से जानने वालों का कहना है कि अकादमी जितना धन मुकदमों की पैरवी में खर्च कर रही है उसमें तो कई कार्यक्रम या कार्यशाला आयोजित किए जा सकते हैं।

ललित कला अकादमी में विवादों की शुरुआत एक तरह से नौकरशाह और कवि अशोक वाजपेयी के कार्यकाल से हुई। उन्होंने अपने कार्यकाल में कला के विकास के नाम पर कई ऐसे कार्यक्रम आरंभ किए जिसमें उन्होंने अपने मित्रों को बढ़ावा दिया। उनपर विदेशी कला प्रर्दर्शनियों में हिस्सा लेने को लेकर भी विवाद है। नियुक्तियों और गैलरी आवंटन को लेकर भी विवाद उठे थे। उसके बाद से तो जो भी इस पद पर आया उसमें से अधिकतर ने मनमानी की। ललित कला अकादमी का संविधान है. जिसके हिसाब से इसके अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को काम करना होता है।

दिक्कत तब होती है जब इस संविधान के हिसाब से काम नहीं होता है। उत्तम पचारणे का कार्यकाल खत्म होने के पहले ही संस्कृति मंत्रालय ने नए अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए सक्रियता क्यों नहीं दिखाई। क्यों इस बात का इंतजार करते रहे कि अस्थाई अध्यक्ष नियुक्त करने की नौबत आए। संस्कृति मंत्रालय के नौकरशाहों ने इस मंत्रालय से जुड़ी संस्थाओं का बेड़ा गर्क करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अगर इन संस्थाओं में सही समय पर नियमित नियुक्तियां हों जाएंगी तो अफसरों को मनमानी का अवसर नहीं मिलेगा।

रिटायरमेंट के बाद राघवेन्द्र सिंह को सालभर के लिए संस्कृति सचिव बनाया गया था। उनसे उम्मीद थी कि वो कुछ बेहतर करेंगे लेकिन उन्होंने अपने सालभर के कार्यकाल में इन स्वायत्त संस्थाओं में कोई नियुक्ति नहीं की या नहीं होने दी। अगर इन संस्थाओं को विवादों से दूर रखना है तो इसके लिए स्पष्ट नियम बनाने होंगे। मंत्रियों को यह देखना होगा कि सही समय पर नियुक्तियां हों। संसद के चालू सत्र में राज्यसभा में सोनल मानसिंह ने संस्कृति से जुड़ी संस्थाओं के शीर्ष पदों के खाली रहने का विषय उठाया है, देखते हैं उसका क्या असर होता है।